यहां तक जस्टिस दुबे की अध्यक्षता में जिला पुनर्गठन आयोग का गठन कर मनेंद्रगढ़ क्षेत्र के लोगों को आश्वस्त किया गया था। आयोग से प्रतिवेदन प्राप्त कर जिला बनाया जाएगा, लेकिन मनेंद्रगढ़ के पक्ष में प्रतिवेदन होने के बावजूद सामंती लोगों ने षड्यंत्र कर राजनीतिक कुटिलता से निजी स्वार्थों के कारण छल पूर्वक मनेंद्रगढ़ का हक छीन लिया। ऐसे में शहर को उसका वाजिब हक मिलने में एक लंबा वक्त लग गया।
रामानुज अग्रवाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के सीएम फार्मूले पर टीएस सिंहदेव द्वारा बार-बार यह कहना कि वे हाईकमान के निर्णय का पालन करते हैं। लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब उनके द्वारा हाईकमान के निर्णय को सिरे से नकार दिया गया था।
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वर्ष 2008 में प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में जब मनेंद्रगढ़ विधानसभा सीट से एनसीपी की ओर से चुनाव लड़े थे। उस दौरान कांग्रेसी आलाकमान और एनसीपी के बीच समझौता हुआ था। समझौते के तहत प्रदेश में केवल कांग्रेस ने 3 सीटें एनसीपी के लिए छोड़ी थी।
कांग्रेस का समर्थन पाने के लिए उनके द्वारा टीएस सिंहदेव को फोन कर समर्थन के लिए अनुरोध कर चर्चा की। परंतु उन्होंने कहा कि क्षेत्र में समझौता के लिए कांग्रेस हाईकमान कौन होता है। समझौते के बावजूद सिंहदेव के निर्देश पर सभी कांग्रेसियों ने विधानसभा चुनाव में खुलकर उनका विरोध किया और भाजपा के पक्ष में प्रचार किया।
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पार्टी के विरोध में किया कामअग्रवाल ने कहा कि
स्वास्थ्य मंत्री (Health Minister) जब कांग्रेस के सर्वे सर्वा बने थे, उस समय कांग्रेस का विरोध करना उचित नहीं था। आज कुर्सी के लिए ढाई-ढाई साल के फार्मूले पर बार-बार हाईकमान के निर्णय का पालन करने की बात कहने वाले ये बताएं कि पहले हाईकमान के निर्णय को सिरे से आखिर क्यों खारिज कर पार्टी के विरोध में काम किए।