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क्या पश्चिम बंगाल में कम्युनिष्ट पार्टी ने धार्मिक नेता के आगे टेक दिए घुटने

locationकोलकाताPublished: Mar 01, 2021 07:39:47 pm

Submitted by:

Paritosh Dube

पश्चिम बंगाल (West Bengal) में अपनी पार्टी के गठन के कुछ हफ्तों के भीतर ही माकपा से विधानसभा की तीस सीटों पर आईएसएफ ने अपने प्रत्याशियों के लिए समर्थन जुटा लिया। यह वही माकपा है जिसे एक दर्जन से ज्यादा कम्युनिष्ट पार्टियों वाले वाममोर्चे में बड़े भाई की उपाधि मिली हुई थी और उसके छोटे भाई एक एक सीट के लिए उसपर धमक दिखाने का आरोप लगाते रहते थे। उसी माकपा का आईएसएफ के लिए तीस सीटें छोडऩा कई सवाल खड़े कर रहा है।

क्या पश्चिम बंगाल में कम्युनिष्ट पार्टी ने धार्मिक नेता के आगे टेक दिए घुटने

क्या पश्चिम बंगाल में कम्युनिष्ट पार्टी ने धार्मिक नेता के आगे टेक दिए घुटने

कोलकाता.
धर्म की राजनीति से तौबा करने की दुहाई देने वाली कम्युनिष्ट पार्टियां पश्चिम बंगाल चुनाव में अल्पसंख्यक धार्मिक नेता अब्बास सिद्दिकी की कुछ हफ्तों पुरानी पार्टी आईएसएफ को अपने कोटे की 30 सीटें देने पर सहमत हो गई है। वामपंथी पार्टियों के इस फैसले से कई सवाल उठ रहे हैं। वहीं भाजपा और तृणमूल कांग्रेस को माकपा और वाममोर्चे पर सवाल उठाने का मौका मिल रहा है।
राजनीतिक विश£ेषज्ञ मानते हैं कि जालीदार टोपी पहनकर गर्मागर्म भाषण देने वाले फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दिकी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का पता चलते ही वामपंथियों ने उन्हें अपने पाले में लाने की तैयारी शुरू कर दी। अब्बास पहले ही राज्य में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ बयान देकर मोर्चा बनाने की इच्छा जाहिर कर चुके थे। जैसे ही उन्होंने अपने राजनीतिक दल का ऐलान किया वैसे ही वाममोर्चे ने उनसे बातचीत शुरू कर दी। चूंकी वाममोर्चे के साथ कांग्रेस की सीट समझौते पर चर्चा चल रही थी इसलिए आईएसएफ को भी चर्चा में शामिल किया गया। अब्बास का साथ पाने को बेताब माकपा ने वाममोर्चे में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए नई नवेली पार्टी को वाममोर्चे के कोटे से ३० सीटें देने की सहमति जता दी। हालांकि कांग्रेस के साथ अब तक आईएसएफ का सीट समझौता नहीं हुआ है। कांग्रेस अपने पुराने गढ़ों मालदह और मुर्शिदाबाद में आईएसएफ के लिए जगह छोडऩे को तैयार नहीं है।
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अल्पसंख्यक मतों में सेंध लगाने की तैयारी
राज्य की राजनीति में अल्पसंख्यक मतों के प्रभाव को लेकर अक्सर आंकड़े सामने आते रहे हैं। 27 से 30 फीसदी के बीच के अल्पसंख्यक मतों को लेकर तृणमूल, कांग्रेस और वाममोर्चे के बीच खींचतान चलती रही है। राज्य में ३४ साल पुरानी वाममोर्चा सरकार को हटाने में अल्पसंख्यक मतों का योगदान रहा। उसके बाद से उत्तर बंगाल के कुछ जिलों को छोडक़र इस मतबैंक पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा माना जाता रहा। विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में अब्बास सिद्दिकी के राजनीतिक दल बनाने से इस मतबैंक में सेंध लगाने की तैयारी शुरू हो गई।
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क्या पश्चिम बंगाल में कम्युनिष्ट पार्टी ने धार्मिक नेता के आगे टेक दिए घुटने
अब्बास जा सकते हैं ममता के साथ
एक वरिष्ठ भाजपा नेता के मुताबिक भाजपा पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाने वाले वामपंथियों का मुखौटा खुल गया है। कट्टरपंथी अल्पसंख्यक धार्मिक नेता की पार्टी के लिए उसके गठन से कुछ हफ्तों के भीतर ही 30 सीटें छोडऩा वामपंथियों का नया सेक्युलरिज्म है। भाजपा नेता रविवार को संयुक्त मोर्चा की ब्रिगेड सभा में कांग्रेस की मौजूदगी के बाद भी वंदेमातरम का नारा नहीं लगने का दावा कर धार्मिक नारे लगाए जाने की बात कह रहे हैं।
भाजप नेता शमिक भट्टाचार्य के मुताबिक अब्बास सिद्दिकी भले ही अभी वाम मोर्चे के साथ हों लेकिन चुनाव के बाद उनके ममता बनर्जी के पाले में जाने की संभावना खत्म नहीं हुई है। उस समय वे ऐसा भाजपा विरोध के नाम पर कर सकते हैं।
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सभी समाजों को टिकट देंगे सिद्दिकी
प्रदेश वाममोर्चा चेयरमैन विमान बोस कट्टरपंथी
ताकतों के साथ ब्रिगेड सभा मंच साझा करने के सवाल पर तो भडक़ उठे लेकिन वे यह दावा जरूर करते हैं कि सिद्दिकी की आईएसएफ सिर्फ अल्पसंख्यकों को चुनाव की टिकट नहीं देगी। बोस ने दावा किया कि आईएसएफ हिंदू, दलित, आदिवासी सभी वर्गों को टिकट देगी।
राज्य विधानसभा चुनाव से पहले आईएसएफ मुखिया सिद्दिकी ने भी अब चोला बदल लिया है वे धार्मिक तकरीरों की जगह राजनीतिक भाषण दे रहे हैं। सभी समाजों को साथ लेकर चलने की बात कहते हैं। तृणमूल कांग्रेस को भाजपा की बी टीम बताकर हमले करते हैं।
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