बताया जाता है कि एक समय बंद्योपाध्याय परिवार संभ्रांत परिवार था। कमल बंद्योपाध्याय दुर्गापुर स्टील प्लांट में ऑफिस मैनेजर थे। उनकी पत्नी गीता स्कूल टीचर थीं। दोनों ने अपनी दो बेटियों गार्गी और कस्तुरी को लाड़-प्यार से पाला था। गार्गी ने रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय से संगीत में पीएचडी की, लेकिन नौकरी नहीं मिली। फिर दोनों बहनों की शादी हो गई। कुछ साल पहले गार्गी की पति से अनबन हो गई थी। तब से वह माता-पिता के साथ रहती है। माता-पिता दोनों बीमार चल रहे हैं। पिता हृदय रोग और मां किडनी रोग से पीडि़त है। आर्थिक तंगी के कारण गार्गी न तो माता-पिता के लिए खाना का जुगाड़ कर पा रही है नहीं उनका इलाज करा पा रही है। आर्थिक तंगी से परेशान होकर गार्गी ने माता-पिता समेत मौत को गले लगाने की अनुमति मांगी है।
गार्गी ने जिला कलक्टर को लिखे पत्र में अपने परिवार के हालात के बारे में सबकुछ बताया है। गार्गी ने लिखा है लम्बे समय से वह और उसके माता-पिता कभी आधा पेट तो कभी बिना खाये जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं। इस तरह के जीवन से वो तंग आ गई है। उसने माता-पिता के साथ मौत को गले लगाने का निर्णय किया है। उसके माता-पिता भी उसके विचार से सहमत हैं। गार्गी ने लिखा है कि वह कुछ काम करना चाहती थी, लेकिन उसे कोई काम नहीं मिला। कई लोगों से काम मांगी, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। अब या तो कलक्टर उसके लिए कोई काम की व्यवस्था करें अथवा उसे माता-पिता के साथ मौत को गले लगाने की इजाजत दें।
गार्गी ने जिला कलक्टर को लिखे पत्र में अपने परिवार के हालात के बारे में सबकुछ बताया है। गार्गी ने लिखा है लम्बे समय से वह और उसके माता-पिता कभी आधा पेट तो कभी बिना खाये जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं। इस तरह के जीवन से वो तंग आ गई है। उसने माता-पिता के साथ मौत को गले लगाने का निर्णय किया है। उसके माता-पिता भी उसके विचार से सहमत हैं। गार्गी ने लिखा है कि वह कुछ काम करना चाहती थी, लेकिन उसे कोई काम नहीं मिला। कई लोगों से काम मांगी, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। अब या तो कलक्टर उसके लिए कोई काम की व्यवस्था करें अथवा उसे माता-पिता के साथ मौत को गले लगाने की इजाजत दें।