संघ कार्य करने की अनुभूति हम अपने स्वयं सेवकों के माध्यम से अपने जीवन में होनी चाहिए। इस अनुभूति करने का कार्य संघ की केंद्र योजना से हम अपनी आहुति डाल रहे हैं। ध्यान देना होगा या प्राथमिक वर्ग संघ की प्राण अर्थात शाखा की टोली, शाखा का गण शिक्षक गठ नायक बनने की है। जब हम ये बनते हैं तो आगे की यात्रा प्रारंभ होती है और आगे हम संघ शिक्षा वर्ग में जाते है। जहां अपनी साधना से मुख्य शिक्षक, शाखा कार्यवाह की भूमिका का स्मरण कराया जाता है।
हम प्रवासी कार्यकर्ता के रूप में तैयार होते हैं और अपने शरीर की आत्माहुति समाज के प्रति करते हैं। समाज जीवन की अनुभूति अपने जीवन मे हो इसके लिये हमें सत्य आधारित जीवन अपनाना पड़ेगा। हम सब हिन्दू राष्ट्र के अंगभूत घटक हैं। 92 वर्षों से विश्व के सबसे बड़े संगठन के रूप में कार्य कर रहें हैं।
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ट्रेलर को पीछे कर रहा था चालक, बाइक को लिया चपेट में, बाइक चालक बाल-बाल बचा अनेकों झंझावतों, संगठनों, व्यक्तियों द्वारा संघ को क्लेश करने का प्रयास किया पर हमेशा संघ आगे बढ़ते गया और भी मजबूत होते गया। ये सब आप सभी धेयनिष्ठ स्वयंसेवकों के मजबूत इरादे से ही संभव हुआ है। संघ को बाहर से नहीं जाना जा सकता है इसे जानने के लिये संघ की शाखा में जा कर उसे समझा जा सकता है, आत्मसात कर जाना जा सकता है। इसे संवर्धित, पोषित करने के लिये अनेकों हुतात्माओं ने अपने परिवार, पीढ़ी समर्पित किया है। डॉ. हेडगेवार ने हिन्दू समाज मे स्वाभिमान जाग्रत करने अपना जीवन समर्पित किया। गुरु गोलवलकर ने भी अपना जीवन सत्य की अनुभूति के साथ जिया और अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। हम सब धर्म धारण करते हुये सज्जन शक्ति का संग्रह कर उनका संवर्धन करना, उपेक्षित समुदाय को समाज के बराबर का दर्जा में खड़ा करना है। ईश्वर ने अपने कार्य को करने के लिए स्वयंसेवक के रूप में हमे चुना है जिसे अपना कार्य मानते हंै तो श्रद्धा बढ़ती है और समाज मे कार्य दिग्दर्शित होता है। तब कार्य पूर्ण होता है और यह कार्य पूजा, भक्ति के रूप में परिणित होता है, समाज भी मानने लगता है और समाज मे स्वयंसेवक की मान्यता बढ़ती है। जब-जब समाज को हमारी आवश्यकता होगी तब तब हम तैयार रहेंगे। इस प्राथमिक वर्ग में एक पौधा रोपण कर रहे उसे सभी ज्येष्ठ कार्यकर्ता अपने देख-रेख में पोषण करेंगे।
हम सभी को समाज जीवन मे लकड़ी की तरह बनना चाहिये टूटने जलने के लिए नहीं बल्कि किसी भी विपत्ति में स्वयं को तैरने और दूसरों को तारने के लिये। इसके लिए स्वयंसेवक को अपने प्रेम के आधार पर लोक संपर्क, लोक संग्रह करते हुये लोक संस्कार का कार्य करना होगा तब समाज को दिशा मिलेगी। व्यक्ति को जोडऩे से समाज जुड़ेगा और भारत जुड़ेगा तब परम वैभव युक्त राष्ट्र का निर्माण होगा। इसमे हम स्वयंसेवकों को माहती भूमिका निभानी होगी। हमें स्वभिमानी समाज का निर्माण करना होगा।
संस्कार, करुणा, त्याग और सेवा युक्त समाज निर्माण करना होगा। इसके लिए सभी को सामूहिक प्रयास करना होगा और ये सब शाखा के माध्यम से होगा। तब हमारा त्याग सेवा सफल होगा और समाज परिवर्तन की राह पर बढ़ेगा देश परम वैभव की ओर अग्रसर होगा।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में परमजीत सिंह छाबड़ा, पाली एवं अध्यक्षता जिला संघचालक नेपाल सिंग मरावी उपस्थित थे।
समापन के पूर्व प्रशिक्षर्थियों द्वारा दंडयोग, नियुद्ध , दंड संचालन आदि का प्रदर्शन किया। इस प्राथमिक वर्ग में जिले के पांच विकासखंड के 48 स्थानों से 119 स्वयंसेवक प्राथमिक प्रशिक्षण और 34 प्रशिक्षार्थी ने घोष का भी प्रशिक्षण लिया। इन्हें 27 शिक्षकों ने प्रशिक्षित किया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में परमजीत सिंह छाबड़ा, पाली एवं अध्यक्षता जिला संघचालक नेपाल सिंग मरावी उपस्थित थे।
समापन के पूर्व प्रशिक्षर्थियों द्वारा दंडयोग, नियुद्ध , दंड संचालन आदि का प्रदर्शन किया। इस प्राथमिक वर्ग में जिले के पांच विकासखंड के 48 स्थानों से 119 स्वयंसेवक प्राथमिक प्रशिक्षण और 34 प्रशिक्षार्थी ने घोष का भी प्रशिक्षण लिया। इन्हें 27 शिक्षकों ने प्रशिक्षित किया।