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जीने का बेमिसाल सलीका सिखाता है पत्थरों के लिए दुनिया भर में मशहूर यह शहर

locationकोटाPublished: May 14, 2019 10:33:25 pm

Submitted by:

​Vineet singh

नायाब और पुख्ता पत्थर ही नहीं तरक्की की रवायतों का शहर कोटा… जहां सलीके और हुनर से डॉक्टर और इंजीनियर भी तराशे जाते हैं… मुकुंदरा की कंदराओं से लेकर देशभर के नामचीन इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानों तक बिखरे सभ्यता के सुनहरे पन्ने… दुनिया भर के यायावरों को ही नहीं तरक्की की तलाश में निकले किशोरों को भी बरबस अपनी ओर खींच लाते हैं। मुसाफिर कोई भले ही अपने शहर लौट जाए, लेकिन डिसेंसी और कॉन्फिडेंस के साथ जीने का सलीका सीखने के लिए मेरे शहर को याद न करे ऐसा हो ही नहीं सकता।

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कोटा.

जंगली जिंदगी जीकर आजिज आ चुके आदिमानवों ने जब सिविलाइजेशन की शुरुआत की तो पत्थरों के इस शहर कोटा को चुनना नहीं भूला। मुकुंदरा की कंदराओं में फैली रॉक पेटिंग्स इस बात की गवाह है कि उसने बेतरतीब जिंदगी को छोड़ नियम कायदों के साथ जीने की यहां सफल शुरुआत की। दौर बदला तो सबसे अराजक समझी जाने वाली युवा पीढ़ी को सभ्यता की नई राह दिखाने से भी यह शहर पीछे नहीं हटा।
सीखने को मिली टाइम डिसेंसी

नीट और एम्स की तैयारी करने कानपुर से आई दीक्षा डिसेंसी का जिक्र छिड़ते ही कहती हैं कि जब से मोबाइल में मल्टी मीडिया समाया है बड़े बड़ों की बात तो छोडि़ए बच्चों के हाथ से नहीं छूटता, लेकिन कोटा में आकर सबसे पहले एक इलेक्ट्रानिक गेजेट की वजह से जाया हो रहे वक्त की कीमत को समझा। अब आलम यह है कि घंटी बजने पर याद आता है कि मेरे पास मोबाइल भी है। ऐसी ही तमाम वो चीजें जो बेशकीमती वक्त खराब करती हैं, जिंदगी से दूर हो चुकी हैं। कौन सी चीजें जरूरी है और उन्हें कितना वक्त देना यानि टाइम डिसेंसी मैंने इसी शहर कोटा से सीखी है। जिसे चाहकर भी नहीं भूला सकती।
सीखी जीने की तहजीब

यूपी के हाथरस से इंजीनियर बनने का ख्वाब लेकर कोटा आए स्पर्श कहते हैं कि दसवीं क्लास तक मर्जी के मुताबिक जिंदगी गुजारी। होमवर्क निपटाते ही या तो यार दोस्तों के साथ खेलने निकल लिए या बिस्तर पकड़ कर सो गए। छुट्टियां भी मर्जी पर ही निर्भर थीं, लेकिन यहां आकर पता चला कि अनुशासन सिर्फ किसी से तमीज से बात करने का ही नाम नहीं है सफलता हासिल करने के लिए किन चीजों की जरूरत है और उनके साथ एडजेस्टमैंट कर कैसे करना है की तमीज सीखना भी उसी का अहम हिस्सा है। लिविंग हुड डिसेंसी तो कोटा में ही सीखने को मिली।
हासिल हुआ समझ का हुनर

जेईई की तैयारी कर रही जबलपुर की अक्षरा जैन के मुताबिक लर्निंग डिसेंसी कोटा की सबसे बड़ी देन है। कोर्स कंप्लीट कर क्लास में टॉपर बन जाना ही हमारे लिए सबसे बड़ी सक्सेज थी, लेकिन यहां आकर पता चला कि पढऩे का सलीका ऐसा होना चाहिए कि जब तक कांसेप्ट क्लीयर न हो आगे मत बढ़ो। जब तक हर छोटी से छोटी प्रॉब्लम सॉल्व न हो जाए उसे छोड़ो मत। सिर्फ किताब लेकर रट्टा मारना ही पढ़ाई नहीं होती, कोर्स को ऐसे याद करना कि हमेशा दिमाग में घर कर जाए वो पढ़ाई होती है। प्रश्न पत्र से लेकर प्रॉब्लम सॉल्व करने की डिसेंसी इसी शहर ने सिखाई।
मुकाबले की रवायत समझी

इंजीनियर बनने का ख्वाब लेकर सिलीगुड़ी से कोटा तक का सफर तय करने वाली अंशुप्रिया बनर्जी कहती हैं कि अपने शहर में रहकर मुकाबले का मतलब महज अच्छे नंबरों से पास हो जाना ही समझते थे, लेकिन कोटा आकर सीखा कि मुकाबले का असल मतलब होता है अपना सबसे बेस्ट देना। कोटा में सीखा कि कॉप्टीशन से पहले रत्ती भर की हिचक का मतलब होता है तैयारी में कमी और सबसे बड़ी डिसेंसी कहूं या सक्सेज का मूलमंत्र जो यहां के अलावा कहीं सीखने को नहीं मिल सकता वो है एक बार मिली सफलता को लगातार कायम कैसे रखा जाए। वाकई में इस शहर में मुकाबले की ऐसी रवायत भरी है कि इसे समझने और सीखने के बाद एंट्रेंस टेस्ट की बात तो छोडि़ए जिंदगी के किसी भी कॉम्प्टीशन में डिफीट नहीं मिल सकती।

सफलता की सभ्यता पहचानी

देहरादून की सोविन्या कृष्णात्रेय के मुताबिक कोटा सफलता की सभ्यता को नित नई ऊंचाई देने वाला शहर है। सफलता भी ऐसी नहीं कि जिसे छीनने के लिए जबरदस्ती की जाए, बल्कि देव साधना की तरह पूरे ध्यान और परिश्रम के साथ उसे हासिल करने की डिसेंसी सिखाना इस शहर की सबसे बड़ी खासियत है। देश के कोने-कोने से हर साल कोटा में आने वाले लाखों बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर बनने से पहले डिसेंट सिटीजन बन रहे हैं। ऐसा नहीं होता तो आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि जहां इतने सारे युवा एक साथ इकट्ठा हो वहां हंगामा, शोर शराबा और धूम धड़ाका न हो ऐसा हो ही नहीं सकता।
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