मामले की जांच के लिए पहुंचे उच्चाधिकारी, फारेंसिक टीम ने भी किया मुआयना, कई सवाल रहे अनसुलझे
आखिर आईटीबीपी जवान ने क्यों मारे अपने पांच साथियों को, पढ़े पूरी घटना की रिपोर्ट
नारायणपुर . छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर के नारायणपुर जिले में हुए बड़े घटनाक्रम जो जिले का घोर नक्सली इलाका और लाल आतंक से घीरे हुए ग्राम कड़ेनार में नारायणपुर पुलिस व आईटीबीपी की 45 बटालियन के संयुक्त कैम्प में बुधवार की सुबह जवानों के बीच हुए खुनी संघर्ष की हकीकत जानने जब हम ग्राउंड जीरों पहुंचे तो यहॉ के अधिकांश ग्रामीणों को भले ही इस बात की जानकारी न लगी हो कि, कैम्प परिसर में कोई घटना घटित हुई है। लेकिन कैम्प के बाहार जवानों की तैनाती सबकुछ बया कर रही थी। पता चला कि घटना की जांच के लिए आईटीबीपी व पुलिस के आला अधिकारी व फारेंसिक टीम पहुंची है।
वे सभी पहलुओं को लेकर जांच कर रहे हैं। घटना की जानकारी देते हुए ग्रामीणों ने बताया कि दोपहर को एक साथ दो हेलीकाप्टर की आवाज हमें सुनाई दी तो हम भी हेलीपेड से थोड़ी दूर जाकर खड़े हो गए और वायुसेना के चौपर के लैंड होते ही कैम्प से जवानों की टीम खूनी संघर्ष में मृत हुए अपने ही जवानों के शवों को एक-एककर चौपर में ले गए और चौपर शवों को लेकर राजधानी के लिए रवाना हो गई।
इस दौरान यहॉ मौजूद अधिकारियों ने भी किसी तरह की कोई बातचीत करने से मना कर दिया। चौपर उतरने पर ग्रामीण भी बड़ी संख्या में हेलीपेड की ओर दौड़कर आते दिखे, लेकिन चौपर के उड़ते ही यहॉ पहुंचे ग्रामीण भी एकदम से गायब हो गए।
तीन जिलों का सरहदी इलाका कड़ेनार तीन जिलों के बीच बसा ग्राम कड़ेनार राजस्व जिला कोण्डागांव व पुलिस जिला नारायणपुर में शामिल है। वहीं यहॉ से कुछ र्फ लांग के बाद दंतेवाड़ा की सीमा लग जाती है। ज्ञात हो कि, नारायणपुर से कड़ेनार होते हुए सीधे बारसूर तक दो दशक पहले लोग बेधड़क आया-जाया करते थे। लेकिन इलाके मे लाल आंतक दस्तक ने धीरे-धीरेकर इस मार्ग को ही आंतक के शिकंजे में ले लिया और यह मार्ग पूरी तरह बंद सा हो गया। लेकिन पिछले दो-तीन वर्षो से इसी मार्ग के आसपास पुलिस व अर्धसैनिक बलों के कैम्प स्थापित होने से यह मार्ग एक बार फिर बहाल होने को है, और इस मार्ग के निर्माण कार्य भी प्रगति पर है।
लेकिन इलाके में अपनी पैठ बना चुके नक्सली इस विकास को स्वीकार नहीं कर पा रहे। और इस मार्ग के निर्माण में लगातार बाधक बनने की कोशिश में लगे है। इसी बीच कई दफे बैखलाए नक्सलियों ने ग्रामीणों को भी अपना निशाना बनाया है। इधर घटना की जांच का जिम्मा छोटे डोंगर एसडीओपी अर्जुन कुर्रे कर रहे हैं।
गोलियों की आवाज सुन सहम गए थे ग्रामीण चौपर के रवाना होने के बाद हम भी लौटने लगे तो इसी गांव के बीच प्राथमिक स्कूल के पास कुछ ग्रामीण खड़े नजर आए। उसने हुई चर्चा में उन्होंने बताया कि, कैम्प से सुबह दो बार लगातार गोलियों के चलने व जवानों के चिल्लाने की आवाज आई तो हम सहम गए थे। लेकिन काफी -समय बीत जाने के बाद जब कोई अवाज नहीं आया तो हम अपने घरों से निकले और इसके बाद सबकुछ पहले जैसा ही लगने लगा तो हम लोग भी अपने रोजमर्रा के काम में लग गए।
लेकिन जब पहली बार हेलीकाफ्टर आया तो लगा कुछ हुआ है। लेकिन ध्यान नहीं दिया और जब दूसरी बार हेलीकाफ्टर आया तो हम लोग भी कैम्प की ओर दौड़ लगाए और कैम्प से जवानों के एक के बाद निकलते शवों को देख हम हतप्रभ रह गए। इसके बाद ही सुबह चली गोलियोंं का हमे पता चला कि, कैम्प में खुनी संघर्ष हुआ है। ग्रामीणों ने बताया कि, गांव में दो साल पहले कैम्प बना है। इसके बाद से गांव में जवानों की चहलकदमी दिखाई देती है। कुछ अवसरों पर जवान हमें भी बुलाते है वे हमारी जरूरतों का भी ध्यान रखते है। कैम्प खुलने से हमें आपात चिकित्सा सुविधा भी मिलने लगी है। जो पहले गांव में कभी नहीं मिला करता था।