कोटा

Special News: इस मामले में महिलाओं से आगे निकल रहे पुरुष, कमा रहे लाखों

शादी ब्याह पर मेहंदी लगाने की बात होती है तो जिक्र महिलाओं का होता है। यहां महिलाएं ही नहीं मेहंदी मांडने के फन में पुरुष भी माहिर हैं।

कोटाApr 25, 2018 / 11:13 am

​Zuber Khan

ladki ki shadi ke upay

कोटा . शादी ब्याह या अन्य अवसरों पर मेहंदी लगाने की बात होती है तो जिक्र महिलाओं का होता है। लेकिन इस शहर की फिजा अलग हैं, यहां महिलाएं ही नहीं मेहंदी मांडने के फन में पुरुष भी माहिर हैं। इसे रोजी का जुगाड़ करेंगे या शौक नाम देंगे। कुछ भी कहिए शहर में कई जगहों पर युवा दुल्हन के हाथों मनचाही मेहंदी की डिजाइनों को अंजाम देते नजर आ जाएंगे।
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शहर में विभिन्न क्षेत्रों में 10 से 15 युवक हैं जिन्होंने मेहंदी मांडने को ही अपना पेशा बना लिया है और वे मेहंदी मांडने की इस कला को समृद्ध बना रहे हैं। इनका ऐसा विश्वास जम गया है कि खास अवसरों पर लोग इन्हें सम्मान के साथ बुलाते हैं और मेहंदी लगवाते हैं। इसका इन्हे ‘शगुन भी मिलता है। शहर के विभिन्न क्षेत्रों में इस तरह की स्टॉलें देखी जा सकती है।
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अच्छा रहता है रेस्पांस

गुमानपुरा क्षेत्र में पेशे से जुड़े हुए कोटड़ी रोड पर लोकेश व आकाश बताते हैं कि शहर में उन्हें अच्छा रेस्पॉस मिल रहा है। लोग उन्हें सम्मान के साथ बुलाते हैं और मेहनताना भी पूरा देते हैे। कई पाटियां तो महिने दो महिने पहले ही ऑर्डर दे जाते हैं। अक्षय तृतीया, देवउठनी, बसंतपंचमी व अन्य सावे, गणगौर , करवा चौथ, तीज जैसे प्रमुख त्योहारों पर फुरसत नहीं मिलती। कई बार काम ही नहीं होता।

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काम के अनुसार दाम

दूल्हा -दुल्हन को नेक कार्य पर निर्भर करता है। जैसा कार्य होता है, नेक भी वैसा ही मिलता है। बॉम्बे अरबियन,राजस्थानी, मारवाड़ी, गुजराती,इडियन, अरेबिक, पाकिस्तानी, अमेरिकन समेत मेहंदी मांडने की कई स्टाइलें है। इनके साथ ही केवल हथेली, भरवा हाथ, कोहनी तक या पूरा हाथ, पैरों में मेहंदी अलग अलग स्टाइल की मेहंदी के मांडने का अलग अलग पारिश्रमिक है। यह 100-200 रुपए से शुरु होकर ढाई से तीन हजार या अधिक भी हो सकता है।
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दुल्हन का नेक ज्यादा

गुमानपुरा क्षेत्र मे एक युवक के अनुसार दुल्हन को मेहंदी लगाने का नेक ज्यादा है। यह पांच से छह हजार तक भी हो सकता है। दुल्हन के हाथों में डोली शहनाई, दूल्हे का नाम, वहीं दूल्हे के हाथ, प्राकृतिक छटा व अन्य डिजाइने बनाई जाती है। इसमें समय भी ज्यादा लगता है और परिश्रम भी अधिक लगता है। दूल्हे साधारण मेहंदी लगवाते हैं।
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अधिक डिजाइन, समय की बचत
इधर ईशा गौतम बताती है कि आज कल भागदौड़ भी ज्यादा हो गई है। परिवार के लोग भी अब मौके पर ही शादी ब्याह अटेंट करते हैं।इस स्थिति में रस्में सिमट रही है। घरों में महिलाओंं को मेहंदी लगाने की फुरसत नहीं मिलती। इसके चलते लोग बाजार में मेहंदी लगवाने का क्रेज बढ़ा है। प्रोफेशनल रूप से कार्य कर रहे इन युवकों के पास डिजाइनों की भी भरमार रहती है। ये थोड़ी ही देर में आकर्षक व मनचाहा हाथ मांड देते हैं।
 

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