वर्ष 1946 की अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के मनोनीत सदस्य, मंडल ने संयुक्त बंगाल के विचार का समर्थन किया, लेकिन लॉर्ड माउंटबेटन ने 3 जून 1947 को विभाजन की घोषणा की तो वे पाकिस्तान की ओर झुक गएा। जिन्ना ने उन्हें विश्वास में लिया। पाकिस्तान को सेकुलर देश बनाने का सपना दिखाया। विभाजन के बाद मंडल सन 1947 में पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य बने। बाद में उन्होंने पाकिस्तान के पहले कानून और श्रम मंत्री का पद भी संभाला।
मुस्लिम-बहुल नौकरशाही की आंखो में खटकने वाले मंडल को अपमानित करने का सिलसिला शुरू हो गया। सितंबर 1948 में जिन्ना की मृत्यु के बाद उनकी स्थिति और खराब हो गई। मार्च 1949 में, मंडल ने उस प्रस्ताव का विरोध किया जिसमें पाकिस्तान को शरीयत के हिसाब से संचालित करने की बात कही गई थी। इस बीच पूर्वी पाकिस्तान यानि मौजूदा बांग्लादेश में हुए दंगों, हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर जब कार्रवाई नहीं की गई तो वे अपमानित महसूस कर सन 1950 में भारत वापस आ गए। यहां वे पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए जी जान से जुटे रहे। पश्चिम बंगाल के बनगांव में 5 अक्टूबर 1968 को उन्होंने अंतिम सांस ली।