प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 126 राफेल लड़ाकू जहाज खरीदने के कांग्रेस सरकार की अंतरराष्ट्रीय टेंडर को खारिज कर दिया और नियम कानून को ताक पर रखकर बिना कोई टेंडर निकाले व बिना कोई बोली लगाए ही 36 राफेल लड़ाकू जहाज खरीदने का निर्णय लिया है। मामले में मोदी सरकार सच्चाई बताने व तथ्यों को सार्वजनिक पटल पर रखने से इनकार कर रही है।
प्रधानमंत्री ने राफेल घोटाले पर पर्दा डालने के लिए साजिश के तहत चुप्पी साध ली है। उन्होंने कहा कि राफेल खरीदी में सरकारी खजाने को 41 हजार 205 करोड़ की चपत लगाई गई है।
कांग्रेस सरकार ने 12 दिसंबर 2012 में अंतरराष्ट्रीय बोली लगाकर प्रत्येक लड़ाकू जहाज का मूल्य 526.10 करोड़ निर्धारित किया था, जिससे 36 लड़ाकू जहाज का मूल्य 18 हजार 940 करोड़ था। लेकिन मोदी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय सौदे को निरस्त कर 10 अप्रैल 2015 को 36 राफेल जहाज 4.5 बिलियन यूरो (1670.70 करोड़ प्रति जहाज) से खरीदे हैं। इस हिसाब से 36 जहाज की कीमत 60 हजार 145 करोड़ रुपए है।
रिलायंस का 12 दिन पहले पंजीयन, 1 लाख 30 हजार करोड़ का कांटै्रक्ट
नेता प्रतिपक्ष सिंहदेव ने कहा कि मूल्य का खुलासा डसॉल्ट एविएशेन की वार्षिक रिपोर्ट 2016 और रिलायंस की 16 फरवरी 2017 की प्रेस विज्ञप्ति से हुआ है। 36 हजार करोड़ का ऑफसेट कांट्रैक्ट सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड से छीन लिया गया है। वहीं रिलायंस को 30 हजार करोड़ का कांट्रैक्ट दिया।
जबकि रिलायंस को लड़ाकू जहाज निर्माण का अनुभव शून्य है। अंबानी की कंपनी रिलायंस को सौदे से सिर्फ 12 दिन पहले पंजीयन कराया गया था। उन्होंने कहा कि रिलायंस की वेबसाइट आर इंफ्रा के अनुसार डसॉल्ट एविएशन से 30 हजार करोड़ का ऑफसेट कंाट्रैक्ट व अतिरिक्त 1 लाख करोड़ का लाइफ साइकल कॉस्ट कांट्रैक्ट मिला है। कुल मिलाकर 1 लाख 30 हजार करोड़ का कांट्रैक्ट दिया गया है।