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नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ा सबसे बड़ा रहस्य कब होगा उजागर

भारतीय आजादी के संग्राम का सबसे बड़ा रहस्य अभी भी फाइलों की गुप्त भाषा, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के जाल में उलझा हुआ है।

कोलकाताJan 23, 2020 / 07:32 pm

Paritosh Dube

भारत की आजादी का सबसे बड़ा रहस्य कब होगा उजागर

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 123 वीं जयंती पर विशेष
कोलकाता

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे गर्वीले और रहस्यमय व्यक्तित्व सुभाष चंद्र बोस आज भी रहस्यों के कई आवरण में हैं। उनकी गुमशुदगी की धुंध छांटने के लिए तीन- तीन जांच कमीशन गठित किए जा चुके हैं। उनकी रिपोर्ट भी आ चुकी है, लेकिन भारतीय आजादी के संग्राम का सबसे बड़ा रहस्य अभी भी फाइलों की गुप्त भाषा, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के जाल में उलझा हुआ है। नेताजी सुभाष बोस के परिवार से जुड़े, नेताजी रिसर्च ब्यूरो के सदस्य रहे चंद्रकुमार बोस ने पत्रिका से लंबी बातचीत में कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया है। प्रस्तुत है पूर्व में हुई उनसे बातचीत के मुख्य अंश।

प्रश्र. आप बोस परिवार से जुड़े हुए हैं। नेताजी रिसर्च ब्यूरो का काम भी देखते हैं। ऐसा क्यों कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस के साथ इतिहास ने न्याय नहीं किया।
चंद्रकुमार- नेताजी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उनके दौर के कांग्रेस नेताओं ने उनके साथ राजनीति की। नेताजी का लक्ष्य अर्जुन की तरह था। भारत की आजादी। कांग्रेस ने उन्हें बाहर निकाला। देश से बाहर गए। आजाद हिंद फौज का गठन किया। भारत की पहली स्वाधीन सरकार का 21 अक्टूबर 1943 को गठन किया। जिसे 11 देशों ने मान्यता दी थी। इतिहास की इस महत्वपूर्ण तारीख को गुम करने का 70 सालों तक प्रयास किया गया है।
प्रश्र. क्या आपको लगता है कि कभी नेताजी की गुमशुदगी के रहस्य से पर्दा हट पाएगा।
चंद्रकुमार– नेताजी की गुमशुदगी के रहस्य से पर्दा हटाने के लिए मौजूदा केन्द्र सरकार प्रयास कर रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि 18 अगस्त 1945 के बाद क्या हुआ था, यह देश की जनता जानना चाहती है। मोदी यह भी कह चुके हैं कि यह उनकी सरकार का कर्तव्य है कि सुभाष बाबू की गुमशुदगी का रहस्य खुले। यह देश की मांग नहीं है यह देश का कर्तव्य है। 14 अक्टूबर 2015 को प्रधानमंत्री के आवास में बोस परिवार से जुड़े लोगों की बैठक में मोदी ने गुप्त फाइलें सार्वजनिक करने की घोषणा की। जिन्हें टॉप सीक्रेट कहा गया गया था। 23 जनवरी 2016 से फाइलें सार्वजनिक होनी शुरू हो गईं। कुछ कुछ फाइलें 10 हजार बीस हजार पन्नों की हैं। उनकी समीक्षा के लिए, स्कू्रटनी के लिए विशेषज्ञों की आवश्यक्ता है। एक्सपर्ट पैनल चाहिए। हम एक्सपर्ट कमेटी या आयोग के गठन की मांग नहीं कर रहे हैं। एक्सपर्ट पैनल फाइलों की स्कू्रटनिंग कर समरी रिपोर्ट तैयार करे। जिसे वेबसाइट, में संसद में रखा जाए। तब सच्चाई सामने आएगी। सीक्रेट फाइलें एक्सपर्ट ही पढ़ सकते हैं। इसके साथ ही रूस की गुप्तचर संस्था केजीबी से समन्वय स्थापित करना होगा। विदेश मंत्रालय रूस सरकार को चि_ी लिख चुका है। नेताजी की गुमशुदगी का रहस्य उद्घाटित करने के लिए गठित मुखर्जी कमीशन ने वर्ष 2006 में कहा था कि विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत नहीं हुई थी। वे मंचूरिया के रास्ते रूस और चीन गए थे। यदि वे रूस में थे, तो केजीबी के पास उनका विवरण जरूर होगा। एक्सपर्ट पैनल ही केजीबी फाइल्स देख कर समझ सकता है। मुखर्जी कमीशन ने केजीबी अधिकारियों से मुलाकात की थी। जिसके बाद कमीशन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से अनुरोध किया था कि वे केजीबी को औपचारिक पत्र लिख कर जांच में सहयोग का अनुरोध करें। उन्हें यह जानकर बहुत दुख हुआ कि मनमोहन सिंह के कार्यालय ने कमीशन को कोई जवाब ही नहीं दिया।

प्रश्र. देश में इन दिनों राष्ट्रनायकों की बड़ी बड़ी प्रतिमाओं के निर्माण का युग शुरू हुआ है। क्या आप भी सुभाष चंद्र बोस की बड़ी प्रतिमा लगाए जाने के समर्थक हैं।
चंद्रकुमार– बिल्कुल। सुभाष चंद्र बोस राष्ट्रीय नेता थे। गांधी और बोस दोनों का योगदान आजादी की लड़ाई में बराबर है। गांधी ने अहिंसा का रास्ता चुना तो बोस ने सशस्त्र आंदोलन किया। वे मांग करते हैं कि सुभाष चंद्र बोस या आजाद हिंद फौज का मेमोरियल लाल किले के सामने होना चाहिए। इसकी मजबूत वजह है। याद होगा कि वर्ष 1946 में आजाद हिंद फौज के जवानों को वार क्रिमिनल कह कर लाल किले में ट्रायल किया गया था। धूलाभाई देसाई ने आजाद फौज की पैरवी की, उन्होंने वार ट्रिब्यूनल के सामने तर्क दिया कि आईएनए भारत की स्वाधीन सरकार है। इसी ने भारत की आजादी की घोषणा की थी। इसलिए फौज से जुुड़े हुए लोग वार क्रिमिनल नहीं वॉर हीरो हैं। उनके इस तर्क से पूरा मामला ही धराशाई हो गया।

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