वहीं दूसरी ओर शहर के रंगकर्मी हैं, जिन्हें ऑडिटोरियम की दरकार है। यूआईटी ने ऑडिटोरियम बनाकर वाहवाही लूटी, लेकिन किराया इतना है कि उनके बूते से बाहर है। राजस्थान पत्रिका ने रंगकर्मियों के दर्द को लेकर शहर में विभिन्न कलाकारों से बात की तो वे रंगकर्मियों के खुलकर समर्थन में आए।
एक कलाकार को अपनी कला के प्रदर्शन के लिए ऑडिटोरियम की जरूरत होती है। शहर में ऑडिटोरियम है, लेकिन किसके लिए, पता नहीं। एक कलाकार 70 हजार रुपए किराया नहीं दे सकता। प्रशासन को कम से कम कला से जुड़े कार्यक्रमों के लिए इसे नि:शुल्क या वाजिब किराए में उपलब्ध कराना चाहिए।
अरुणिमा तिवारी, कथक नृत्यांगना कलाकार अपनी कला दिखाने के लिए किसी से शुल्क नहीं वसूलता। एेसे में प्रशासन का इतना तो दायित्व बनता है कि कलाकारों के लिए बना ऑडिटोरियम उन्हें सौंप दिया जाए। ऑडिटोरियम का व्यवसायिक उपयोग हो रहा है। एेसे में शहर का कलाकार कहां जाएगा।
वैभव गौतम, रामलीला कलाकार जिस तरह से चिकित्सक को चिकित्सालय की जरूरत होती है, उसी तरह से एक कलाकार को मंच की जरूरत होती है। संगीत हो या नाट्य कार्यक्रम, शहर में एेसा कोई स्थान नहीं है, जो कलाकारों के अधीन हो। एेसे में ऑडिटोरियम कलाकारों को सौंप देना चाहिए।
देवेन्द्र सक्सेना, संगीत शिक्षक हम ऑडिटोरियम के लिए बरसों से मांग करते रहे। सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर ऑडिटोरियम बनवाया भी, लेकिन व्यवसायिक उपयोग के लिए। जिस ऑडिटोरियम में आज दिन तक एक भी नाट्य प्रस्तुति नहीं हुई हो, वो किस काम का। रंगकर्मियों का दर्द किसी को नहीं दिखाई देता।
संदीप रॉय, रंगकर्मी शहर में चित्रकारों के लिए आर्ट गैलेरी है, लेकिन रंगकर्मियों के लिए कुछ नहीं। मजबूरन रंगकर्मियों को आर्ट गैलेरी के पीछे बने चबूतरे पर अपनी नाट्य कला प्रस्तुत करनी पड़ती है। ये तो कलाकारों के साथ भेदभाव है। नाट्य कला वैसे भी जन जागरण के मुद्दों से जुड़ी होती है।
हिना ताज, चित्रकार कलाकारों को हमेशा सरकार के प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है। इसलिए सरकारी ऑडिटोरियम उन्हें न्यूनतम दर पर समय-समय पर मिलता रहे तो रंगकर्मी और कलाकारों के लिए लिए यह सुखद अहसास होगा।
संगीता सक्सेना