वनांचल में संचालित सकड़ा स्कूल के बच्चे आज प्राइवेट स्कूल को मात दे रहे हैं। स्कूल में किसी अतिथि के आने पर प्राथमिक स्तर के आदिवासी बच्चे अंग्रेजी में अपना परिचय देतेे हैं। इतना ही नहीं अतिथि से अंग्रेजी में परिचय पूछते हैं। स्कूल में पहली से पांचवी तक 84 बच्चे अध्ययनरत हैं और 100 फीसदी उपस्थिति रहती है। स्कूल का उन्नयन करने पालकों ने ग्रामसभा में प्रस्ताव पारित कराया। इसमें मनरेगा के तकनीकी प्रस्ताव के आधार पर अहाता, भोजन करने हॉल, सीमेंटेड डाइनिंग टेबल बनाया गया है।
बारिश में शिक्षक बन जाते हैं ई-रिक्शा ड्राइवर
प्रधानपाठक दिलीप सिंह मार्को ने बताया कि इस विद्यालय में पहले केवल भवन मात्र था। विद्यालय के प्रति बच्चों और पालकों का झुकाव शिक्षक रूद्र प्रताप सिंह राणा के अथक प्रयास से संभव हुआ। उसके बाद ग्रामीणों ने ग्रामसभा में विद्यालय के उन्नयन के लिए कार्य कराने की मांग रखी।
शाला प्रबंधन समिति के अध्यक्ष कमोद सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान लगभग 2साल तक स्कूल परिसर में निर्माण कार्यों में निरंतर तराई व देखरेख करते थे। ग्रामीणों के जनसहयोग से लगाए गए सजावटी पौधों की देखभाल और सिंचाई-गुड़ाई करते थे। यह विद्यालय हमारे गांव की नई पीढ़ी का निर्माण कर रहा है। विद्यालय के सुंदर परिसर और बेहतर शिक्षा प्रणाली के कारण शत-प्रतिशत बच्चे नियमित विद्यालय आने लगे हैं।
शिक्षक राणा ने सब कुछ किया समर्पित
विद्यालय के लिए शिक्षक रूद्र प्रताप सिंह राणा ने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया है। उनकी प्रेरणा से अब गांव के बच्चों में शिक्षा के प्रति जागरुकता आई है। मनरेगा की मदद से विद्यालय अब सुंदर और सुविधायुक्त हो गया है।
शंकर सिंह पोर्तें, सरपंच ग्राम पंचायत सकड़ा
अब खुद पढऩे लगे हैं बच्चे
बच्चों को पढ़ाने के लिए पहले संसाधन कम पड़ते थे, लेकिन हम निरंतर प्रयास करते रहे। बच्चों को शिक्षा के प्रति उत्साहित करने खेल के माध्यम से शिक्षा देने का चलन प्रारंभ किया। उसके बेहतर परिणाम मिले। बच्चे स्वयं नियमित रूप से पढऩे लगे हैं।
रुद्रप्रताप सिंह राणा, शिक्षक प्राथमिक स्कूल सकड़ा