सोसायटी के औषधि भंडार द्वारा संचालित लाइफ लाइन फ्ल्यूड स्टोर एवं बीपीएल मरीजों की निशुल्क दवाओं के वितरण स्टोर की स्वतंत्र गवाह व ड्रग इंस्पेक्टर के समक्ष आकस्मिक चेकिंग की। जिसमें 1 जनवरी 1998 से 31 दिसंबर 1998 तक औषधि उपकरण अन्य सामानों के खरीद संबंधित रेकॉर्ड का अवलोकन किया। जिसमें डिस्पोजल सीरिज, एचबीएस, एजी किट,आईबी सेट, ब्लड गु्रप सिरम टेस्ट, कैनुला, डिस्पोजल, नीडल सरकार द्वारा अनुमोदित मूल्य सूची की दरों से अधिक दर पर खरीदने के मामला सामने आया। एमबीएस अस्पताल अधीक्षक डॉ.एसपी श्रीवास्तव व अन्य आरोपियों के विरुद्ध 2001 में प्रकरण दर्ज कर अनुसंधान शुरू किया गया।
प्रकरण में चालान पेश करने का निर्णय लिया गया। लेकिन न्यायालय में चालान पेश करने से पूर्व आरोपियों द्वारा हाईकोर्ट से अग्रिम कार्रवाई पर स्थगन आदेश लेकर आने के कारण प्रकरण में कार्रवाई रूकी रही। इसके बाद वर्ष 2017 में हाईकोर्ट से रिटें निस्तारित होने के बाद प्रकरण में एसीबी द्वारा अनुसंधान किया जाकर एफआर साक्ष्य के अभाव में पेश की गई। जिस पर न्यायालय द्वारा सुनवाई करते हुए प्रकरण में अधूरा अनुसंधान माना गया और प्रकरण को पुलिस अधीक्षक एसीबी कोटा रेंज को जांच के लिए भेजकर 3 माह में रिपोर्ट तलब की है।
गौरतलब है कि मामले में तो एफ आईआर दर्ज हुई। पहली एफ आईआर में तो अभियोजन स्वीकृति भी प्राप्त हो चुकी है और दूसरी एफ आईआर में चालानी निर्णय लिया जा चुका है।एक प्रकरण में डॉ.एसपी श्रीवास्तव, अधीक्षक आरएस वजानी, डॉ आरएस शर्मा, कनिष्ठ लेखाकार एमबीएस अस्पताल अभिनंदन कुमार जैन, अजय सोरल, विजेंद्र कुमार, उषा गैरा, सुमन शर्मा, दिनेश कुमार शर्मा के विरुद्ध दर्ज किया गया था। जबकि दूसरा प्रकरण डॉ एसपी श्रीवास्तव चिकित्सालय अधीक्षक व सदस्य सचिव राजस्थान मेडिकल रिलीफ सोसायटी विजेंद्र कुमार बंसल, उषा गैरा, सुमन शर्मा व लकी बाटला के खिलाफ दर्ज किया गया था।