जंगलों में शहद, केकड़े, मछली, मीन व अन्य वनोपज के लिए जाने वाले पुरुषों की विवाहिताएं उनके लौटने तक सादगी और संयम का पालन करती हैं। मान्यताओं के मुताबिक पुरुषों के लौटने तक वे शाकाहारी भोजन करती हैं, रंगीन कपड़ों से परहेज करती हैं। सजावट, श्रृंगार से दूर रहती हैं। अपनी मान्यताओं के अनुसार पूजा पाठ करती हैं। जंगल गए पुरुषों को कभी कभी हफ्ते भर तक बाहर ही रहना पड़ता है ऐसे में उनकी विवाहिताएं संयम का पालन करती हैं। इस दौरान यदि किसी बाघ ने उन्हें अपना शिकार बना लिया तो उन्हें स्वामी खेको कह कर प्रताडि़त किया जाता है। जिसका शाब्दिक अर्थ पति हंता होता है। सुंदरवन में सक्रिय स्वयंसेवी संस्थाएं जागरुकता अभियान चलाकर इस सामाजिक कुरीति को दूर करने का प्रयास कर रही हैं। पर सैकड़ों की संख्या में मौजूद विधवाओं का सामाजिक, आर्थिक पुर्नवास अभी भी चुनौती बना हुआ है।
राज्य सरकार की ओर से जंगली जानवरों के हमले में मारे जाने वाले लोगों के लिए घोषित मुआवजा पाने में भी विधवाओं को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता है। नियमों के मुताबिक बफर जोनमें होने वाले हमले के लिए तो सरकार मुआवजा देती है लेकिन कोर एरिया में होने वाले हमले के लिए उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिलता। नियमों के अनुसार कोर एरिया में किसी भी किस्म की व्यवसायिक गतिविधि का संचालन नहीं किया जा सकता। दूसरी बड़ी समस्या मृतकों के अवशेष जुटाने की होती है। शेरों के जबड़े और पंजों में फंसे लोगों के अवशेष जुटाना न सिर्फ खतरनाक होता है बल्कि कई बार अवशेष जुटाने गए दल पर शेर के हमले के मामले भी सामने आए हैं। बिना अवशेष के मुआवजा नहीं मिलता।
वृंदावन की विधवाओं के कल्याण के लिए काम कर सुर्खियां बटोर चुका सुलभ इंटरनेशनल ने हाल ही में सुंदरवन की शेर के हमलों में विधवा हुई महिलाओं के विकास का बीड़ा उठाया है। राज्य सरकार ने भी सहायता का हाथ बढ़ाया है।