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दुर्गापूजा में जब सब मग्न थे उस वक्त युवा चिकित्सक कर रहे थे अपना लिवर डोनेट

locationकोलकाताPublished: Oct 14, 2019 02:03:06 pm

Submitted by:

Vanita Jharkhandi

– ईएसआई में दर्द विशेषज्ञ तथा एनेसथिसियन है अंगदाता डॉ. बृजमोहन भालोटिया- लगभग 15 घंटे तक ऑपरेशन थियेटर में रहने के बाद आईसीयू में लाए गए डॉक्टर

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खुद को मॉडल बताकर कश्मीरी युवक ने 20 लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाया और फिर…,खुद को मॉडल बताकर कश्मीरी युवक ने 20 लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाया और फिर…,खुद को मॉडल बताकर कश्मीरी युवक ने 20 लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाया और फिर…,खुद को मॉडल बताकर कश्मीरी युवक ने 20 लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाया और फिर…,खुद को मॉडल बताकर कश्मीरी युवक ने 20 लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाया और फिर…,दुर्गापूजा में जब सब मग्न थे उस वक्त युवा चिकित्सक कर रहे थे अपना लिवर डोनेट

कोलकाता . एक ओर जब पूरा महानगर दुर्गापूजा के आनंद में रमा था उस वक्त एक युवा डॉक्टर अपना लिवर डोनेट करने के लिए दिल्ली के अस्पताल में ऑपरेशन करवा रहे थे। डॉ. बृजमोहन भालोटिया, जो कि ईएसआई में दर्द के विशेषज्ञ तथा एनेसथिसियन है। उन्होंने 4 सितम्बर को अपना लिवर डोनेट किया। लगभग 15 घंटे तक ऑपरेशन रूम में रहने के बाद अंग दानदाता और अंग लेने वाले आईसीयू में लाए गए। चार दिन के बाद 9 अक्टूबर को डॉ. भालोटिया को चैम्बर में दिया गया वहीं अंग प्रत्यारोपण के बाद ग्रहण करने वाले अभी भी डॉक्टरों की निगरानी में है।

जागरूकता के लिए अच्छी पहल ऑपरेशन
सफलतापूर्वक हुआ। दरअसल, डॉ. बृजमोहन भालोटिया ने अपने जीजाजी को लिवर देने का निर्णय लिया था। जिसका कइयों ने विरोध भी किया लेकिन घरवालों का उनका साथ दिया। खासकर उनकी पत्नी ने उनके इस निर्णय पर पूरा सहयोग दिया। डॉक्टर ने बताया कि लिवर ट्रांसप्लांट की देशभर में हर साल 20 से 25 हजार लोगों की आवश्यकता होती है, पर लिवर डोनेट करने वालों की संख्या दो से तीन हजार भी नहीं होती। क्योंकि लोगों में जागरूकता का अभाव है। लिवर डोनेट करने से कोई फर्क नहीं पड़ता। जैसे रक्तदान करने के कुछ समय बाद ही शरीर अपने आप रक्त तैयार कर लेता है। वैसे ही लिवर भी दो महीने में तैयार हो जाता है। बस, ऑपरेशन के बाद १०-15 दिन कष्ट सहन करना पड़ता है। अगर कुछ दिनों के दर्द से एक व्यक्ति को नया जीवन मिल सकता है तो इससे कतराना नहीं चाहिए।

रिश्तेदार को ही कर सकते हैं अंगदान
अंगदान करने के दो नियम हैं। पहला घर का कोई भी सदस्य सबकी सहमति से अपने ही रिश्तेदार को अंगदान कर सकता है या फिर सरकारी अस्पतालों में जहां पर अंगदान होता है वहां पर अपनी अर्जी लगाकर रखनी होती है। डॉक्टर के जीजाजी बसंत हमीरवासिया (६३) हैं। वह मधुमेह से पीडि़त हैं जिसके कारण उनको सिरोसिस बीमारी से जूझना पड़ रहा था। लिवर को तुरंत दान करने के लिए घर का ही सदस्य चाहिए होता है। बेटे व अन्य सदस्यों की कोशिश पर रक्त समूह न मिलने से उनका अंगदान कर पाना संभव नहीं है। ऐसे में डॉक्टर खुद आगे आए और लिवर देने का निर्णय किया।

डोनेट करने के यह है नियम
– जीवित व्यक्ति यदि लिवर दान करता है तो उसकी अधिकतम उम्र 55 होनी चाहिए। – रिश्तेदार होना चाहिए।
– किसी भी प्रकार की उसे बीमारी नहीं होनी चाहिए।
– घरवालों की रजामंदी होनी चाहिए।
– यदि अपना कोई देने को राजी न हो तो जरूरतमंदों को उन अस्पतालों में अर्जी देनी होगी जहां पर लिवर ट्रांसप्लांट होता है।
– सरकारी तौर पर नाम का रजिस्ट्रेशन करना होगा।
– किसी के ब्रेन डेथ का मामला सामने आने पर मरीज को लिवर दिया जाएगा। बशर्ते, मरीज को एक घंटे के अंदर अस्पताल पहुंचना होगा।
– सरकारी अस्पतालों में अर्जी के माध्यम से ब्रेन डेथ व्यक्ति का सरकारी अनुमति से अंग प्राप्त होता है। इसके लिए दो-तीन या चार साल भी लग सकता है।

इनका कहना है
हमारे देश में अंगदान को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां हैं। जिसके कारण अंगदान जितना होना चाहिए उतना नहीं हो पाता है। जिसके कारण कई लोग जान गंवा देते हैं। हमारे साथी डॉक्टर का यह कदम प्रेरणादायी है। – डॉ. सुब्रत गोस्वामी, डायरेक्टर, पेन मैनेजमेंट, ईएसआई, सियालदह

समाज के लिए आगे आना ही होगा। डॉक्टर होने से और भी दायित्व बढ़ जाता है। हम सभी मानसिक रूप से तैयार होकर ही आए थे। सब ठीक है यह देखकर खुशी हो रही है। आशा करते हैं कि लोग प्रेरित होकर आए और लोगों की जान बचाने में अपना योगदान करें। – सविता भालोटिया, डॉक्टर की पत्नी
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