कोटा

दुर्गंध आए तो समझ जाएं कोटा के गिरधरपुरा आ गए

यह गांव करीब दस साल पहले नगरीय सीमा में शामिल हुआ था, लेकिन हालत सुधरने के बजाय बिगड़ गई। नगर निगम संपूर्ण शहर के परिवारों को शौचालय की योजना से लाभान्वित करने का दावा करता रहा है, लेकिन इस वार्ड में आते ही इस दावे की पोल खुलती नजर आती है।

कोटाOct 24, 2020 / 12:22 pm

Jaggo Singh Dhaker

यह पीड़ा है कोटा उत्तर नगर निगम के वार्ड एक के गिरधरपुरा गांव की

कोटा. बदबू का उठता भभूका, सड़क के किनारे पड़ा मल, जाम नालियां और संकरा रास्ता, शुद्ध पेयजल को तरसते लोग। यह पीड़ा है कोटा उत्तर नगर निगम के वार्ड एक के गिरधरपुरा गांव की। यह गांव करीब दस साल पहले नगरीय सीमा में शामिल हुआ था, लेकिन हालत सुधरने के बजाय बिगड़ गई। गांव में प्रवेश करते ही मल सडऩे की दुर्गंध उठती है जो आगे बढऩे से रोकती है। यहां से गुजरने वाले लोग नाक बंद करने को मजबूर हो जाते हैं। नगर निगम संपूर्ण शहर के परिवारों को शौचालय की योजना से लाभान्वित करने का दावा करता रहा है, लेकिन इस वार्ड में आते ही निगम के इस दावे की पोल खुलती नजर आती है। यहां लोग सड़क के किनारे ही मल त्यागते हैं। इस कारण यहां उठती बदबू हर किसी को इस गांव में जाने से रोकती है। वार्ड नम्बर एक में गिरधरपुरा, गोरधनपुरा,देवनगर, बडग़ांव, शंभुपुरा और ज्ञानसरोवर कॉलोनी शामिल है। यह इलाका नगरीय सीमा में शामिल होने के सालों बाद शहर जैसा नहीं दिखता। गिरधरपुरा के लोगों की पीड़ा है कि उनके गांव को नगर निगम की सीमा शामिल किया तब यह उम्मीद थी कि शहर जैसी सुविधाएं मिलेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यदि यह क्षेत्र ग्राम पंचायत में ही रहता तो लोगों को मनरेगा में रोजगार मिलता और ग्राम पंचायत के माध्यम से कई कार्य कराए जा सकते थे, लेकिन अब ग्रामीण क्षेत्र में मिलने वाली सुविधाओं से
भी हाथ धोना पड़ा है। इस गांव के ज्यादातर लोग सब्जी उत्पादन का कार्य करते हैं। उन्होंने कहा, पहले ग्राम पंचायत में समस्या बताना आसान था अब नगर निगम में कोई नहीं सुनता है। गांव के बाबूलाल ने बताया कि न गांव के रहे न शहरी बन पाए । अब न तो इस इलाके में शहरी जैसी सुविधाएं है और न ग्रामीण क्षेत्र की योजनाओं का लाभ मिल रहा है। हालत ये है कि नालियां जाम है और कचरा उठाने कोई नहीं आता। गांव के चबूतरे पर बैठे मोरध्वज ने कहा, आधे गांव में जलदाय विभाग की आपूर्ति है। सामुदायिक शौचालय नहीं होने के कारण ग्रामीण खुले में शौच जाते हैं। नालियों की सफाई नहीं होती है। गांव के ही शंकरलाल ने बतायाया कि नालियां जाम रहती हैं इसलिए खुद ही कचरा निकालना पड़ता है, लेकिन उस कचरे का निस्तारण नहीं हो पाता। इस बार अभी तक तो कोई वोट मांगने आया नहीं है। यदि कोई आएगा तो ये समस्याएं बताएंगे
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