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दिव्यांगों को प्रमाण पत्रों की खातिर करनी पड़ी मशक्कत

locationकोटाPublished: Jan 04, 2018 01:14:24 am

Submitted by:

Anil Sharma

सांगोद में दिव्यांगों के लिए शिविर लगाया गया। लेकिन नहीं था वहां पर माकूल व्यवस्था। 36 ग्राम पंचायतों से पहुंचे थे दिव्यांग। पुलिसकर्मियों का करनी पड़

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सांगोद में दिव्यांगों के लिए शिविर

सांगोद. दिव्यांगों को सरकारी योजनाओं से जोडऩे एवं चिन्हित दिव्यांगों को ऑनलाइन डिजिटल प्रमाण पत्र जारी करने के लिए यहां पंडित दीनदयाल उपाध्याय विशेष योग्यजन के द्वितीय चरण में शिविर लगाया गया। पंचायत समिति परिसर में आयोजित शिविर में जांच के बाद दिव्यांगों को चार तरह की शारीरिक निशक्तता से संबंधित प्रमाण पत्र जारी किए गए।
आयोजित शिविर में पंचायत समिति क्षेत्र की सभी 36 ग्राम पंचायतों से लोग यहां पहुंचे। सुबह से दोपहर तक पूरा परिसर भीड़ से खचाखच भर गया। प्रमाण पत्र बनवाने के पहले भीड़ से हुई अव्यवस्थाओं के कारण दिव्यांगों को शारीरिक क्षमता के साथ ही सब्र का इम्तिहान भी देना पड़ा। हालांकि विभागीय एवं प्रशासनिक स्तर पर दिव्यांगों की सुविधा के लिए यहां माकूल व्यवस्थाएं की गई थी, लेकिन भीड़ अधिक होने से सारी व्यवस्थाएं नाकाफी साबित हुई। हालांकि अधिकारी एवं कार्मिक दिनभर व्यवस्थाओं में लगे रहे। काउंटरों पर लगी लम्बी कतारों में व्यवस्था बनाने में पुलिस कर्मियों को भी काफी मशक्कत करनी पड़ी। इधर, वाहनों की अधिकता से पंचायत समिति कार्यालय के बाहर सांगोद-बपावर मुख्य सडक़ पर जाम सा लगा रहा।
दिनभर जद्दोजहद
शिविर शुरू होने से पहले ही यहां लोगों की भीड़ लग गई। पहले से सूचना होने के कारण दिव्यांग जल्दी सुबह से ही यहां पहुंचना शुरू हो गए थे जिससे अधिकांश काउंटर खुलते ही भीड़ से अट गए। दिव्यांगों को परिजनों के साथ लम्बी कतार में लगकर जांच एवं प्रमाण पत्र बनवाना पड़ा।
जांच के बाद प्रमाण पत्र
शिविर में लोकोमोटो विकलांगता, आंख, मूक बधिर एवं मानसिक विकलांगता से सम्बंधित चिकित्सकों ने दिव्यांगों की जांच कर प्रमाण पत्र जारी किए। शिविर में एसडीएम कमल कुमार मीणा, तहसीलदार लक्ष्मीनारायण प्रजापति, प्रधान सावित्री मीणा, ब्लॉक सीएमएचओ डॉ. प्रभाकर व्यास आदि ने दिव्यांगों की समस्याओं का समाधान किया।
सहायता की उम्मीद में पहुंचे
यहां कई दिव्यांग आर्थिक एवं अन्य सहायता मिलने की आस में अपने परिजनों के साथ शिविर में पहुंचे। काफी देर तक भटकने के बाद जब उन्हें माजरा समझ आया तो वापस लौट गए। शिविर में सुबह से ही महिलाओं एवं बच्चों के साथ बुजुर्गो की तादाद अधिक रही। कोई परिजनों के सहारे यहां पहुंचा तो किसी ने स्वयं ही शिविर में पहुंचकर प्रमाणपत्र बनाने की सारी औपचारिकता पूरी की।

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