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छत्तीसगढ़ के इस जिले ने बनाया ऐसा रिकॉर्ड, देखने के लिए दिल्ली से पहुंच गई टीम

locationकोरीयाPublished: Mar 18, 2018 01:00:37 pm

दिल्ली नाबार्ड की 2 सदस्यीय टीम ने जमीनी हकीकत का लिया जायजा, हितग्राहियों से 41 बिंदुओं के आधार पर पूछताछ कर रिपोर्ट बनाई

Delhi team

Delhi team in Koria

बैकुंठपुर. मछली पालन विभाग ने बीज उत्पादन, प्रशिक्षण सहित अन्य कार्यों के नाम पर लाखों खर्च कर रिकॉर्ड उपलब्धियां हासिल कर ली हैं लेकिन 2 हजार 773 टन मछली उत्पादन कर टारगेट से पिछड़ गया है। जबकि 3 हजार 171 टन मछली उत्पादन करने का लक्ष्य दिया गया है। इससे बाहरी व्यवसायी मछली आपूर्ति करने लगे हैं और स्थानीय मछुवारे लाभ से वंचित हैं।
फिर भी यह उत्पादन अपने आप में एक रिकॉर्ड है। मामले की जानकारी लगते ही दिल्ली से 2 सदस्यीय टीम योजनाओं के क्रियान्वयन, उपलब्धियां व जमीनी हकीकत की जांच करने पहुंची। कोरिया के विभिन्न जलाशय, तालाब, डेम सहित अन्य स्रोत से मछली उत्पादन करने वाले हितग्राहियों से चर्चा कर 41 बिंदुओं में जानकारी जुटाई गई और रिपोर्ट बनाकर नाबार्ड को सौंपी जाएगी।

कोरिया जिले के मछली पालन विभाग को वर्ष 216-17 में मछली बीज उत्पादन करने, मछुवारों को प्रशिक्षण, भ्रमण सहित कौशल विकास प्रशिक्षण देने के लिए 8.50 लाख राशि आवंटित की गई थी। वहीं स्पान मछली बीज उत्पादन करने 1420लाख, स्टैण्डर्ड फाई 385 लाख, मांगुर 0.50 लाख का टारगेट दिया गया था। मछली उत्पादन करने के लिए ३१७१ टन उत्पादन करने का लक्ष्य दिया गया था।
मछली उत्पादन करने में पिछड़ गया है। वहीं सालभर में 2773.05 टन मछली उत्पादन करने का दावा किया गया है। स्थानीय मछली व्यापारियों का कहना है कि कोरिया में औसत आंकड़े के अनुरूप हर साल मात्र 100 मीट्रिक टन मछली उत्पादन होता है। जबकि हर साल मछली की मांग 350 मीट्रिक टन है। हर महीने लगभग 25 क्विंटल मांग और लगभग 10 क्विंटल उत्पादन होता है।
इससे बाहरी मछुवारे मछली की आपूर्ति कर रहे हैं और स्थानीय मछली पालक लाभ से वंचित हैं। हालांकि विभागीय अधिकारियों ने मार्च महीने तक टारगेट पूरा होने की बात कही है।

नाबार्ड दिल्ली के वरिष्ठ अधिकारी बिरेंद्र कुमार के नेतृत्व में 2 सदस्यीय टीम मछली बीज-उत्पादन व योजनाओं की जमीनी हकीकत जांचने पहुंची। दिल्ली की टीम ने कोरिया के हर जलाशय, बांध, डेम, तालाब में मछली उत्पादन करने वाले हितग्राही से एक-एक कर योजना का लाभ मिलने की जानकारी लेकर रिपोर्ट बनाई है।

प्रशिक्षण पर 1250 रुपए, भ्रमण पर 2500 रुपए खर्च करने का दावा
वर्ष 2016-17 में मछुवारे को बढ़ावा देने के लिए 41 मछुवारे को 7.10 लाख रुपए आर्थिक सहायता दी गई थी। इसमें आइसबॉक्स-60 हजार, स्पान संवर्धन-3 लाख, अनुसूचित जनजाति को नाव-जाल-1.50 लाख, सामान्य हितग्राही को नाव-जाल-50 हजार और झिंगापालन पर 1.60 लाख खर्च शामिल हैं। इसके अलावा एक मछुवारे के प्रशिक्षण पर 1250 रुपए और बाहर भ्रमण पर 2500 रुपए खर्च किया जा रहा है।

मछली बीज उत्पादन पर 8.50 लाख खर्च
मछली व्यापारियोंं के अनुसार कोरिया में प्रतिदिन 7 से 8 क्क्टिल और हर महीने 25 क्विंंटल से अधिक मछली की खपत होती है। बांध, जलाशय और तालाबों में पर्याप्त मात्रा में मछली उत्पादन नहीं होने के कारण बाहर से आपूर्ति हो रही है। हर रोज ट्रक सहित अन्य वाहनों से बड़े पैमाने पर मछलियां लाकर बिक्री की जाती है।
मामले में मत्स्य विभाग का कहना है कि मुख्यालय में बीज उत्पादन व संवर्धन केन्द्र है। जिसमें जुलाई-अगस्त के महीने में मछली बीज का उत्पादन किया जाता है। मछली बीज उत्पादन करने के लिए वर्ष 2017-17 में 8.50 लाख खर्च किए गए थे।

बर्फ संयंत्र सह शीतगृह का निर्माण भी अधूरा
मछली पालन विभाग को वर्ष 2015 में एनएमपीएस केज परियोजना के तहत बर्फ संयंत्र सह शीत गृह का निर्माण कराने 65 लाख का बजट दिया गया था। विभागीय लापरवाही, उदासीनता के कारण निर्माण शुरू होने के करीब ढाई बाद भी कोल्ड स्टोर अधूरा पड़ा है। जिससे स्थानीय मछुवारे अपने मछली को ताजा रखने के लिए भटकने को मजबूर हैं। हालाकि कोल्ड स्टोर का मत्स्य महासंघ रायपुर की देखरेख में निर्माण कराया जा रहा है।

टीम ने इन बिंदुओं पर रिपोर्ट बनाई
1. क्या आइस बॉक्स योजना का लाभ मिला।
2. क्या मछली पालन का प्रशिक्षण मिला, अन्य प्रदेश भ्रमण कराने भेजा।
3. विभाग से मिलने वाले कितना मछली बीज मिला, उससे कितना मछली उत्पादन किया।
4. मछली उत्पादन से कितना लाभ मिला, किसे कितना, कहां बेचा।
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