हालांकि क्षेत्र में मगरमच्छों की गिनती कभी नहीं हुई, लेकिन विभाग इनकी संख्या 50 से 60 के करीब मानता है, वहीं हाथीखेड़ा के डॉ. जितेन्द्र चौधरी व चन्द्रेसल मठ पर आने नियमित रूप से दर्शन को आने वाले प्रेमशंकर योगी बताते हैं कि नदी में मगर मच्छों की संख्या इससे कई गुना अधिक है।
यहीं चन्द्रेसल गांव में एक मठ है। इसमें शिव मंदिर है। इस मठ के पास चन्द्रलोई नदी नदी के किनारों में इन्हेें आए दिन सुस्ताते देखा जा सकता है। लगता है जैसे मगरमच्छों ने भगवान शिव की शरण में अपना डेरा डाल लिया है। इन सबके बावजूद मगर मच्छों की ओर किसी का कोई विशेष ध्यान नहीं हैं। मगरमच्छ वन्यजीवों की प्रथम श्रेणी का प्राणी है।
सर्दी आते ही किनारों पर डेरा सर्दी आने के साथ ही ये किनारे पर आ जाते हैं दिनभर धूप का आनंद लेते रहते हैं। चौधरी बताते हैं कि हाथी खेड़ा में उनके खेत के सामने एक साथ 10 से 12 मगर मच्छों का झुंड देखा जा सकता है। नदी में बीच बीच में जहां पानी सूख जाता है, वहीं बीच में आकर बैठ जाते हैं। दिनभर धूप सेतते हैं। कई बार तो ये बस्ती की ओर भी रूख कर लेते हैं। लोगों ने बताया कि ये चतुर भी इतने हैं कि जरा सी आहट होते ही तेजी से पानी में छलांग लगा लेते हैं।
इनका खौफ भी गहरा नदी के आसपास बसे क्षेत्र के वासियों में मगर मच्छों का खौफ है। लोगों ने नदी में नहाना बंद कर दिया है। कब कहां किसे मगरमच्छ अपने जबड़े में पकड़ ले। क्षेत्रवासियों के अनुसार कई बार इस तरह की घटनाएंभी हो चुकी है। गत वर्ष भी एक बालक को मगर मच्छ ने शिकार बना लिया था। नदी में पानी पीने के लिए आने वाले मवेशियों को भी ये शिकार बना लेते हैं।
करीब 16 किलोमीटर का क्षेत्र चन्द्रलोई नदी मानस गांव के पास चंबल में मिल जाती है, लेकिन इससे पहले करीब 15 से 16 किलोमीटर में मगर मच्छों की काफी संख्या है। रायपुरा देवली अरब,राजपुरा,जग्गनाथपुरा, बोरखंडी हाथी खेड़ा,अर्जुनपुरा में इन्हें देखा जा सकता है।
जालियां लगाकर करें सुरक्षित, क्रोकोडाइल पांइट बने नेचर प्रोमोटर एएच जैदी बताते हैं कि इन मगरमच्छों व नदी के संरक्षण को लेकर सरकार को कोई ठोस योजना बनानी चाहिए। नदी के घाट पर किनारों से कुछ दूरी पर फैंसिग कर दी जाए तो यह सुरक्षित रह सकते हैं और ग्रामीणों का भय भी दूर हो सकता है। पूर्व में इन मगरमच्छों को रेस्क्यू करने की बात भी सामने आई थी, 25 वर्षों में इनकी संख्या कई गुना बढ़ गई है।
सरकार घाट व मवेशियों के पानी पीने के स्थानों को चिन्हित कर फेंसिंग की व्यवस्था करे। जैदी का मानना है कि नदी के किनारे प्राचीन चन्द्रेसल मठ है। यह पुरातत्व की दृष्टि से भी काफी महत्व का है। यहां काफी पर्यटक आते हैं, इसे देखते हुए क्षेत्र में क्रोकोडाइल पाइंट विकसित कर दिया जाए तो सोने पे सुगंध आ सकती है।
इनका कहना है जिला पर्यटन अधिकारी संदीप श्रीवास्तव के अनुसार क्षेत्र में मगरमच्छों की संख्या को देखते हुए हमने पूर्व में सुझाव भी दिया था कि चन्द्रेसल मठ क्षेत्र में क्रोकोडाइन पाइंट बना दिया जाए तो इनके संरक्षण व मगरमच्छों से क्षेत्र के वासियों की सुरक्षा के साथ पर्यटकों के लिए भी यह क्षेत्र आकर्षण बन सकता है। यहां स्थित मठ काफी महत्व का है। पर्यटन विभाग यहां कार्य भी करवा रहा है ।
वन विभाग की लाडपुरा रेंज के क्षेत्रीय वन अधिकारी संजय नागर के अनुसार क्षेत्र में मगरमच्छों की गिनती तो नहीं की, लेकिन नदी में इनकी संख्या काफी है। यहां की स्थिति से उच्च अधिकारियों को अवगत करवाएंगे। वन्यजीव विभाग के उपवन संरक्षक डॉ. आलोक गुप्ता कहते हैं कि क्षेत्र को दिखवाया जाएगा, यदि यह हमारे विभाग क्षेत्र में है तो इसमें क्या अच्छा हो सकता है करने के प्रयास करेंगे।