राजनीतिक पंडितों के मुताबिक अब दादा दस महीने क्रिकेट बोर्ड की कमान संभालेंगे। उसके बाद तीन साल के कूलिंग पीरियड में चले जाएंगे। उनके कार्यकाल के दस महीने खत्म होने के समय का जो दौर होगा उसमें पश्चिम बंगाल में चुनावी वातावरण तैयार हो चुका होगा। पश्चिम बंगाल में वर्ष 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव में 40 प्रतिशत वोट और 18 सीटें जीत चुकी भाजपा ममता बनर्जी को सत्ता से हटाने के लिए अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दे रही होगी। ऐसे समय में सौरव जैसे युवा आइकन को सामने लाने से भाजपा में चेहरे की कमी वाला तर्क खत्म हो जाएगा। सौरव की बंगाल में फैन फॉलोविंग को टक् कर देने वाला अभी कोई नहीं है। बीसीसीआई प्रमुख की कमान संभालने से उनके पास प्रशासकीय अनुभवों की फेहरिश्त भी लंबी हो जाएगी।
भाजपा की प्रदेश इकाई से जुड़े वरिष्ठ नेता के मुताबिक कूलिंग पीरियड में यदि सौरव खुलकर भाजपा के समर्थन में आ जाते हैं तो तृणमूल कांग्रेस का दक्षिण कोलकाता का गढ़ ढहने में समय नहीं लगेगा। हालांकि सौरव अभी राजनीति से जुडऩे या भाजपा का प्रचार करने जैसी संभावना वाले सवालों को सिरे से नकार रहे हैं। लेकिन उनका यह कहना कि बड़े फैसले अंतिम समय में लिए जाते हैं का निहितार्थ भाजपा नेता अपने समर्थन का बताते हैं।
पश्चिम बंगाल के वर्ष 2016 विधानसभा चुनाव से ऐन पहले भाजपा के प्रदेश के चेहरे के रूप में सौरव का नाम उठा था। लेकिन उन्होंने ऐसे किसी संभावना से इंकार कर दिया था। भाजपा सूत्रों के मुताबिक सौरव राज्य में भाजपा की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार थे, लेकिन चुनाव प्रचार या फिर भाजपा से चुनाव से पहले जुडऩे से उन्होंने इंकार कर दिया था। उस समय से अब तक हुगली में बहुत सा पानी बह चुका है। भाजपा राज्य के बड़े भौगोलिक हिस्से में अपने झंडे गाड़ चुकी है। कोलकाता व आसपास के जिलों में भी वह तृणमूल कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे रही है। ऐसे में सौरव भी अंतिम समय में कोई बड़ा फैसला ले लें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।