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Bonded labours: जहां मजदूरों को खरीद कर बंधुआ मजदूरी करवाता मालिक

locationकोलकाताPublished: Feb 07, 2020 06:16:10 pm

Submitted by:

Manoj Singh

किसी जमाने में गरीब लोगों को बंधुआ मजदूर बना कर काम करवाया जाता था। लेकिन इक्कीसवी सदी में भी पश्चिम बंगाल में पहले पैसे दे कर मजदूरों को खरीदा और उनसे काम करवाए जाने की घटना प्रकाश में आई है। वहां से भागने या घर वापस जाने की बात करने पर मजदूरों को मारा-पीटा और प्रताड़ित किया जाता था ।
 

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दूसरे राज्यों के गरीब लोगों को ऐसे फंसाता था अपने जाल में

कोलकाता

किसी जमाने में गरीब लोगों को को कैद कर बंधुआ मजदूर बना कर काम करवाया जाता था। लेकिन इक्कीसवी सदी में भी मजदूरों को कैद कर काम करवाया जाता रहा। वहां से भागने या घर वापस जाने की बात करने पर मजदूरों को मारा-पीटा और प्रताड़ित किया जाता था। यह घटना पश्चिम बंगाल की है, जहां 34 साल सर्वहारा मजदूरों के समर्थन करने वाली वाम मोर्चा की सरकार थी और पिछले नौ महीने से मां माटी मानुष का नारा देने वाली तृणमूल कांग्रेस की सरकार है।
यह घटना दिक्षण 24 परगना जिले के बारूईपुर की हैं, जहां के एक ईट-भट्टा से छत्तीसगढ़ के खुटीबेडिय़ा स्थित सलिम मोल्ला के ईट-भट्टा से बंधुआ मजदूरी कर रहे छत्तीसगढ़ के 17 मजदूरों को छुड़ाए गए हैं। इस घटना की जांच कर रहे अधिकारियों ने बताया कि उक्त ईट-भट्ट के मालिक सलिम मोल्ला अपने ईट-भट्टा में दूसरे राज्यों से गरीब मजदूरों को अग्रिम महनताना दे कर बारूईपुर मंगवाता था, उनसे ईट-भट्टे में कैद कर मजदूरी करवाता था और उन्हें किसी से भी मिलने नहीं देता था।
हालांकि सलिम मौल्ला इससे इनकार कर दिया है। उसने कहा कि वह किसी भी मजदूर से जबरन मजदूरी नहीं करवाते हैं। वह मजदूरों को अग्रिम पैसे देते हैं। अग्रिम भुगतान वापस नहीं कर पाने के कारण वे यहां काम करते है और लिए हुए पैसे की भरपाई होने के बाद वे चले जाते हैं।

लेकिन जांच अधिकारियों ने बताया कि सलिम मोल्ला अपने ईट-भट्टा के प्रबंधक को पैसे दे कर दूसरे राज्यों से कुशल मजदूर लाने को कहता था। प्रबंधक बिहार, ओडिशा, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के बीचवलियों से संपर्क करता और इन राज्यों के गरीब लोगों को कुछ पैसे दे कर बाकि पैसे कमीशन के रूप में रख लेते था।

जांच अधिकारियों को बताया कि वे इतने गरीब होते है कि अग्रिम लिए हुए पैसे खर्च करने के बाद वापस नहीं दे पाए। इस लिए ईट-भट्टा के मालिक और प्रबंधक उनसे जबरन मजदूरी करवा रहे थे। उन्हें किसी से भी मिलने नहीं देते थे। कभी सप्ताहिक खर्चे के पैसे नहीं देते थे और घर वापस जाने की अनुमति मांगने पर उन्हें पीटा जाता था।

खूटीबेडिय़ा गांक के लोगों ने बताया कि स्थानीय लोगओं को ईट-भट्टा में प्रवेश मना था। सलिम मोल्ला ने बड़ा सा गेट लगा कर बंद कर दिया था, जो हमेशा बंद रहता था। शुरूआत में कुछ दिन तक सलिम ने स्थानीय गरीब लोगों को काम दिया, लेकिन कम महनताना देने के कारण वे छोड़ दिए। उसके बाद से ईट-भट्टा का प्रवेश द्वार हमेशा बंद रहता था। उसमें काम करने वाले मजदूरों कभी बाहर नहीं आते थे।

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