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आयुष्मान से इलाज आसान नहीं, अस्पताल पहुंचते बदल जाते हैं मापदंड, मरीज परेशान

locationकोरबाPublished: Dec 08, 2018 12:21:00 pm

Submitted by:

Shiv Singh

इन दोनों ही मोर्चों पर मरीज बेदम हो जा रहा है

इन दोनों ही मोर्चों पर मरीज बेदम हो जा रहा है

इन दोनों ही मोर्चों पर मरीज बेदम हो जा रहा है

कोरबा. केन्द्र की महत्वकांक्षी आयुष्मान योजना से गरीबों को धरातल लाभ नहीं मिल रहा पा रहा है। योजना की जटिलता हो फिर निजी अस्पतालों की मनमानी इन दोनों ही मोर्चों पर मरीज बेदम हो जा रहा है। दूसरी ओर प्रशासन भी इस मामले में सक्रिय नहीं दिख रहा है।

मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना(एमएसबीवाई) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) को अब पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। इसके स्थान पर ही केन्द्र सरकार ने महत्वकांक्षी आयुष्मान बीमा का लॉन्च किया था। जिससे हर परिवार को साल भर के भीतर पांच तक का इलाज देने की घोषणा की थी। लेकिन इस योजना का लाभ देने के लिए हितग्राही के नाम तक ढूंढने में काफी परेशानी हो रही है। योजना का लाभ किसे दिया जाना है इसके लिए केन्द्र सरकार ने जनगणना २०११ की सूची के अधार पर पात्र हितग्राहियों की सूची जिले को प्रेषित की है।

यह सूची ११ बिन्दुओं वाली मापदण्डों पर आधारित है। दिक्कत यह है कि आधे से ज्यादा लोगों के नाम इस सूची से मेल नहीं खा रहे हैं। सूची में दर्शित नाम को जिन नाम से सर्च किया जा रहा है कि उन दोनो नामों का अक्षरश: मिलान होने पर ही किसी हितग्राही को पात्र किया जाएगा। इसके अलावा राशन कार्ड से नाम ढूंढने की स्थिति में स्वास्थ्य विभाग द्वारा पूर्व में कराए गए सर्वे में यदि वह परिवार उक्त स्थान में नहीं पाए गए हैं। तो भी उन्हें योजना का लाभ नहीं मिलेगा। इस तरह की व्यवाहारिक दिक्कतो ंकी वजह से जरूरतमंद लोग योजना से वंचित हो रहे हैं। पूर्व में जारी स्मार्ट कार्ड के साथ ही राशन कार्ड को भी योजना के लिए मान्य किया गया है।

आयुष्मान से इलाज हो रहा हो, तब मरीज से दवाओं के एवज में पूरे पैसे वसूले जाते हैं। लगभग सभी बड़े अस्पतालों में अपने स्वयं का मेडीकल स्टोर भी होता है। दवाएं यहीं से खरीदने की बाध्यता भी रहती है। भले ही मरीज आयुष्मान से इलाज क्यों न करा रहा हो, दवाएं डॉक्टर के सलाह के अनुसार अस्पताल के ही मेडिकल से नगद खरीदने को कहा जाता है। जबकि योजना पूरी तरह से कैशलेस है, मरीजों एक रुपए भी लिए जाने का नियम नहीं है।


पैसे अटकने के डर से कतराते हैं अस्पताल
बड़े से बड़े निजी अस्पतालों को सरकारी योजना में पैसे फंसने का डर है। इसी के कारण वह योजना से बचने के नए-नए तरीके तलाशते हैं। कई अस्पतालों ने इसी वजह से योजना के अंतर्गत अस्पतालों को पंजीयन भी नहीं कराया है। सीधे तौर पर वह किसी मरीज को मना नहीं करते, इसके बजाए वह मरीजों ढेर सारी औपचारिकता के साथ ही इतने नियम बता देते हैं कि मरीज खुद ही योजना के तहत इलाज की सुविधा लेने से इंकार कर नगद भुगतान के लिए राजी हो जाता है।


आयुष मित्र भी नहीं हैं किसी काम के
कहने को तो सभी निजी व सरकारी अस्पतालों में आयुष्मान योजना से इलाज में सहायता देने के लिए आयुष मित्र का नियुक्त किया गया है। लेकिन निजी अस्पतालों की मनमानी के आगे आयुष मित्रों की भी नहीं चलती। एक तरह से वह भी निजी अस्पतालों का ही साथ देते हैं, कई मामलों में आयुष मित्रों को भी प्रक्रियाओं की पूरी-पूरी जानकारी नहीं होती और वह जरूरतमंद मरीज़ को नियमों का हवाला देकर वापस लौटा देते हैं।

-कई मरीज कार से अस्पताल आते हैं, और कहते हैं कि उन्हें सरकारी योजना से मुफ्त इलाज जाहिए। योजना में जनरल वार्ड में भर्ती का नियम है, जबकि ऐसे मरीज निजी वार्ड की मांग करते हैं। ऐसे में जिस सुविधा का जिक्र योजना में नहीं है। उसके लिए पैसे लेने पड़ते हैं।
-डॉ. राजेन्द्र साहू, अध्यक्ष डॉक्टर्स ऐसोसिएशन


-आयुष्मान से इलाज देने के लिए नाम ढूंढने के तीन विकल्प हैं। तीनों से ही यदि मरीज का नाम पात्रों की सूची में नहीं मिलता तो योजना का लाभ नहीं मिल पाएगा। अस्पताल जब दस्तावेज व मापदण्डों को पूरा नहीं करते तभी क्लेम अटकता है।
-शिव राठौर, डिस्ट्रक्ट कंसलटेंट

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