ऐसी ही एक शिल्पकारों की कायर्शाला में सप्ताहभर पहले हस्तशिल्प विकास बोडर् अध्यक्ष के द्वारा घोषणा किया गया था कि, राज्य में होने वाले कोई भी सरकारी आयोजनों में दिये जाने वाले पुरस्कार या प्रतीक चिन्ह हस्तशिल्प से निमिर्त होगें। लेकिन अध्यक्ष की घोषणा शायद शिल्पकारों की उस कायर्शाला तक ही सिमटकर रह गई और शिल्प नगरी के नाम से पहचाने जाने वाले कोण्डागांव जिला मुख्यालय में ही घोषणा को जिम्मेदारों ने दरकिनार कर दिया।
हम बात कर रहे है बुधवार को हुए जिला स्तरीय छत्तीसगढ़िया ओलपिंक के समापन की जहाॅ खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने पुरस्कार व प्रतीक चिन्ह दिये गए। लेकिन यहाॅ राजधानी के एक सप्लायर से मगांए गए प्रतीक चिन्ह हस्तशिल्प के नहीं थे। वही दिये जाने वाले पुरस्कार भी डिब्बों में पैक रहे और यह सब जनप्रतिनिधियों व प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में होता रहा।
ऐसे में कैसे मिलेगा बढ़ावा
यदि शिल्प नगरी में ही शिल्पकारों को दरकिनार कर दिया जाएगा तो ऐसे में स्थानीय शिल्पकारों को न तो बढ़ावा मिलेगा और न ही रोजगार। और इनके लिए योजना बनाकर लाखों खर्च करने का भी कोई महत्व नही रह जाएगा। जब काम ही नहीं मिलेगा तो शिल्पकारी के आधुनिक गुण सीखकर आखिकार ये शिल्पकार क्या करेगें। अध्यक्ष की घोषणा के बाद भी इस पर अमल नहीं किए जाने से स्थानीय शिल्पकारों में नाराजगी भी देखने को मिल रही है।
इस मामले में छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड के अध्यक्ष चंदन कश्यप ने कहा, मैने घोषणा के साथ ही अधिकारियों को निदेर्शित भी किया था, इसके बाद भी इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है तो यह उचित नही है, इसकी पूरी जानकारी लेता हूॅ।
वहीं वरिष्ठ खेलधिकारी सुधा कुमार से इस संबंध में बातचीत करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कहा, फिलहाॅल मैं काम में व्यस्त हुॅ, बाद में आपसे बात कर पाउंगी।