लॉकडाउन की भेंट चढ़ी जिंदगीभर की कमाई, बच्चों को देखने की उम्मीद में आंखें पथराई, पढि़ए श्रमिकों की दर्दभरी कहानी…
सुल्तानपुर पंचायत समिति क्षेत्र के सुल्तानपुर, तोरण ,दीगोद, भीमपुरा, नौताड़ा मालियान आदि गांवों में कई लोग रोजगार के लिए जयपुर, मध्यप्रदेश समेत अन्य शहरों में रहते थे, लेकिन जैसे ही कोरोना संक्रमण व लॉकडाउन हुआ तो ज्यादातर लोग परिवार सहित लौट आए। यहां आने से इन लोगों की दिनचर्या भी बदल गई। अब घरों में लोग पहले की तरह एक साथ बैठकर खाना खाने व टीवी देखने लगे हैं। एक-दूसरे से अपना दुख-दर्द बांटने लगे हैं। पुराने किस्से कहानियों का दौर भी चल पड़ा है। परिवार के लोग रात में बैठकर अंताक्षरी, लूडो खेलते हैं। रोजगार के लिए गांव छोड़ गए लोग पहले साल में एक या दो बार तीन-चार दिन के लिए आते थे। अब कई लोगों ने तो फिर रोजगार के लिए शहर लौटने का मानस बदल दिया है। इनका कहना है कि भले ही कम कमाएं, लेकिन अब गांव में ही रहेंगे। यहां सुककून मिल रहा है। lockdown: गोद में बच्चे और सिर पर गठरी, आग बरसाती धूप में हजारों किमी पैदल चलने को मजबूर ये ‘मजदूर’
लॉकडाउन में सीखा बजट तय करना
लॉकडाउन में आमदनी सीमित होने से लोगों ने मितव्ययता व बजट तय करना भी सीख लिया है। उज्जवला योजना से रसोई गैस घर-घर पहुंच गई, लेकिन लोग संक्रमण के भय से गैस सिलेंडर लेने भी नहीं जा रहे। इधर-उधर से लकड़ी लाकर माटी के चूल्हे पर खाना बना रहे हैं।
हाड़ौती से उत्तरप्रदेश के लिए पैदल निकले मजदूरों के पैरों में पड़े छाले, तपती सड़कों पर कदम संग खून के पड़े निशान
बिता रहे सुकून के पल
कोरोना महामारी ने प्रवासियों को अपने गांव से जुडऩे का मौका दिया है। शहर की भाग-दौड़ भरी जिंदगी छोड़कर वे अपने गांव के सुकून के पल गुजारने लगे हैं। हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग के कारण लोगों से मिलना-जुलना बंद है, लेकिन लोग अपने परिवारों को पूरा समय दे रहे हैं।