कोरिया जिले के मछली पालन विभाग को वर्ष 216-17 में मछली बीज उत्पादन करने, मछुवारों को प्रशिक्षण, भ्रमण सहित कौशल विकास प्रशिक्षण देने के लिए 8.50 लाख राशि आवंटित की गई थी। वहीं स्पान मछली बीज उत्पादन करने 1420लाख, स्टैण्डर्ड फाई 385 लाख, मांगुर 0.50 लाख का टारगेट दिया गया था। मछली उत्पादन करने के लिए ३१७१ टन उत्पादन करने का लक्ष्य दिया गया था।
प्रशिक्षण पर 1250 रुपए, भ्रमण पर 2500 रुपए खर्च करने का दावा
वर्ष 2016-17 में मछुवारे को बढ़ावा देने के लिए 41 मछुवारे को 7.10 लाख रुपए आर्थिक सहायता दी गई थी। इसमें आइसबॉक्स-60 हजार, स्पान संवर्धन-3 लाख, अनुसूचित जनजाति को नाव-जाल-1.50 लाख, सामान्य हितग्राही को नाव-जाल-50 हजार और झिंगापालन पर 1.60 लाख खर्च शामिल हैं। इसके अलावा एक मछुवारे के प्रशिक्षण पर 1250 रुपए और बाहर भ्रमण पर 2500 रुपए खर्च किया जा रहा है।
मछली बीज उत्पादन पर 8.50 लाख खर्च
मछली व्यापारियोंं के अनुसार कोरिया में प्रतिदिन 7 से 8 क्क्टिल और हर महीने 25 क्विंंटल से अधिक मछली की खपत होती है। बांध, जलाशय और तालाबों में पर्याप्त मात्रा में मछली उत्पादन नहीं होने के कारण बाहर से आपूर्ति हो रही है। हर रोज ट्रक सहित अन्य वाहनों से बड़े पैमाने पर मछलियां लाकर बिक्री की जाती है।
बर्फ संयंत्र सह शीतगृह का निर्माण भी अधूरा
मछली पालन विभाग को वर्ष 2015 में एनएमपीएस केज परियोजना के तहत बर्फ संयंत्र सह शीत गृह का निर्माण कराने 65 लाख का बजट दिया गया था। विभागीय लापरवाही, उदासीनता के कारण निर्माण शुरू होने के करीब ढाई बाद भी कोल्ड स्टोर अधूरा पड़ा है। जिससे स्थानीय मछुवारे अपने मछली को ताजा रखने के लिए भटकने को मजबूर हैं। हालाकि कोल्ड स्टोर का मत्स्य महासंघ रायपुर की देखरेख में निर्माण कराया जा रहा है।
टीम ने इन बिंदुओं पर रिपोर्ट बनाई
1. क्या आइस बॉक्स योजना का लाभ मिला।
2. क्या मछली पालन का प्रशिक्षण मिला, अन्य प्रदेश भ्रमण कराने भेजा।
3. विभाग से मिलने वाले कितना मछली बीज मिला, उससे कितना मछली उत्पादन किया।
4. मछली उत्पादन से कितना लाभ मिला, किसे कितना, कहां बेचा।