कोरबा

कौशल उन्नयन में फूंके 15 करोड़ फिर भी प्रशिक्षित युवा हैं बेरोजगार

योजना का बुरा हाल: युवाओं का कौशल उन्नयन से हो रहा मोह भंग

कोरबाSep 21, 2018 / 12:42 am

Shiv Singh

कौशल उन्नयन में फूंके 15 करोड़ फिर भी प्रशिक्षित युवा हैं बेरोजगार

कोरबा. पिछले चार वर्षों में कौशल उन्नयन के नाम पर केवल कोरबा जिले में विभाग द्वारा 15 करोड़ से भी अधिक राशि व्यय की जा चुकी है। विभाग की मानें तो प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद 40 प्रतिशत युवाओं को नियोजित कर दिया जाता है जबकि धरातल की सच्चाई कुछ और ही कहती है।
राज्य सरकार की मुख्यमंत्री कौशल विकाय योजना का जिले में बुरा हाल है। युवाओं को स्किल बनाने की योजना पर पैसे तो खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन इसका ठोस परिणाम नहीं निकल रहा है। विभाग का दावा है कि कोरबा में जितने भी युवाओं को कौशल उन्नयन योजना के तहत प्रशिक्षण दिया जाता है। उनमें से ४० प्रतिशत को रोजगार या स्वरोजगार के माध्यम से आत्मनिर्भर बना दिया जाता है। छत्तीसगढ़ प्रदेश युवाओं को कौशल उन्नयन का अधिकार देने वाला देश का पहला राज्य है। राज्य ने इसके लिए हेल्थ, सेक्योरिटी, कृषि जैसे कुल १०९ सेक्टर के ८०४ ट्रेड अधिसूचित किए हैं। लेकिन कोरबा में इनमें से गिनती के ८ से १० ट्रेड के अंतर्गत ही प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कई ट्रेड तो ऐसे हैं जिनके विषय में अफसरों को भी ठीक तरह से जानकारी नहीं है।
रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है। डॉ.रमन सरकार की यह महत्वपूर्ण योजना पूरे प्रदेश में चलाया जा रही है लेकिन सही तरीके से मानीटरिंग न होने के कारण न तो प्रशिक्षण कार्यक्रम ठीक प्रकार से चल रहे हैं और न ही प्रशिक्षित युवाओं को रोजगार ही मिल रहा है। ऊर्जाधानी में कई संस्थाओं की सही तरीके से मानीटरिंग नहीं हो रही है और वे फर्जी तरीके से प्रमाणपत्र प्रदान करते हैं। ऐसे संस्थाओं के खिलाफ जिला प्रशासन को कई शिकायतें मिल चुकी हैं और जांच में इस बात की पुष्टि भी हुई लेकिन मामला पहुंच का िनिकला तो ठंडे बस्ते में डाल दिया।

सरकारी एजेंसी व एनजीओ भी करते हैं काम
किसी भी ट्रेड का प्रशिक्षण देने के लिए एजेंसी को वीटीपी के तौर पर रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है। एक समय तक केवल एनजीओ ही प्रशिक्षण देने का कार्य करते थे। लेकिन आगे चलकर कृषि, उद्यानिकी व पशुधन जैसे कई कई विभागों का भी वीटीपी के तौर पर रजिस्ट्रेशन किया गया। शुरूआती कुछ दिनों तक एक्टिव रहने के बाद सरकारी विभाग पूरी तरह से निष्क्रीय हो गए। दरअसल सरकारी विभागों द्वारा दिए गए प्रशिक्षण में रोजगार का स्कोप तो है। लेकिन विभागीय कार्यों का बोझ होने के कारण वह ट्रेनिंग को समय नहीं दे पा रहे हैं। जिसके कारण योजना केवल निजी एनजीओ तक ही सिमट कर रह गई है।

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