70 के दशक में कोरबा पूर्व में मध्य प्रदेश की सरकार ने 50-50 मेगावाट की इकाइयां लगाई थी। लगभग 50 वर्ष तक चारों इकाइयों से बिजली उत्पादन किया गया। बाद में मानक से अधिक प्रदूषण और तकनीकी में पिछड़ने के कारण प्रदेश सरकार ने इकाइयों को हमेशा के लिए शटडाउन कर दिया। यहां काम करने वाले कर्मचारियों का तबादला मड़वा और डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ताप विद्युत गृह कर दिया गया था।
50-50 मेगावाट की चारों इकाइयों को चलाने के लिए सरकार की ओर से प्लांट सुपरवाइजर, प्लांट असिस्टेंट, ड्राफ्टमैन, लिपिक आदि के 636 पद सृजित किए गए थे। प्लांट बंद होने के लगभग 2 साल बाद छत्तीसगढ़ बिजली उत्पादन कंपनी ने पद को खत्म करने का निर्णय लिया है।
हालांकि कंपनी के निर्णय में इंजीनियर रैंक के अधिकारियों के पद को खत्म नहीं किया गया है। इसका भारतीय मजदूर संघ ने विरोध किया है। संघ के महामंत्री राधेश्याम जायसवाल ने बताया कि पद खत्म किए जाने से पदोन्नति का रास्ता बंद हो जाएगा। इस मसले को बोर्ड के साथ होने वाली बैठक में उठाएंगे।