scriptक्या हुआ था पाकिस्तान के पहले हिंदू कानून मंत्री के साथ जो तीन सालों में लौटना पड़ा था भारत | why Pakistan first Hindu law minister returned to India after 3 years | Patrika News

क्या हुआ था पाकिस्तान के पहले हिंदू कानून मंत्री के साथ जो तीन सालों में लौटना पड़ा था भारत

locationकोलकाताPublished: Dec 10, 2019 09:27:10 pm

Submitted by:

Paritosh Dube

पाकिस्तान (Pakistan), बांग्लादेश (Bangladesh) और अफगानिस्तान (Afganistan) में अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले बर्ताव का पता पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री रहे बंगाली हिंदू जोगेन्द्र नाथ मंडल (Jogendra Nath Mondal) के साथ किए गए व्यवहार से चलता है। जिन्ना पर भरोसा कर पाकिस्तान के समर्थक बने इस दलित नेता को तीन साल के भीतर ही पाकिस्तान छोडऩा पड़ा। उसके बाद वे बंगाल ( West Bengal )आ गए और यहां शरणार्थियों के कल्याण का काम करते हुए गुमनामी में खो गए।

क्या हुआ था पाकिस्तान के पहले हिंदू कानून मंत्री के साथ जो तीन सालों में लौटना पड़ा था भारत

क्या हुआ था पाकिस्तान के पहले हिंदू कानून मंत्री के साथ जो तीन सालों में लौटना पड़ा था भारत

कोलकाता. इन दिनों देश की राजनीति में नागरिकता संशोधन विधेयक का मामला गर्म है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीडऩ का शिकार बने अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने के लिए यह संशोधन किया जा रहा है। अल्पसंख्यकों के साथ पाकिस्तान में हुए धार्मिक भेदभाव का पता इसी बात से चल जाता है कि वहां के पहले कानून मंत्री रहे जोगेन्द्र नाथ मंडल को पाकिस्तान के गठन के तीन साल के भीतर ही वह देश छोडक़र भारत में शरण लेनी पड़ी। यह हाल जब जिन्ना के खास रहे मंडल के साथ हुआ तो सोचिए आम लोगों का क्या हाल हुआ होगा।
मौजूदा बांग्लादेश में नमोसुद्रो समुदाय में 29 जनवरी 1904 को जन्मे मंडल भीमराव अंबेडकर से प्रभावित थे। वे दलितों के अधिकारों के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे। वे 1937 में बाकरगंज नॉर्थ-ईस्ट जनरल ग्रामीण क्षेत्र से बंगाल विधानसभा के सदस्य चुने गए। बाद में, उन्होंने सहकारी क्रेडिट और ग्रामीण ऋण विभाग का मंत्री पद संभाला। उन्होंने अखिल भारतीय अनुसूचित जाति महासंघ की बंगाल शाखा की भी स्थापना की। अंबेडकर इसके राष्ट्रीय नेता थे।
वर्ष 1946 की अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के मनोनीत सदस्य, मंडल ने संयुक्त बंगाल के विचार का समर्थन किया, लेकिन लॉर्ड माउंटबेटन ने 3 जून 1947 को विभाजन की घोषणा की तो वे पाकिस्तान की ओर झुक गएा। जिन्ना ने उन्हें विश्वास में लिया। पाकिस्तान को सेकुलर देश बनाने का सपना दिखाया। विभाजन के बाद मंडल सन 1947 में पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य बने। बाद में उन्होंने पाकिस्तान के पहले कानून और श्रम मंत्री का पद भी संभाला।
मुस्लिम-बहुल नौकरशाही की आंखो में खटकने वाले मंडल को अपमानित करने का सिलसिला शुरू हो गया। सितंबर 1948 में जिन्ना की मृत्यु के बाद उनकी स्थिति और खराब हो गई। मार्च 1949 में, मंडल ने उस प्रस्ताव का विरोध किया जिसमें पाकिस्तान को शरीयत के हिसाब से संचालित करने की बात कही गई थी। इस बीच पूर्वी पाकिस्तान यानि मौजूदा बांग्लादेश में हुए दंगों, हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर जब कार्रवाई नहीं की गई तो वे अपमानित महसूस कर सन 1950 में भारत वापस आ गए। यहां वे पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए जी जान से जुटे रहे। पश्चिम बंगाल के बनगांव में 5 अक्टूबर 1968 को उन्होंने अंतिम सांस ली।
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