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कानून की धज्जियां उड़ा रहे राजस्थान के ये 12 थाने, कागजों में सिमटा बाल कल्याण

locationकोटाPublished: Nov 19, 2019 12:02:02 pm

Submitted by:

Suraksha Rajora

अराजकता : शहर के सिर्फ छह थानों में ही तैनात हैं बाल कल्याण अधिकारी,सर्वोच्च न्यायालय और बाल संरक्षण आयोग के आदेशों की अवहेलना

कानून की धज्जियां उड़ा रहे राजस्थान के ये 12 थाने, कागजों में सिमटा बाल कल्याण

कानून की धज्जियां उड़ा रहे राजस्थान के ये 12 थाने, कागजों में सिमटा बाल कल्याण

कोटा. दुनिया के सातवें सबसे युवा शहर कोटा की पुलिस बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण को लेकर इस कदर लापरवाह है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के सात साल बाद भी शहर के 18 थानों में से सिर्फ छह में बाल कल्याण अधिकारी की तैनाती कर सकी है। कोटा पुलिस की इस लापरवाही की पोल खुद पुलिस मुख्यालय की अधिकारिक वेबसाइट खोल रही है।
केस 1.

शासन सचिव श्रम एवं आयुक्त कौशल विकास नवीन जैन 16 नवम्बर को 736 वॉलेंटियर के साथ कोटा के 82 स्कूलों में 35 हजार से ज्यादा बच्चों के बीच जाकर पूरे दिन उन्हें अच्छे और बुरे स्पर्श के बीच अंतर करने का प्रशिक्षण देते हैं, ताकि कोई भी बच्चा शारीरिक शोषण का शिकार न होने पाए और बढ़ते लैंगिक अपराधों से उन्हें बचने और लडऩे का तरीका सिखाया जा सके।
केस 2.

बाल संरक्षण अधिनियम के तहत थाना स्तर पर अनिवार्य रूप से तैनात होने वाले बाल कल्याण अधिकारियों की सूची तलाशने के लिए जब राजस्थान पुलिस मुख्यालय का आधिकारिक पोर्टल खोला जाता है तो कोटा शहर के 18 थानों में से महज छह में ही बाल कल्याण अधिकारियों की तैनाती की जानकारी मिलती है। बाल मित्र थाने, बाल डेस्क, महिला एवं पुरुष बाल सहयोगी और बाल मनोवैज्ञानिकों का रिकॉर्ड तो पूरा पोर्टल खंगालने के बावजूद दिखाई नहीं पड़ता। ‘

नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने बचपन बचाओ आंदोलन के तहत वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट में बच्चों की देखभाल और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए जनहित याचिका दाखिल की थी। जिस पर निर्णय सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई 2013 को 18 साल से कम आयु के बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी पुलिस थानों में एक उपनिरीक्षक स्तर के पुलिस अधिकारी को बतौर बाल कल्याण अधिकारी नियुक्त करने के आदेश दिए थे। इसके साथ ही सरकारों को किशोर न्याय अधिनियम को और भी सख्त करने को भी कहा था।

करना था यह काम
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर पुलिस का व्यवहार बच्चों के अनुकूल बनाने के लिए पुलिस मित्र थाने बनाने और बाल डेस्क खोलने के साथ ही बाल कल्याण अधिकारी के साथ एक महिला एवं एक पुरुष सहयोगी और एक बाल मनोवैज्ञानिक नियुक्त करने के भी निर्देश दिए थे, लेकिन इन सबकी बात तो छोडि़ए कोटा पुलिस बाल कल्याण अधिकारियों तक की तैनाती सुनिश्चित नहीं कर पाई है।
सिर्फ छह थानों में हुई तैनाती
राजस्थान पुलिस मुख्यालय के मुताबित कोटा के 18 थानों में से सिर्फ अनन्तपुरा, दादाबाड़ी, कुन्हाड़ी, नयापुरा, रेलवे कॉलोनी और उद्योग नगर थाने में ही बाल कल्या अधिकारी तैनात हैं। बाकी 12 थानों गुमानपुरा, किशोरपुरा, भीमगंजमंडी, कैथूनीपोल, मकबरा, कोतवाली, महावीर नगर, विज्ञान नगर, महिला थाना, जवाहर नगर, बोरखेड़ा और आरकेपुरम थाने में यह जिम्मेदारी कौन निभा रहा है इसकी जानकारी खुद मुख्यालय तक को नहीं है। जबकि इनमें से चार थाने तो ऐसे हैं जिनमें देश भर के करीब डेढ़ लाख बच्चे पूरे साल परिजनों के बिना रहते हैं।

हाईकोर्ट ने लगाई थी फटकार
मई 2018 में इमानुअल अनाथालय से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कोटा पुलिस की फटकार लगाते हुए कहा था कि जेजे एक्ट की पालना कराने के लिए मौजूदा समय में बाल कल्याण अधिकारी की तैनाती और विशेष किशोर पुलिस इकाई बनाने की बेहद जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा था कि यदि इनका गठन नहीं हुआ है तो सामान्य पुलिस से निरीक्षण में सहयोग नहीं लिया जा सकता। स्थानीय पुलिस के पास ये इकाई नहीं है तो वह निरीक्षण नहीं कर सकती।

आयोग ने दिए निर्देश
राजस्थान राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष संगीता बेनीवाल ने इसे गंभीरता से लेते हुए कहा कि पुलिस को सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की पालना करते हुए सभी थानों में बाल कल्याण अधिकारी की तैनाती सुनिश्चित करनी ही होगी। इतना ही नहीं बाल डेस्क स्थापित कर शिकायत एवं समाधान रजिस्टर भी रखना होगा। कोटा में इन आदेशों की अवहेलना हो रही है तो इसकी जांच करवा कर कार्रवाई करेंगे।

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