कपड़े के दूल्हा दुल्हन ओर गुड़ धाणी का प्रसाद हाथो में लिए जलाशयों की परिक्रमा लगाते हुए जैसे ही लाड़ी बुवाई उसे लेने के लिए कुंवारे लड़के पानी में छलांग लगाते दिखे जैसे ही बुवाई लाडी हाथों में आई तो खुशी से चहक ओर चारो तरफ शौरगुल ओर हंसी का ठहाका लगा, यह नजारा शुक्रवार को देखने को मिला। देवउठनी एकादशी पर लाडी बौहनी की धूम नजर आई इसी के साथ मांगलिक कार्यो पर भी ब्रेक लग गया।
सबसे ज्यादा ग्रामीण अंचल में कुंवारी कन्याओं ने इस पर्व को धूमधाम के साथ मनाया। लोक मान्यता है कि कुंवारी कन्याएं सज-धज कर अच्छे वर की कामना के लिए कपड़े से बने सुंदर दुल्हा-दूल्हन बनाती है, ओर सामुहिक रूप से जलाशयों पर गीत गाते हुए लाडी बुवाती है जिसे कुंवारे लड़के डूबकी लगाकर जलाशयों से निकालते हे ताकि उन्हें भी अच्छी दुल्हन मिले।
इस दिन जलाशयों पर कुंवारे लड़के-लड़कियों की बड़ी संख्या में भीड़ देखने को मिलती है। प्राचीन चली आ रही प्रथा आज भी ग्रामीण अंचल में जिंदा है। बालिकाओं में इस पर्व का उत्साह देखते ही बनता है। महिलाएं इस दिन व्रत उपवास करती है।
ऐसी अच्छी बारिश के लिए कई लोग टोटके भी करते है। बुजुर्गो का कहना है कि इस दिन तालाब की जगह जमीन में लाडी गाढी जाती थी ताकि अच्छी बारिश हो। आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देव सो जाएगें। ज्योतिशास्त्र के अनुसार इस देवशयनी एकादशी को सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु चार महिने के लिए विश्राम करते है।
इन चार महीनों में किसी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित रहते है। कार्तिक शुक्ल देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु वापस बैकुंठधाम लौटने के साथ ही फिर से शहनाइयां बजने और अन्य सभी शुभ मांगलिक कार्यो का शुभारम्भ होगा।