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Ajab Gajab : छत्तीसगढ़ के इस गांव में पहाड़ से लकड़ी के सहारे डेढ़ किमी तक उतरता है पानी

locationकोरीयाPublished: Apr 04, 2018 02:20:11 pm

सरकारी मदद नहीं मिलने के बाद ग्रामीणों ने खुद मेहनत कर पहाड़ के पानी को गांव तक लाया, पूरा गांव प्राकृतिक जल स्रोत पर है आश्रित

Water came from mountain

Water from wood

सोनहत. छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में एक ऐसा गांव है जहां के लोगों को सरकारी पानी तक नसीब नहीं हो रहा है। 3 किलोमीटर का सफर करने के बाद गांव के लोगों को पर्याप्त पानी मिल पाता है। इधर ग्रामीणों ने सरकारी मदद की परवाह किए बिना ही पहाड़ पर स्थित प्राकृतिक जलस्रोत तुर्रा का पानी गांव तक लाने की ठानी।
सभी एकजुट हुए और पहाड़ से पानी लाने के लिए करीब डेढ़ किलोमीटर की लंबी लकड़ी की पाइप बनाकर बिछाई गई। पाइप लाइन को सपोर्ट करने बीच-बीच में लकड़ी के खंभे भी गाड़े गए। ग्रामीणों की यह मेहनत रंग लाई और आज गांव का 25 परिवार इसी पानी से अपनी प्यास बुझा रहा है।
तुर्रा से निकला पानी काफी मीठा है। यहां से 24 घंटे पानी आता है। बॉटल के सहारे ग्रामीण पानी भरते हैं। हालांकि इस पानी को भरने में काफी समय लगता है लेकिन कहते हैं न कि डूबते को तिनके का सहारा।
Wood pipeline
यह तस्वीर है कोरिया जिले के विकासखंड सोनहत के वनांचल ग्राम पलारीडांड़ का। चारों ओर से जंगल व दो ओर से पहाड़ से घिरे इस गांव में 20 से 25 घर हैं। यहां करीब 90 लोग निवास करते हैं। गांव तक पहुंचने के लिए अच्छी सड़क नहीं बनी है। चारपहिया वाहन इस गांव तक बहुत कठिनाई से होकर ही पहुंच पाता है और बाइक व पैदल ही सफर करना पड़ता है।
पलारीडांड़ में सबसे अधिक पेयजल की समस्या है, क्योंकि गांव में किसी के घर कुआं भी नहीं है। कुछ साल पहले मात्र एक सरकारी हैंडपंप उत्खनन कर सोलर सिस्टम लगाया गया है, लेकिन कुछ तकनीकी खराबी के कारण पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाया है। जबकि ग्राम के स्कूल एवं आंगनबाड़ी के पास तीन हैंडपंप खनन भी कराया गया था लेकिन सूखा होने के कारण हैंडपंप नहीं लगाया गया है।
ग्रामीणों ने पेयजल की समस्या से निपटने के लिए अपने जुगाड़ से पहाड़ से निकलने वाले प्राकृतिक जल स्रोत तुर्रा को लकड़ी की पाइप लाइन बिछाकर गांव तक लाया है। इसमें बॉटल लगाकर ग्रामीणों का पीने का पानी मिल रहा है।
Water came from mountain
कांवर लेकर 3 किलोमीटर सफर करने की मजबूरी
ग्रामीणों का कहना है कि प्राकृतिक तुर्रा स्थल गांव से 1-2 किलोमीटर दूर स्थित है। कुछ साल पहले लकड़ी की पाइप के सहारे गांव तक पानी लाया गया था। लकड़ी पुराना व जर्जर होने के कारण पाइप फूट गया है, जिससे प्राकृतिक तुर्रा स्थल से पानी भरते हैं। ग्रामीण सुबह कांवर लेकर निकलते हैं और अपने घर के लिए पर्याप्त पानी लेकर आते हैं।
वहीं ग्राम के अधिकांश लोग बगल के ग्राम तंजरा में पेयजल के लिए रूख करते हैं, जो पलारीडांड़ से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित है। तंजारा गांव भी पहाड़ के नीचे बसा है। ग्रामीणों को कांवर लेकर पहाड़ चढ़कर अपने घर तक पहुंचना पड़ता है।

प्राकृतिक तुर्रा से 24 घंटे पानी मिलता है
ग्रामीणों के अनुसार गांव से लगे पहाड़ के बीच से एक तुर्रा है। जहां से मीठी जलधारा अनवरत बहती रहती है। इस जल स्रोत के अलावा कोई दूसरा जल स्रोत उपलब्ध नहीं है। ग्रामीण पेयजल की सुविधा मुहैया कराने शासन-प्रशासन से बार बार गुहार लगाकर थक गए, तब स्वयं की मेहनत कर पहाड़ की चोटी पर स्थित जल स्रोत के पानी को लकड़ी की पाइपनुमा आकृति में काट कर एक पाइप लाइन बनाई और लकड़ी के खंभों को ही बीच में पिलर की तरह खड़ाकर पानी को नीचे लाया गया है।
वर्तमान में इस पानी को ग्रामीण पीने के लिए अपने घरों में लाते हैं और लकड़ी की पाइप लाइन से पानी की पतलीधार प्यास बुझा रही है। लेकिन पानी भरने में काफी समय लगता है, क्योंकि तुर्रा से निकलने वाले पानी की धार बहुत पतली है।

अधिकारी-जनप्रतिनिधि उदासीन
ग्रामीणों के अनुसार गांव में मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने कई बार शासन-प्रशासन से गुहार लगाई गई है, लेकिन उनकी समस्या को किसी जनप्रतिनिधि-अधिकारी ने नहीं सुनी। ग्रामीण पानी की एक-एक बूंद को मोहताज हैं। एक मात्र सहारा सिर्फ तुर्रा ही है। वहीं पंचायत ने मनमानी कर 3 लाख 94 हजार की लागत से नाली निर्माण कराया गया है। इसका कोई औचित्य नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि यह राशि हैंडपंप या सोलर पंप पर खर्च होती तो आज गांव में शायद पेयजल की इतनी समस्या नहीं होती।
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