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इस दिन अन्नमाता धारण करती है गर्भ, तब मनाया जाता है ये अनोखा पर्व

locationकोंडागांवPublished: Sep 10, 2018 04:14:55 pm

Submitted by:

Badal Dewangan

इस पर्व को लेकर क्षेत्रवासियों में भारी उत्साह का माहौल देखने को मिलता है। इसी दिन होते है ये सभी काम

अन्नमाता धारण करती है गर्भ

इस दिन अन्नमाता धारण करती है गर्भ, तब मनाया जाता है ये अनोखा पर्व

बोरगांव/फरसगांव . पोला पर्व को लेकर क्षेत्रवासियों में भारी उत्साह का माहौल देखने को मिला। लोग के घरों में मिट्टी से बने बैलों की विधिवत पूजा-अर्चना किए। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में धान रोपाई का कार्य पूर्ण होने के बाद ग्रामीण अपने बैलों व खेती किसानी में उपयोग कृषि उपकरणों का पूजा अर्चना किए।

मान्यता के अनुसार पोला त्योहार खेती-किसानी का काम समाप्त होने के बाद इसी दिन अन्नमाता गर्भधारण करती है। यानी धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है । इसीलिए यह त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार पुरुषों-स्त्रियों एवं बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है। इस दिन पुरुष पशुधन-बैलों को सजाकर उनकी पूजा करते हैं।
पर्व के दो-तीन दिन पहले से ही बाजारों में मिट्टी के बैल जोड़ी में बिकते दिखाई देते हैं। पोला त्योहार कृषि आधारित पर्व है। वास्तव में इस पर्व का मतलब खेती-किसानी जैसे-निंदाई-रोपाई आदि का कार्य समाप्त हो जाने से किसान खुशी से उत्सव मनाते हैं। लेकिन कई बार अनियमित वर्षा के कारण ऐसा नहीं हो पाता है। बैल किसानों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। किसान बैलों को देवतुल्य मान कर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं।
इस दिन अपने बैलों की जोड़ी को अच्छी तरह सजाकर, संवार कर इस दौड़ में लाते हैं। मोती-मालाओं तथा रंगबिरंगी फू लों और प्लास्टिक के डिजाइनर फू लों और अन्य आकृतियों से सजी खूबसूरत बैलों की जोड़ी हर इंसान का मन मोह लेती है। कई समाजवासी पोला पर्व को बहुत ही उत्साहपूर्वक मनाते हैं। बैलों की जोड़ी का यह पोला उत्सव देखते ही बनता है। खास तौर पर छत्तीसगढ़ में इस लोकपर्व पर घरों में ठेठरी, खुरमी, चौसेला, खीर-पूड़ी जैसे कई लजीज व्यंजन बनाए जाते हैं।

इसलिए पड़ा इसका नाम ‘पोला
विष्णु भगवान जब कान्हा के रूप में धरती में आए थे। जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। तब जन्म से ही उनके कंस मामा उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे। कान्हा जब छोटे थे तब वासुदेव-यशोदा के यहां रहते थे। तब कंस ने कई बार असुरों को उन्हें मारने भेजा था। एक बार कंस ने पोलासुर नामक असुर को भेजा था। इसे भी कृष्ण ने अपने लीला के चलते मार दिया था और सबको अचंभित कर दिया था। वह दिन भादो माह की अमावस्या का दिन था। इस दिन से इसे पोला कहा जाने लगा। यह दिन बच्चों का कहा जाता है। बच्चों को इस दिन विशेषरूप से प्यार लाड़ दुलार देते हैं।

पोला त्यौहार का महत्व
भारत देश कृषि प्रधान देश है, यहाँ किसानों की उन्नति में मवेशियों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है भारत देश में इन मवेशियों की पूजा की जाती है। पोला का त्योहार इन्हीं में से एक है। जिस दिन कृषक गाय, बैलों की पूजा करते हैं। यह पोला का त्योहार विशेष रूप से छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र में मनाया जाता है । पोला के दिन किसान और अन्य लोग पशुओं की विशेष रूप से बैल की पूजा करते हैं व उन्हें अच्छे से सजाते हैं । पोला को बैल पोला भी कहा जाता है।

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