डॉ. सिंह के अनुसार अगर स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर की जिमनास्टिक प्रतिस्पर्धाओं में सामान्यता पारम्परिक जिमनास्टिक के रूप में ही बच्चों को तैयार किया जाता है। ऐसे में प्रतिभाएं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली आर्टिस्टिक प्रतिस्पर्धाओं में फिसड्डी साबित होते हैं। ऐसे में आवश्यकता है कि प्रतिभाओं को शुरुआत से ही चाहे वो स्थानीय स्तर पर हों या राज्य स्तर पर या फिर राष्ट्रीय स्तर पर पारम्परिक जिमनास्टिक के बजाय आर्टिस्टिक जिमनास्टिक में नियम व मापदंडानुसार तैयार किया जाए तो मुमकिन है कि भारत की प्रतिभाएं लगातार जिमनास्टिक में परचम लहराती रहें।
संभाग मुख्यालय कोटा में भी नहीं एक्यूपमेंट
इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि संभाग मुख्यालय कोटा में जिमनास्टिक के पूर्ण साजोसामान भी नहीं हैं। ऐसे में झालावाड जिले से एक्यूपममेंट मंगवाकर जिमनास्टिक प्रतियोगिता करवाई जा रही है।
भारत से अभी तक दीपा ने ही रचा इतिहास
त्रिपुरा की अर्जुन अवार्र्डी दीपा करमाकर एक मात्र भारतीय है, जिसने साठ के दशक के बाद 52 वर्षों के भारतीय इतिहास में क्वालीफाइंग इवेंट में अच्छा प्रदर्शन कर ओलम्पिक का टिकट हासिल किया। पहली बार किसी भारतीय एथलीट ने ओलम्पिक की जिमनास्टिक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया।