scriptबचपन में आटे की लोई से खेलने वाली मीना का आर्ट मायानगरी में बिखेर रहा जादू | Mina's art playing flour in the form of flour in childhood | Patrika News

बचपन में आटे की लोई से खेलने वाली मीना का आर्ट मायानगरी में बिखेर रहा जादू

locationकोंडागांवPublished: Jun 11, 2018 11:58:20 am

Submitted by:

Badal Dewangan

छोटे शहर से निकलकर मुम्बई में फिल्मों के लिए सेट बनाने तक के किए काम, खैरागढ़ से फाइन आर्ट में ट्रेनिंग लेने के बाद निखारा अपने हुनर को

मीना का आर्ट

बचपन में आटे की लोई खेलने वाली मीना का आर्ट मायानगरी में बिखेर रहा जादू

रमाकांत सिन्हा/कोण्डागांव. बचपन में खेल-खेल में आटे की लोई व चाक से आकृति उकेरने वाली नगर की मीना देवागंन आज मायानगरी तक में अपने हुनर का जादू बिखेर चुकी है। मुम्बई में कई फिल्मों के लिए असिस्टेंट आर्ट डायरेक्टर का काम करते हुए उन्होंने फिल्म सिटी में सेट डिजायनिंग तक का काम किया। अपने हुनर के दम पर देश- विदेश में पहचानी जाती है। यही नहीं मीना के हाथों से उकेरी गई कलाकृति देश के कई बड़े शहरों के चौक-चौराहों व फाइव स्टार होटल की शोभा बढ़ा रही है।

कोण्डागांव से प्रारभिंक शिक्षा करने के बाद कला प्रेम को उड़ान देने उन्होंने खैरागढ़ विश्वविद्यालय में फाइन आर्ट का प्रशिक्षण लिया और फिर मुम्बई पहुंच गई। कई छोटे-बड़े कलाकारों के साथ काम किया। किसी भी कलाकार को सफल होने के लिए उसे क्रिएटिव माइंड के साथ परिश्रमी होना भी जरूरी है। इसी बात को ध्यान में रखकर उसने मुम्बई के साथ ही कलकत्ता सहित अन्य शहरों में प्रोजेक्ट के लिए गु्रप के साथ पहुंचती रही।

काला घोड़ा आर्ट फेस्टिवल से मिली पहचान
मीना ने बताया कि वह कला की बारीकियां सिख ही रही थी, तभी काला घोड़ा आर्ट फेस्टिवल में लगातार तीन साल तक अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका मिला। इससे पहचान बनी। इसके बाद मीना ने ओबेराय आर्ट गैलरी मुम्बई, ललित कला एकडमी दिल्ली, बाजाज आर्ट गैलरी मुम्बई, यूनेस्को दिल्ली में अपनी कला का प्रदर्शन करती रही। मुम्बई में हुए वुमन आर्ट फेस्टिवल के दौरान उन्हें पुरस्कृत भी किया गया। इसके बाद मीना ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब वह जिला प्रशासन के एक प्रोजेक्ट में कोण्डागांव में 12 फीट एक स्टेचू में अपनी कला का जादू उकेर रही है।

बचपन में सिर से उठ गया पिता का साया
पांच भाई-बहन में तीसरे नंबर की मीना ने बताया, बचपन में ही सिर से पिता का साया उठ चुका था। मां जयंती देवांगन, आदिम जाति कल्याण विभाग में एकाउंटेंट हैं। नौकरी के सिलसिले में कई बार ट्रांसफर होते रहे। इसके बावजूद मां ने हमेशा प्रोत्साहित किया। उन्हीं की वजह से वे आज इस मुकाम पर पहुंच सकी है। मीना बताती हैं कि भले ही वे स्कल्पचर का काम कर रही हैं पर उन्हें फाइन आर्ट में ज्यादा मज़ा आता है।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो