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हर साल सेहत से खिलवाड़
खाद्य सुरक्षा अधिकारी चंद्रवीर सिंह जादौन बताते हैं कि इसी साल खाद्य निरीक्षकों की टीम ने 198 नमूने लिए। जब इनकी जांच की गई तो इनमें से 57 मानकों पर खरे नहीं उतरे। अभी भी 31 नमूनों की रिपोर्ट आना बाकी है। पिछले एक दशक की बात करें तो मिलावट का खेल बढ़ता ही जा रहा है। जादौन बताते हैं कि विभागीय आंकड़ों के मुताबिक 2011 से लेकर इस साल तक खाद्य सुरक्षा विभाग ने मावे के 1792 सेंपल लिए, जिनमें से 533 फेल हो गए। पिछले पांच साल में हालात और बिगड़े हैं। 2015 से अब तक खाद्य विभाग ने कोटा में मावे के 1074 सेंपल लिए, जिनमें से 330 मानकों पर खरे नहीं उतर सके।
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बाहरी आवक मुसीबत
खाद्य सुरक्षा अधिकारी अरुण सक्सेना बताते हैं कि शहर में मावे की करीब 60 अस्थायी दुकानें हैं। यहां आमतौर पर रोजाना चार टन मावे की बिक्री होती है। त्यौहारी सीजन में यह बढ़कर दोगुनी हो जाती है। स्थायी दुकानों वाले व्यापारी कोटा और आसपास के इलाकों के बंधे हुए सप्लायर से ही मावा लेते हैं, लेकिन त्यौहारी सीजन में मांग बढऩे के बाद दिल्ली और हरियाणा से आने वाला मावा मिलावट से भरा होता है। कई बार स्थानीय सप्लायर इन राज्यों का माल भी शहर में खपा देते हैं। इनमें घर-घर घूम कर मावा सप्लाई करने वाले और अस्थायी दुकानदारों की संख्या अधिक है।
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पनीर और तेल भी मिलावटी
त्योहारों का फायदा उठाने में मिलावटखोर नहीं चूकते। मिल्क केक से लेकर पनीर, तेल और पनीर तक में मिलावट के मामले सामने आते हैं। खाद्य विभाग ने फरवरी में तेल और मिल्क पाउडर से बना 300 किलो नकली पनीर पकड़ा था, जबकि रक्षाबंधन से ठीक पहले खाद्य विभाग ने दो हजार किलो मिलावटी मिल्ककेक और मलाई बर्फी पकड़ी थी।