दुकान के अर्पित अग्रवाल ने बताया कि मेले में कचौरे की दोनों दुकानों पर रोजाना करीब 500 किलो से ज्यादा का कचौरा लोग खा जाते हैं। इस तरह से बीस दिन करीब दस हजार किलो से ज्यादा का कचौरा बिक जाएगा। यह आंकड़ा तकरीबन तीस लाख रुपए बैठेगा।
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पर लांछन लगा रहे नेता प्रतिपक्ष सुवालका’ दो दुकानें, दोनों की रेट अलग
नसीराबाद का कचौरा दुकान के संचालक राजेन्द्र अग्रवाल ने बताया कचौरा दो तरह का होता है, एक उड़द दाल व दूसरा आलू-बेसन का। हमारी दुकान पर दोनों 320 रुपए प्रति किलो की दर से मिल रहे हैं। वहीं कोटा की कचौरे की दुकान पर यही 360 रुपए किलो है।
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नसीराबाद का कचौरा दुकान के संचालक राजेन्द्र अग्रवाल ने बताया कचौरा दो तरह का होता है, एक उड़द दाल व दूसरा आलू-बेसन का। हमारी दुकान पर दोनों 320 रुपए प्रति किलो की दर से मिल रहे हैं। वहीं कोटा की कचौरे की दुकान पर यही 360 रुपए किलो है।
पांच-छह दिन खराब नहीं होता
दुकानदार ने बताया कि यह कचौरा पांच-छह दिन तक खराब नहीं होता। इसे घर ले जाकर फ्रिज में नहीं रखें, बाहर ही रखें। उन्होंने बताया कि इसके निर्माण में बेहतरीन हींग, गरम मसाला, दालचीनी व पीपल का उपयोग करने से खाने वाले का हाजमा भी खराब नहीं होता।
दुकानदार ने बताया कि यह कचौरा पांच-छह दिन तक खराब नहीं होता। इसे घर ले जाकर फ्रिज में नहीं रखें, बाहर ही रखें। उन्होंने बताया कि इसके निर्माण में बेहतरीन हींग, गरम मसाला, दालचीनी व पीपल का उपयोग करने से खाने वाले का हाजमा भी खराब नहीं होता।
22 मजदूर 12 घंटे करते हैें काम
मेले में दुकान दोपहर 1 बजे से रात्रि 1 बजे तक खुली रहती है। कचौरा बनाने में 22 मजदूर लगातार 12 घंटे लगे रहते है। ये सभी नसीराबाद के ही हैं। उन्होंने बताया कि नसीराबाद में कचौरा बिना चटनी के ही खाया जाता है, जबकि कोटा में बिना चटनी के इसे कोई नहीं खाता।
मेले में दुकान दोपहर 1 बजे से रात्रि 1 बजे तक खुली रहती है। कचौरा बनाने में 22 मजदूर लगातार 12 घंटे लगे रहते है। ये सभी नसीराबाद के ही हैं। उन्होंने बताया कि नसीराबाद में कचौरा बिना चटनी के ही खाया जाता है, जबकि कोटा में बिना चटनी के इसे कोई नहीं खाता।