scriptपुरुषों से दोगुना अधिक महिलाएं लापता, खोजबीन फाइलों तक सीमित | Twice more women missing than men, search limited to files | Patrika News

पुरुषों से दोगुना अधिक महिलाएं लापता, खोजबीन फाइलों तक सीमित

locationकोरबाPublished: Dec 07, 2021 12:53:26 pm

Submitted by:

Rajesh Kumar kumar

आखिर कहां जा रहे हैं लापता लोग? इसकी सही जानकारी किसी के पास नहीं है। जिले से 529 महिला पुरुष गायब हैं। इसमें बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक शामिल हैं। 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की बरामदगी को लेकर पुलिस जितनी गंभीर है, व्यस्क और प्रौढ़ को लेकर उतनी लापरवाह।

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आंकड़ो को देखकर यह कहा जा सकता है कि लापता लोगों का दंश उनका परिवार झेल रहा है। इस साल जनवरी से अभीतक अलग अलग आयु वर्ग के 529 व्यक्ति घर से लापता हुए हैं। महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में दोगुना अधिक है। साल के 11 महीने में 168 पुरुष घर से गायब हैं। जबकि महिलाओं की संख्या 361 है।

 

कुछ मामलों में नाबालिग बालक बालिकाओं को छोड़ दे तो व्यस्क लोगों की बरामदगी की संख्या बेहद कम है। इस साल लापता हुए व्यस्क महिलाओं से संबंधित 361 केस पुलिस तक पहुंचे। सभी में पुलिस ने गुमशुदगी का केस दर्ज किया है। लेकिन इनकी खोजबीन के लिए प्रयास बेहद सीमित रहा।

 

परिणाम यह हुआ कि 15 व्यस्क महिलाएं ही घर लौट सकी। जबकि 346 महिलाओं को आज भी लौटने का इंतजार परिवार कर रहा है। पतासाजी की आस लिए रिश्तेदारों के साथ साथ पुलिस से सम्पर्क कर रहा है। लेकिन उम्मीद की किरण नजर नहीं आ रही है।

 


गंभीर मसला यह है कि गुम होने वाली ज्यादातर महिलाएं गरीब परिवारों से वास्ता रखती हैं। सवाल खड़ा होता है कि ये व्यस्क महिलाएं आखिर लापता कैसे हो रही हैं? कहीं कोई मानव तस्कर तो जिले में सक्रिय नहीं है, जो आदिवासी या गैर आदिवासी गरीब परिवार को निशाना बना रहा है।

 

छत्तीसगढ़ और खासकर आदिवासी क्षेत्रों से महिलाओं के गायब होने के मामले निरंतर सामने आ रहे हैं। बताया जाता है कि दलालनुमा लोग महिलाओं को लालच देकर अपने साथ ले जाते हैं। इन्हें महानगरों की प्लेसमेंट एजेंसियों को सौंप दिया जाता है या फिर दूसरे गलत कार्यों मेें झोंक दिया जाता है। व्यस्क महिलाओं की वापसी की बात की जाए तो इसमें पुलिस की बड़ी भूमिका नहीं रही है। इन्हेें तलाश करने में परिवार के लोगों ने ही ऐड़ी चोटी एक की है।


इसलिए पुलिस नहीं करती प्रयास
व्यस्क महिलाओं की गुमशुदगी से संबंधित हाइप्रोफाइल केस में ही पुलिस सक्रिए दिखाई देती है। गरीब परिवारों को तो थाने से पावती लेने में ही पसीने छूट जाते हैं। इसके पीछे पुलिस का अपना तर्क होता है। पुलिस मानती है कि 18 वर्ष से अधिक उम्र के लोग कानून के मुताबिक व्यस्क होते हैं। वे किसी के साथ भी अपनी इच्छा अनुसार रह सकते हैं। शादी विवाह कर सकते हैं। पुलिस मानती है कि व्यस्क महिलाएं शादी विवाह की नीयत से माता पिता का घर छोड़कर चल गई होगी। यही वजह है कि पुलिस पतासजी में रूचि नहीं लेती है। गुमशुदगी का केस दर्जकर फाइलों को बंद कर देती है।


अपहरण का केस
नाबालिग बालक बालिकाओं के लातपा होने पर पुलिस अपहरण का केस दर्जकर करती है। गंभीरता से जांच करती है। समय समय पर ऑपरेशन मुस्कॉन जैसा अभियान चलाती है। पतासाजी के लिए गंभीरता से प्रयास करती है। नाबालिगों के मामले में पुलिस के आला अधिकारी भी समय समय पर बैठक लेकर निगरानी करते हैं। जांच अधिकारी से खोजबीन के लिए किए गए प्रयास की जानकारी लेते हैं। जरुरत पड़ने पर टीम बनाकर पतासाजी के लिए अलग अलग राज्यों में भी भेजते हैं। लेकिन बालिग या प्रौढ़ के मामले में पुलिस चुप रहना ही पसंद करती है।

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