मांग के अनुसार रोजगार उपलब्ध नहीं
हिंदुस्तान में वर्ष 1991 से आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई । तब कहा गया था कि नई आर्थिक नीति से रोजगार के अवसर का तेजी से विकास होगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नियमित रोजगार के अवसर घटते चले गए। सरकारी क्षेत्र में नौकरियां घट गई। निजी क्षेत्र भी मांग अनुसार रोजगार उपलब्ध नहीं करा सका। विकास का वर्तमान रोड मैप जीवन की पीड़ा को बढ़ा रहा है। मिश्रा ने कहा कि सरकारें चुनिंदा उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए श्रम कानूनों में बदलाव कर रही हैं।
फिक्सटर्म इंप्लायमेंट से नियमित रोजगार कम होंगे
केंद्रीय श्रम मंत्रालय तीन श्रम कानून में बदलाव करने पर आमदा है। श्रमिक संघ कानून, औद्योगिक विवाद कानून और औद्योगिक रोजगार कानून को मिलाकर एक कानून बनाने की दिशा में प्रयास कर रहा है। उद्योगों को कानूनी अड़चनों से राहत देने के लिए सरकार ने औद्योगिक पंचाट अदालत को खत्म करने का प्रस्ताव रखा है। कारपोरेट घरानों को खुश करने के लिए फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट पर अधिसूचना जारी की गई है। कार्यक्रम में एनके ूदास, राजेश पांडे, नंद किशोर साव, राजू श्रीवास्तव, रंजन राम, एसके प्रसाद, सुबोध सागर, सुभाष सिंह, अरुण राठौर, मृत्युंजय, विश्वजीत मुखर्जी, जॉय मुखर्जी, रामाकांत शर्मा, राजेश दुबे, देवाशीष डे, लालबाबू सिंह और सुबोल दास सहित श्रमिक उपस्थित थे।