इस संबंध में बिल्डर संजय अग्रवाल ने प्रेसवार्ता में कहा कि उसने बैकुंठपुर प्रेमाबाग में जमीन खरीदी थी। इस जमीन पर प्रेमाबाग निवासी (वर्तमान ग्राम पटना चंपाझर) प्रार्थी विष्णु सिंह पिता धुनषधारी से जमीन विवाद चल रहा था। मामले में विष्णु सिंह द्वारा बिल्डर संजय एवं उनके साथियों के खिलाफ एक्ट्रोसिटी के तहत अपराध पंजीबद्ध कराया था।
वहीं तत्कालीन उप पुलिस अधीक्षक आजाक आरपी तिवारी (रिटायर्ड) ने 7 जून 2017 को आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त को प्रतिवेदन तैयार कर प्रार्थी विष्णु सिंह को राहत राशि की प्रथम किश्त 25 हजार देने कहा और ठीक तीन महीने बाद 8 सितंबर 2017 को नया प्रतिवेदन सहायक आयुक्त को भेजकर बताया कि मामले में डकैती की धारा 395 भी लगी थी।
इससे राहत प्रकरण की कंडिका 45 में हत्या या मृत्यु में 8.25 लाख तथा कंडिका 46 में हत्या, मृत्यु, बलात्कार, डकैती के प्रकरण में राशि देने का प्रावधान है। तत्कालीन डीएसपी तिवारी ने नियमों का हवाला देकर राहत प्रकरण 8.25 लाख रुपए देने का प्रतिवेदन भेजा था। इसके बाद प्रार्थी विष्णु को प्रथम किश्त की राशि 25 हजार को समायोजित कर 8 दिसंबर 2017 को 8 लाख का चेक दिया गया था।
मामले में बिल्डर अग्रवाल ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी और अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय में परिवाद दायर कर कार्रवाई की गुहार लगाई थी। न्यायालय ने प्रकरण की सुनवाई कर तत्कालीन डीएसपी तिवारी व विष्णु के खिलाफ धारा 409, 467, 468, 471, 420, 120(बी) के तहत अपराध दर्ज करने और कार्रवाई न्यायिक मजिस्ट्रेट की निगरानी में करने का आदेश दिया है।
पीडि़त को मुआवजा राशि वितरण करने का ये है प्रावधान
बिल्डर ने कहा कि एक्ट्रोसिटी एक्ट में प्रकरण दर्ज होने के बाद मुआवजा राशि देने का प्रावधान है। मामले में तत्कालीन डीएसपी तिवारी ने पहले सामान्य नियम के अंतर्गत 1 लाख की राहत राशि का प्रतिवेदन बनाया था और बाद में नियम 45 व 46 का उल्लेख कर 8.25 लाख का प्रकरण बनाकर राहत राशि दिलाई थी।
जबकि नियम में उल्लेख है कि नियम 45 में हत्या या मृत्यु नियम, नियम 46 में हत्या या मृत्यु के बाद बलात्कार, डकैती इत्यादि होने पर 8.25 लाख देने का प्रावधान है। नियम के अनुसार शव का परीक्षण होने के बाद 50 फीसदी, न्यायालय में चालान पेश होने के बाद 50 फीसदी राशि देने का प्रावधान है, बावजूद बिना पोस्टमार्टम कराए ही 8 लाख मुआवजा राशि दिलाई गई थी।
वहीं प्रकरण में विशेष लोक अभियोजन ने 30 दिसंबर 2018 को अपना अभिमत दिया है कि जिला स्तरीय अनुश्रवण समिति की बैठक 22 जवरी 2019 को प्रकरण की जांच के दौरान पाया था। प्रकरण में धारा 395 के तहत अभियुक्त को 10 वर्ष या उससे अधिक का कारावास का प्रावधान होने पर एससी-एसटी एक्ट में नियम के अनुसार 4 लाख रुपए दिया जाना है। इसमें एफआइआर दर्ज होने पर 25 फीसदी व न्यायालय में आरोप पत्र भेजे जाने पर 50 फीसदी व न्यायालय से अभियुक्त को दोष सिद्ध होने पर शेष 25 फीसदी राशि देने का प्रावधान है।
तत्कालीन कलक्टर ने 15 दिन के भीतर रिकवरी के दिए थे आदेश
बिल्डर अग्रवाल ने कहा कि तत्कालीन कलक्टर ने मुआवजा राशि वितरण के मामले में फर्जीवाड़ा को लेकर जांच के आदेश दिए थे और जांच रिपोर्ट आने के बाद 5 फरवरी 2019 को जारी आदेश में लिखा था कि उप पुलिस अधीक्षक अजा प्रकोष्ठ बैकुंठपुर के प्रतिवेदन के आधार पर अलग-अलग तिथि में चेक के माध्यम से प्रार्थी विष्णु सिंह को कुल 8.25 लाख राहत राशि का भुगतान किया गया है।
आदिवासी विकास विभाग द्वारा कोतवाली थाना में दर्ज अपराध क्रमांक १३१/२०१७ में भादवि की धारा 188, 294, 506,323, 395, 427, 447, 448, 467, 468,120(बी), एसटी एससी एक्ट 3(2)(3)(4) एसटी एससी एक्ट के प्रकरण में मुआवजा दिया गया था। लेकिन प्रकरण में प्रथम सूचना प्रतिवेदन के अवलोकन से स्पष्ट प्रतीत होता है कि किसी व्यक्ति की घटना में हत्या, मृत्यु नहीं हुई है। जो त्रुटि पूर्ण होने की वजह से वसूली योग्य है।
मामले में प्रकरण के प्रार्थी विष्णु को नोटिस जारी कर 15 दिन के भीतर अनिवार्य रूप से कार्यालय में जमा करने का आदेश दिया था। मुआवजा राशि जमा नहीं करने पर अपराध पंजीबद्ध करा कर वसूली करने का उल्लेख किया गया था।
मामला हाइप्रोफाइल, सूरजपुर एएसपी ने सौंपी थी जांच रिपोर्ट
बिल्डर अग्रवाल ने कहा कि तत्कालीन डीएसपी तिवारी द्वारा प्रार्थी से मिलीभगत कर झूठे प्रकरण में फंसाने को लेकर पुलिस महानिरीक्षक सरगुजा से शिकायत दर्ज कराई थी।
मामले में पहले डीएसपी मुख्यालय, फिर एएसपी को जांच की जिम्मेदारी सौंपी थी। इस दौरान मामला हाइप्रोफाइल होने के कारण आइजी सरगुजा ने जिले के बाहर सूरजपुर एएसपी को जांच व विवेचना में जिम्मेदारी सौंपी थी। इसमें एएसपी ने अपराधिक प्रकरण में साक्ष्य का अभाव व शिकायत गलत पाया था।
वहीं सूरजपुर के तत्कालीन उप संचालक लोक अभियोजन ने विवेचना की पुष्टि की थी और प्रकरण का खात्मा करने के लिए प्रस्तावित कर केस डायरी पुलिस अधीक्षक कोरिया को भेजी थी। वहीं दूसरी ओर प्रार्थी के दस्तावेज में उसकी जाति क्षत्रिय लिखी है। जबकि प्रार्थी ने अपने को आदिवासी बताकर अपराध पंजीबद्ध कराया था। मामले में सरगुजा संभागायुक्त ने जमीन एक प्रकरण का फैसला सुनाते समय जाति को लेकर टिप्पणी की थी।