कोटा

निजी अस्पतालों में प्रसव के लिए मिलीभगत से चल रहा दलाली का खेल ! यूं खुला राज…

आशा सहयोगिनियों को मोटे कमीशन का लालच देकर साथ मिला लिया

कोटाFeb 25, 2020 / 10:37 am

Suraksha Rajora

निजी अस्पतालों में प्रसव के लिए मिलीभगत से चल रहा दलाली का खेल ! यूं खुला राज…

कोटा. निजी अस्पतालों में संस्थागत प्रसव कराने के लिए एक एनजीओ की ओर से दलाली करने का खेल सामने आया है। इस खेल में एनजीओ ने पहले तो कुछ निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम से सांठगांठ कर एमओयू किया, फि र आशा सहयोगिनियों को मोटे कमीशन का लालच देकर साथ मिला लिया। यह सारा खेल मेरी गोल्ड संस्था के माध्यम से खेला जा रहा है। कुछ अस्पताल/नर्सिंग होम इस नेटवर्क में शामिल हैं, जो आशा सहयोगिनियों की मदद से दलाली का खेल खेलकर मोटा मुनाफ ा कमा रहे हैं।
ऐसे चल रहा दलाली का खेल

इस खेल में पहले तो संस्था प्राइवेट अस्पताल/नर्सिंग होम से सम्पर्क करती है। उनसे सालाना 1 लाख 50 हजार का एग्रीमेंट (करार) करती है। शर्त के अनुसार, निजी अस्पताल/नर्सिंग होम संचालकों को ये राशि चेक द्वारा भुगतान करनी होती है। एग्रीमेंट साइन होने के बाद वह मेरी गोल्ड अस्पताल की श्रेणी में आ जाता है। दूसरी तरफ आशा सहयोगिनियों से मीटिंग कर उन्हें कमीशन का लालच देकर मेरी गोल्ड वर्कर बनाया जाता है। ये मेरी गोल्ड वर्कर ही इन मेरी गोल्ड हॉस्पिटल में प्रसव के केस लाने का काम कर रही हैं। केस लाने की एवज में हॉस्पिटल संचालक उन्हें 15 सौ रुपए तक कमीशन दे रहे हैं।
यूं खुला राज…
दरअसल, कई महीनों से सरकारी अस्पतालों में प्रसव में कमी आई है। सीएमएचओ कार्यालय में किसी ने इस दलाली के नेटवर्क के बारे में जानकारी दी। इसके बाद सीएमएचओ ने मामले की छानबीन शुरू की तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। इस संगठित नेटवर्क के जरिए (मेरी गोल्ड वर्कर ) गर्भवती महिलाओं को सरकारी अस्पतालों के बजाय निजी अस्पताल/नर्सिंग होम में प्रसव के लिए ले जा रही हैं।
दो से तीन जगहों पर नेटवर्क
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कोटा में दो-तीन जगह पर ये नेटवर्क सक्रिय है, जहां मेरी गोल्ड के नाम पर ये कमीशन का खेल चल रहा है। इनमें कुछ आशाएं दलाली का काम कर रही हैं। इसके चलते गर्भवती महिलाओं को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
आशाएं अहम किरदार!

आशा सहयोगिनियां घर-घर जाकर वेक्सिनेशन करती हैं। गर्भवती महिलाओं को न्यूट्रिशियन देना व इंजेक्शन लगाती हैं। ऐसे में इसमें आशा सहयोगिनियां अहम किरदार हंै। इस नेटवर्क में आशाएं, मरीज के परिजनों को प्राइवेट अस्पतालों (मेरी गोल्ड अस्पताल) में जाने के किए प्रोत्साहित करती हैं। इस पर उनको मोटा कमीशन मिलता है।

पत्रिका ने भी की पड़ताल
पत्रिका ने इस पूरे नेटवर्क की हकीकत जानने के लिए एक प्रसूति विशेषज्ञ की मदद ली। महिला चिकित्सक ने संस्था के प्रतिनिधि अविनाश डागा से फ ोन पर सम्पर्क किया तो इसमें डागा ने ये माना कि मेरी गोल्ड के तहत ये काम किया जा रहा है।
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कुछ समय से सरकारी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं के प्रसव की संख्या में कमी आई है। जब इसकी मॉनिटरिंग की तो गड़बड़झाला सामने आया। इसे रोकने के लिए आशा सहयोगिनियों को सरकारी अस्पतालों में ज्यादा से ज्यादा प्रसव करवाने के निर्देश दिए हैं, बल्कि ऐसी कार्मिकों को हटाने के लिए अनुशंसा करनी पड़ेगी। मेरी गोल्ड एनजीओ का भी पता लगा रहे है।
– डॉ. बी.एस. तंवर, सीएमएचओ, कोटा
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