उन्होंने कहा कि महान फिल्मकार सत्यजीत रे ने जब मुझे प्रस्ताव दिया तब यकीन नहीं हो रहा था। उनका जब फोन आया, तो मैंने उठाया और फिर रख दिया। वापस पुन: उठाया और रख दिया जिससे मुझे यह विश्वास हो कि सत्यजीत रे मुझसे ही बात कर रहे हैं। उस वक्त वे युवा थीं। शबाना ने कहा कि उसी वक्त उनका फिल्म उद्योग में प्रवेश हुआ था। फिल्म की पृष्ठभूमि के अलावा उन्हें फिल्म की कहानी तक नहीं पता था कारण उस समय प्रेमचंद श्रद्धेय थे। हिन्दी सिनेमा में रे की कुशलता के बारे में बात करते हुए शबाना ने कहा कि रे ने किताब के भाव को बिना बदले फिल्म का अंत किताब से अलग कर दिया।
अपनी पहली मुलाकात को याद रे के साथ अपनी पहली मुलाकात को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उनके सुझाव और विचारों से वह मंत्रमुग्ध हो गई थीं। उन्होंने कहा, शूटिंग के पहले दिन मैं जींस और टी-शर्ट पहन कर स्टूडियो पहुंची। रे ने मेरा हाथ झटक कर कहा कि अपने परिधान में आओ। उसके बाद हम बात करेंगे। तब मैंने महसूस किया कि मुझे एक विशेष तरीके से बैठना था जिस कारण उस परिधान की जरूरत थी। (कास