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गेवरा खदान विस्तार के लिए जनसुनवाई आज, प्रभावितों ने लिया विरोध का निर्णय

locationकोरबाPublished: Jun 06, 2023 12:58:51 pm

Submitted by:

Rajesh Kumar kumar

उत्पादन की दृष्टि से गेवरा को एशिया की सबसे बड़ी खदान बनाने के लिए मंगलवार को गेवरा स्टेडियम में पर्यावरणीय जनसुनवाई का आयोजन किया जा रहा है। सुबह 11 बजे से होने वाली जनसुनवाई को लेकर एसईसीएल प्रबंधन ने प्रशासन के साथ मिलकर तैयारी पूरी कर ली है।

गेवरा खदान विस्तार के लिए जनसुनवाई आज, प्रभावितों ने लिया विरोध का निर्णय

गेवरा खदान विस्तार के लिए जनसुनवाई आज, प्रभावितों ने लिया विरोध का निर्णय

वर्तमान में एसईसीएल की मेगा प्रोजेक्ट गेवरा की कोयला उत्पादन क्षमता सालाना 52.5 मिलियन टन है। देश की ऊर्जा जरुरत को पूरी करने के लिए कोल इंडिया गेवरा खदान का विस्तार करने जा रहा है। कंपनी की योजना गेवरा से सालाना 70 मिलियन टन कोयला खनन की है। यहां तक पहुंचने के लिए कंपनी को केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से अनुमति लेनी होगी। इसके पहले पर्यावरणीय जनसुनवाई कराकर स्थानीय लोगों से सहमति प्राप्त करनी होगी। इसे देखते हुए एसईसीएल प्रबंधन ने छह जून मंगलवार को गेवरा स्टेडियम में पर्यावरणीय जनसुनवाई का आयोजन किया है।

कोरबा कलेक्टर कार्यालय की ओर से जारी आदेश में बताया गया है कि विस्तार के लिए गेवरा खदान के आसपास स्थित 1475.99 एकड़ (597.31) हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की जाएगी। वर्तमान में गेवरा खदान 4184.48 हेक्टेयर में फैला हुआ है। 597.31 हेक्टयर जमीन अधिग्रहित होने के बाद खदान का विस्तार 4781.79 हेक्टेयर में हो जाएगा।

 

खदान क्षेत्र के आसपास गिरा जल स्तर

भू- विस्थापिताें ने बताया कि कोयला खदान क्षेत्र के आसपास स्थित गांव में जलस्तर नीचे चला गया है। इससे गांव में पेय जल और निस्तारी के लिए पानी की समस्या खड़ी हो गई है। तालाब में भी पानी नहीं ठहर रहा है। पानी की कमी से गांव की जमीन पर खेती बाड़ी करने में नुकसान हो रहा है। ग्रामीणाें ने खदान से प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा की कमी का मामला भी उठाने का निर्णय लिया गया है।

इस बीच खदान से प्रभावित होने वाले ग्रामीणों ने पर्यावरणीय जनसुनवाई का विरोध करने का निर्णय लिया है। उनका कहना है कि मेगा प्रोजेक्ट के आसपास वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। हवा की गुणवत्ता ठीक नहीं है। इससे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। खदान से प्रभावित होने वाले लोग कंपनी की जमीन अधिग्रहण नीति से भी खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि खदान के लिए जमीन का अधिग्रहण कोल इंडिया की पॉलिसी के तहत किया जा रहा है। पॉलिसी का लाभ छोटे खातेदार को नहीं मिल रहा है। गांव के लोगों को आर्थिक नुकसान हो रहा है।

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