सफलतापूर्वक हुआ। दरअसल, डॉ. बृजमोहन भालोटिया ने अपने जीजाजी को लिवर देने का निर्णय लिया था। जिसका कइयों ने विरोध भी किया लेकिन घरवालों का उनका साथ दिया। खासकर उनकी पत्नी ने उनके इस निर्णय पर पूरा सहयोग दिया। डॉक्टर ने बताया कि लिवर ट्रांसप्लांट की देशभर में हर साल 20 से 25 हजार लोगों की आवश्यकता होती है, पर लिवर डोनेट करने वालों की संख्या दो से तीन हजार भी नहीं होती। क्योंकि लोगों में जागरूकता का अभाव है। लिवर डोनेट करने से कोई फर्क नहीं पड़ता। जैसे रक्तदान करने के कुछ समय बाद ही शरीर अपने आप रक्त तैयार कर लेता है। वैसे ही लिवर भी दो महीने में तैयार हो जाता है। बस, ऑपरेशन के बाद १०-15 दिन कष्ट सहन करना पड़ता है। अगर कुछ दिनों के दर्द से एक व्यक्ति को नया जीवन मिल सकता है तो इससे कतराना नहीं चाहिए।
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रिश्तेदार को ही कर सकते हैं अंगदान
अंगदान करने के दो नियम हैं। पहला घर का कोई भी सदस्य सबकी सहमति से अपने ही रिश्तेदार को अंगदान कर सकता है या फिर सरकारी अस्पतालों में जहां पर अंगदान होता है वहां पर अपनी अर्जी लगाकर रखनी होती है। डॉक्टर के जीजाजी बसंत हमीरवासिया (६३) हैं। वह मधुमेह से पीडि़त हैं जिसके कारण उनको सिरोसिस बीमारी से जूझना पड़ रहा था। लिवर को तुरंत दान करने के लिए घर का ही सदस्य चाहिए होता है। बेटे व अन्य सदस्यों की कोशिश पर रक्त समूह न मिलने से उनका अंगदान कर पाना संभव नहीं है। ऐसे में डॉक्टर खुद आगे आए और लिवर देने का निर्णय किया।
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डोनेट करने के यह है नियम
– जीवित व्यक्ति यदि लिवर दान करता है तो उसकी अधिकतम उम्र 55 होनी चाहिए। – रिश्तेदार होना चाहिए।
– किसी भी प्रकार की उसे बीमारी नहीं होनी चाहिए।
– घरवालों की रजामंदी होनी चाहिए।
– यदि अपना कोई देने को राजी न हो तो जरूरतमंदों को उन अस्पतालों में अर्जी देनी होगी जहां पर लिवर ट्रांसप्लांट होता है।
– सरकारी तौर पर नाम का रजिस्ट्रेशन करना होगा।
– किसी के ब्रेन डेथ का मामला सामने आने पर मरीज को लिवर दिया जाएगा। बशर्ते, मरीज को एक घंटे के अंदर अस्पताल पहुंचना होगा।
– सरकारी अस्पतालों में अर्जी के माध्यम से ब्रेन डेथ व्यक्ति का सरकारी अनुमति से अंग प्राप्त होता है। इसके लिए दो-तीन या चार साल भी लग सकता है।
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इनका कहना है
हमारे देश में अंगदान को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां हैं। जिसके कारण अंगदान जितना होना चाहिए उतना नहीं हो पाता है। जिसके कारण कई लोग जान गंवा देते हैं। हमारे साथी डॉक्टर का यह कदम प्रेरणादायी है। – डॉ. सुब्रत गोस्वामी, डायरेक्टर, पेन मैनेजमेंट, ईएसआई, सियालदह
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समाज के लिए आगे आना ही होगा। डॉक्टर होने से और भी दायित्व बढ़ जाता है। हम सभी मानसिक रूप से तैयार होकर ही आए थे। सब ठीक है यह देखकर खुशी हो रही है। आशा करते हैं कि लोग प्रेरित होकर आए और लोगों की जान बचाने में अपना योगदान करें। – सविता भालोटिया, डॉक्टर की पत्नी