उन मामलों में कभी भी जांच आगे बढ़ी ही नहीं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यही है कि बरेली की दूरी करीब एक हजार किमी है। वन्य प्राणियों की मौत के बाद काफी देर से सूचना मिलती है। जब तक मौके पर पीएम करने और मुख्यालय से अनुमति लेने के बाद बिसरा के साथ बरेली के आईव्हीआरआई लैब तक पहुंचने में कम से कम तीन से चार दिन का समय गुजर जाता है।
वहां पहुंचने के बाद फारेंसिंक जांच के लिए कई बार 10 से 15 दिन तक इंतजार करना पड़ता है। जब जांच होती है तो रिपोर्ट में पता चलता है कि बिसरा को सही पैमाने पर रखकर नहीं लाया गया था या फिर बिसरा खराब हो चुका है।
० किस वनमंडल में बीते तीन साल मेंं कितने हाथियों की जान गई
सूरजपुर 09
जशपुरनगर 05
सरगुजा 02
कोरबा 03
कटघोरा 05
धर्मजयगढ़ 06
० चर्चित मामलों में मौत की वजह ये आई बाहर
तिथि (कटघोरा वनमंडल में) वजह
11 जून 2018 स्वभाविक मृत्यु
19 दिसं. 2018 आपसी द्वंद होनेे से
27 दिसंबर 2019 दलदल में फंसने से
08 जुलाई 2020 मल्टीपल आर्गन फेल्योर
16 दिसंबर 2020 स्वभाविक मृत्यु
28 अक्टूबर 2020 स्वभाविक मृत्यु
० तेंदूए की मौत का राज फाइलों में दफन
जटगा रेंज में 29 अक्टूबर 2020 को पलमा पहाड़ में तेंदुए का शव वन विभाग ने बरामद किया था। बताया जा रहा है कि उसके नाखून गायब थे। मामला पूरी तरह से संदिग्ध था। वन विभाग को तेंदुए के मरने के दो दिन बाद सूचना मिली थी। तेंदुए की भी बिसरा रिपोर्ट बरेली भेजी गई थी, लेकिन रिपोर्ट में किसी तरह की पुष्टि नहीं हुई।
० वन्य जीव वाले इतने बड़े प्रदेश में एक ही फारेसिक लैब तक नहीं
वन्य जीव वाले इतने बड़े प्रदेश में एक भी फारेंसिक लैब तक नहीं है। वर्तमान में इंडियन वैटनरी रिसर्च संस्थान बरेली, चेन्नई, भरतपुर समेत अन्य प्रदेशों में है, लेकिन छत्तीसगढ़ में एक भी लैब नहीं है। हर जिले में हर महीने किसी न किसी वन्य जीव की मौत की खबर आती है, लेकिन ये फारेंसिंक जांच नहीं होने से किसी निष्कर्ष तक वन अमला नहीं पहुंच पाता है।
० एक्सपर्ट व्यू
इसके पीछे कई वजह हो सकते हैं जिसकी कारण से हाथियों के मौत की सही वजह सामने नहीं आ पाती होगी। कई बार बिसरा के लिए सैंपल भेजते समय गलती की जाती है कई बार वन अमले को सूचना मिलने में काफी देर हो जाती है। मौत के तीन से पांच दिन बाद ही सैंपल पहुंच पाता है। कई बार लैब में बिसरा की जांच महीने भर बाद होती है। तब तक बिसरा के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है। फॉरेस्ट एक्ट में वन्य जीव की संदिग्ध मौत मामले में एच-2 के तहत केस रजिस्टर करना होता है। केस रजिस्टर होता तो पूरे मामले की कलई खुलती। पोल खुलने और लापरवाही उजागर होने के डर से हाथी की नेचुरल डेथ लिख फाइल बंद कर दी जाती है।
नरेश चंपावत, रिटायर्ड वनमंडलाधिकारी