काला घोड़ा आर्ट फेस्टिवल से मिली पहचान
मीना ने बताया कि वह कला की बारीकियां सिख ही रही थी, तभी काला घोड़ा आर्ट फेस्टिवल में लगातार तीन साल तक अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका मिला। इससे पहचान बनी। इसके बाद मीना ने ओबेराय आर्ट गैलरी मुम्बई, ललित कला एकडमी दिल्ली, बाजाज आर्ट गैलरी मुम्बई, यूनेस्को दिल्ली में अपनी कला का प्रदर्शन करती रही। मुम्बई में हुए वुमन आर्ट फेस्टिवल के दौरान उन्हें पुरस्कृत भी किया गया। इसके बाद मीना ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब वह जिला प्रशासन के एक प्रोजेक्ट में कोण्डागांव में 12 फीट एक स्टेचू में अपनी कला का जादू उकेर रही है।
बचपन में सिर से उठ गया पिता का साया
पांच भाई-बहन में तीसरे नंबर की मीना ने बताया, बचपन में ही सिर से पिता का साया उठ चुका था। मां जयंती देवांगन, आदिम जाति कल्याण विभाग में एकाउंटेंट हैं। नौकरी के सिलसिले में कई बार ट्रांसफर होते रहे। इसके बावजूद मां ने हमेशा प्रोत्साहित किया। उन्हीं की वजह से वे आज इस मुकाम पर पहुंच सकी है। मीना बताती हैं कि भले ही वे स्कल्पचर का काम कर रही हैं पर उन्हें फाइन आर्ट में ज्यादा मज़ा आता है।