गौरतलब है कि यूएस राम वर्तमान में बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के जल संसाधन विभाग संभाग क्रमांक-2 में ईई के रूप में पदस्थ हैं। अभियोजन की स्वीकृति प्रदान किए जाने से ईई की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
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जल संसाधन विभाग के अवर सचिव ने 17 जून को विधि एवं विधायी विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर अवगत कराया है कि तत्कालीन बैकुंठपुर ईई यूएस राम के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति प्रदान कर दी गई है।
पत्र में अवर सचिव ने बताया है कि भ्रस्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-13(1)ई 13(2) में तत्कालीन कार्यपालन अभियंता जल संसाधन संभाग बैकुंठपुर उमाशंकर राम जिला-कोरिया के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति के लिए प्रमुख अभियंता, जल संसाधन द्वारा दिए गए अभिमत का परिशीलन किया जाकर, अभियोजन स्वीकृति के लिए सहमति दिये जाने का प्रशासकीय निर्णय लिया गया।
अतएव तत्कालीन ईई के विरूद्ध अभियोजन स्वीकृति के लिए सहमति व्यक्त करते हुए उपलब्ध कराए गए समस्त अभिलेख/दस्तावेज मूलत: उनके भेजे गए हैं।
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भस्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत मिली अभियोजन की स्वीकृति के बाद अब मामला न्यायालय में प्रस्तुत होगा, आरोप पत्र प्रस्तुत किया जाएगा। इसकी सुनवाई विशेष न्यायालय (भस्टाचार निवारण अधिनियम) में होगी।
ये था मामला
23 अप्रैल वर्ष 2016 में एसीबी रायपुर की टीम ने तत्कालीन कार्यपालन अभियंता यूएस राम और तत्कालीन एसडीओ एसएल गुप्ता के घर पर छापेमारी की थी। इस दौरान करोड़ों की चल-अचल संपत्ति का खुलासा हुआ था। एसडीओ ने तो बाथरूम में 21 लाख रुपए छिपा दिए थे तथा ज्वेलरी बाहर फेंक दी थी। तब से एसीबी की जांच जारी थी। एसीबी द्वारा अभियोजन के लिए सरकार से स्वीकृति की मांग की गई थीजो अब मिल गई है।
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अभियोजन स्वीकृति सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अनिवार्यहाईकोर्ट के अधिवक्ता के अनुसार सीआरपीसी 1973 में प्रावधान है कि
शासकीय सेवक के विरुद्ध अपराध दर्ज होने पर कोर्ट के द्वारा संज्ञान लेने के पूर्व अभियोजन स्वीकृति सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अनिवार्य होता है।
आरोप पत्र जब न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है तो उस पर न्यायालय संज्ञान लेती है और विचारण करती है। इसमे अभियोजन को प्रकरण में अन्वेषण के बाद अभियोजन चलाने के लिए सक्षम प्रशासकीय अधिकारी की अनुमति के बाद अभियोजन की स्वीकृति दी जा सकती है। अभियोजन स्वीकृति के आधार पर किया गया न्यायालयीन विचारण विधि पूर्ण माना जाता है।