कोरबा

CG Election 2018: गांवों को बना दिया खदान, ग्रामीणों को बना दिया रिफ्यूजी

कोरबा के इस गांव के ग्रामीणों की दास्ता सुनकर ये गीत बरबस होंठों पर आ जाते हैं कि न तू जमीं के लिए है ना आसमां के लिए, तेरा वजूद है अब सिर्फ दास्तां के लिए…।

कोरबाOct 24, 2018 / 08:00 pm

Ashish Gupta

CG Election 2018: गांवों को बना दिया खदान, ग्रामीणों को बना दिया रिफ्यूजी

कोरबा. हमारी जमीन ले ली हम कुछ नहीं बोले, हमारे गांव को खदान बना दिया हमने ये भी सह लिया, हमें बेघर किया हमने इसे भी मंजूर कर लिया पर जब हमारे वजूद को खत्म कर दिया तो हमें बोलना पड़ा। कोयले वाली जमीन के मालिक होने की कीमत हम इस तरह नहीं चुका सकते कि हमसे हमारे वोट देने का अधिकार ही छीन लिया जाए। ये दर्द उस रत्नगर्भा जमीन के मालिकों का है जो आज मुफलिस बने नौकरशाहों के चक्कर काट रहे हैं। पढि़ए कोरबा से राजकुमार शाह की ग्राउंड जीरो रिपोर्ट
गांव बहनपाठ के ग्रामीणों की दास्ता सुनकर ये गीत बरबस होंठों पर आ जाते हैं कि न तू जमीं के लिए है ना आसमां के लिए, तेरा वजूद है अब सिर्फ दास्तां के लिए…। ग्रामीणों ने बताया कि काले हीरे के लिए उनकी जमीन का अधिग्रहण कर उन्हें विस्थापित बनाया। मामला यहीं नहीं रुका अब तो उनसे उनकी पहचान भी छीन ली गई है। गांव खाली होने के बाद यहां के निवासियों के नाम मतदाता सूची से भी विलोपित कर दिए गए हैं। ऐसे में वो इस बार लोकतंत्र का पर्व मना पाएंगे या नहीं ये कहना मुश्किल है।
कटघोरा विधानसभा के ग्राम पंचायत पोड़ी के गांव बहनपाठ में ग्रामीण पीढिय़ों से निवास कर रहे थे। एक दिन ग्रामीणों को पता चला कि उनकी जमीन के नीचे कोयला है, इसके बाद ग्रामीणों को गांव से चले जाने को कहा गया। आनन-फानन में उनसे गांव खाली करवा दिया गया। एसईसीएल के अफसरों ने इसके लिए कई तरह के प्रपंच किए। 2016 से ही ग्रमीण बहनपाठ छोड़ खुद ही अपने मकानों को तोडकऱ यहां से पलायन कर रहे हैं।
यह सिलसिला अब भी जारी है। अब महज 8 से 10 परिवार ही बचे हैं। विस्थापित होने के बाद अब गांव का अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है। जो ग्रामीण पूर्व में यहां निवासरत थे। उन्होंने या तो आस-पास अपना घर बना लिया, या फिर वह अपने रिश्तेदारों के यहां निवास कर रहे हैं। कुछ किराए के मकान में भी निवासरत हैं।

लगाई गुहार पर नहीं सुनता कोई
हेमंत ने बताया कि हमने चार मई 2017 से मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए दावा अपत्ति लगाई थी, जनदर्शन में भी कलेक्टर से मिले। लेकिन समस्या का कोई हल नहीं निकला। हेमंत के जैसे गांव के बहनपाठ में सैंकड़ों ग्रामीणों की यही व्यथा है जिनका नाम ही वोटर लिस्ट से गायब है।

किया होता पुनर्वास तो ना होती ऐसी समस्या
भू विस्थापित हेमंत मिश्रा ने बताया कि एसईसीएल ने पुनर्वास दिए बिना ही दबावपूर्वक हमें जमीन से बेदखल कर दिया है। जिससे अब हम सभी वोट डालने से भी वंचित हो जाएंगे। यदि जमीन खाली कराने के पहले पुनर्वास किया होता तो स्थाई पता, पुनर्वास ग्राम बहनपाठ के विस्थापित के तौर पर दर्ज होता। यहां के मूलनिवासी होते हुए भी हम अपने ही देश में रिफ्यूजी बना दिए गए हैं। मकान तोडकऱ वर्तमान में मैं दीपका में निवास कर रहा हूंं। मेरे परिवार में कुल 25 मतदाता हैं। सभी के नाम मतदाता सूची से गायब हैं।

तो सभी ग्रामीण हो जाएंगे वोट डालने से वंचित
गांव बहनपाठ की जमीन में खदान का संचालन प्रारंभ हो चुका है। नियमानुसार बताए गए पते पर मतदाता यदि निवासरत नहीं है, तो संबंधित इलाके के बीएलओ द्वारा उनका नाम मतदाता सूची से विलोपित कर दिया जाता है। जब ग्रामीणों को पता चला कि नाम काट दिए गए हैं। तब इनमें से कुछ कलेक्टोरेट पहुंचे और अपने होने का प्रमाण दिया, इतना सुनते ही अफसरों के हाथ पांव फूल गए। विस्थापितों से आवेदन करने को कहा गया है। विस्थापितों ने निर्वाचन अधिकारी को आवेदन कर बहनपाठ के ग्रामीणों ने इसी गांव के आस-पास मतदान स्थल बनाने की मांग की है।

कोरबा उप निर्वाचन अधिकारी कमलेश नंदिनी साहू ने कहा भू विस्थापित ग्रामीणों ने नाम विलोपित हो जाने की शिकायत की है। उनके अनुसार पूरे गांव के मतदातों के नाम काटे गए हैं। पहले इस प्रकरण की जांच होगी। उनके बाद ही कुछ कह पाना संभव है।

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