वन्यजीवों की गणना में बारिश की दखल अंदाजी
wildlife वन्यजीव विभाग व मंडल वन की रेंजों में गिने जा रहे हैं वन्यजीव

@हेमंत शर्मा कोटा. वन विभाग के मंडल वन कोटा व वन्यजीव विभाग की विभिन्न रेंजों में शुक्रवार से वन्यजीवों की गणना शुरू हो गई, लेकिन गणना में बारिश ने खलल डाला। इससे गणना का कार्य प्रभावित हुआ। मंडाना, भैसरोडगढ़, मोड़क, उम्मेदगंज समेत कई लगभग सभी रेंजों में बारिश ने खलल पैदा किया।
सूत्रों के मुताबिक कई जगहों इतनी तेज बारिश हुई कि वनकर्मी व गणना कर रहे सहयोगियों को मचान से उतकर सुरक्षित जगह पर आना पड़ा। कुछ वनकर्मी भीग गए। शाम तक अलग अलग जगहोंे पर रुक रुक कर बारिश होती रही। मंडाना,मोड़क, भैसरोडग़ढ, सुल्तानपुर समेत अन्य वनक्षेत्रों में बारिश हुई। हालांकि इसके बावजूद वन्यजीव गणना जारी रही। धूप, छाव व बारिश के बावजूद वनकर्मियोंे ने गणना कार्य जारी रखा।
वन्यजीव के69 व मंडलवन के 39 पाइंट
वन्यजीव विभाग के अंतर्गत अभेड़ा, उम्मेदगंज, भैसरोडग़ढ़, शेरगढ़ व रामगढ़ अभयारण्यों में ६९ पाइंटों पर वन्यजीवों की गणना शुरू हुई तो मंडलवन की लाड़परुा, मंडाना, मोड़क, कनवास, सुल्तानपुर, इटावा,खातोली रेज में ३९ वाटर पाइंट बनाकर गणना कार्य किया गया। सहायक वन संरक्षक तरुण मेहर ने बताया कि लाड़पुरा मंे ४, मंडाना में ६,मोड़क में ४, कनवास में ८,सुल्तानपुर ९, इटावा में ५ व खातोली में ३ वाटर पाइंटों पर वन्यजीवों की गणना की जा रही है।
24 घंटे की गणना
इससे पहले विभाग ने एक दो दिन पहले से ही आवश्यकता अनुसार गणना के लिए मचाने बनाने का कार्य शुरू कर दिया था। शुक्रवार कों अलसुबह वनकर्मी अपने अपने पाइंटों पर पहुंच गए। शनिवार को सुबह ८ बजे तक २४ घंटे में इन वाटर पाइंटों पर आने वाले वन्यजीवों को काउंट करेंगे। इसके आधार पर क्षेत्र के जंगलों में कुल वन्यजीवों की रिपोर्ट तैयार की जाएगी।
सब कुछ बदला, गणना का तरीका नहीं
बारिश कई बार वन्यजीवों की गणना में बेरी बन चुकी है। इसके बावजूद विभाग अब भी वनक्षेत्रों में परम्परागत ढंग से ही गणना करवाता आ रहा है। इस कारण वन्यजीवों की वास्तविक संख्या का अनुमान लगानाभी मुश्किल हो जाता है। खास तौर पर बारिश में तो गणना महज औपचारिकता ही रह जाती है। वन्यजीवों के जानकार कृष्णेन्द्र नामा बताते हैं कि परम्परागत तरीके से चांदनी रात में २४ घंटे के अंतराल में वाटर पाइंटों पर आने वाले वन्यजीवों को काउंट करते हैं। एेसा मानते हैं कि 24 घंटे में कम से कम एक बार वन्यजीव पानी पीते हैं। हर क्षेत्र में सीमित वाटरपाइंट बनाते हैं, यहां आने वाले वन्यजीवों की प्रजाति, संख्या इत्यादिन को देखा जाता है। लेकिन यह तरीका सिर्फ अनुमानित आंकड़े ही दे सकता है।
यह आती है समस्या
कृष्णेन्द्र बताते हैं कि बारिश होने की स्थिति में वन्यजीवों को पानी की उपलब्धता हो जाती है। इससे जरूरी नहीं कि जहां वनकर्मी गणना करने के लिए बैठे हों, वहीं वन्यजीव आएं। इसके अलावा कई बार वन्यजीवों को थोड़ी सी आहट भी हो जाती है तो वे वाटर पाइंटों पर नहीं आते। रात के अंधेरे में वाटरपाइट पर आने वाले वन्यजीवों की संख्या का सही आंकलन हो यह भी एक मुश्किल है। जिन क्षेत्रों में बड़े तालाब व नदियां होती है, वहां भी सही अनुमान लगाना जरा कठिन होता है।
पूर्णिमा पर भरोसा
वन्यजीवों की गणना अक्सर पूर्ण चांद की स्थिति में करते हैं। इस वर्ष भी मई इस कारण लेकिन कोविड.19 व लॉकडाउन के कारण गणना नहीं की जा सकी। इस कार्य को एक माह के लिए आगे बढ़ाया गया। जानकारों के अनुसार वन्यजीवों की गणना पूर्ण चांद में ही की जाती है ताकि रात्रि में वन्यजीवो को पहचाना व गिना जा सके, लेकिन बादलव बारिश के कारण कई बार इसमें भी मुश्किल हो जाती है।
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