फिजूलखर्च भी एक बड़ी वजह मानी जा रही है जिसके वजह से खपत में इतना अधिक इजाफा हो रहा है। पूर्व में सभी वाहनों में जीपीएस सिस्टम लगा था जो कि अब बंद हो चुके हंै। इससे वाहनों पर निगरानी ही नहीं हो पा रही है। निचले स्तर के कर्मियों पर निगरानी रखने की वजह से डीजल की खपत में वृद्धि हो रही है। अधिकारी और उनके परिवार भी वाहनों का उपयोग निजी तौर पर कर रहे हैं।
इतने साल में कोई मापदंड तक नहीं बना
इधर किसी भी वाहन के लिए कोई मापदंड ही तय नहीं है। वाहनों के प्रकार के हिसाब से डीजल की मात्रा तय होनी चाहिए। सफाई, पेजयल, जेसीबी समेत अधिकारियों के वाहनों के लिए जब भी मांग की जाती है उतना डीजल दे दिया जाता है। जबकि दूरी के हिसाब और जिम्मेदारों के रुट के हिसाब से डीजल तय होना चाहिए।