इन चार महत्वपूर्ण तरीकों से होती है मॉनिटरिंग पहला तरीका है बाघ की डायरेक्ट साइटिंग (डीएस) इसमें बाघ को प्रत्यक्ष रूप से देख लिया जाए। डायरेक्ट साइटिंग नहीं होने की स्थिति में बाघ की मौजूदगी का पता लगाने का दूसरा तरीका महत्वपूर्ण तरीका कैमरा ट्रेप (सीटी )है। इसमें बाघ की तस्वीर आने पर मान लिया जाता है कि सब कुछ ठीक है। साइटिंग का तीसरा तरीका रेडियो कॉलर से मिलने वाले सिग्नल (आरएस )से है और चौथा तरीका पगमार्ग है। जिसे विभागीय भाषा में पीएम कहा जाता है।
हालांकि बाघ का रेडियो कॉलर काम नहीं कर रहा है, लेकिन पिछले 38 दिनों में न तो बाघ नजर आया है न ही कैमरा ट्रेप हो रहा है न ही इसके कोई पगमार्ग नजर आए हैं। इसके अलावा इससे सम्बन्धित अन्य साक्ष्य भी विभाग अभी तक नहीं जुटा पा रहा है।
एक माह पूर्व साक्ष्य आया सामने 19 अगस्त को बाघ का कैमरा ट्रेप हुआ था। इसके बाद गत 29 अगस्त को एक घायल बेल टाइगर रिजर्व में देखा गया था। विभाग ने बे की स्थिति को देखकर माना था कि इस बेल को बाघ ने शिकार बनाने का प्रयास किया है।
रखें उम्मीद टाइगर वॉच संस्था के धर्मेन्द्र खांडल के अनुसार पूरी तन्मयता के साथ बाघ को तलाशने के प्रयास किए जाने चाहिए। उम्मीद के साथ ट्रेकिंग की जाए। बाघ नहीं मिलेगा ऐसा नहीं सोचना चाहिए। हो सकता है कहीं निकल गया हो। कई बार बाघ जैसे वन्यजीव खुद को छिपाकर भी रख लेते हैं।
रहे हैं तलाश मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व के उपवन संरक्षक बीजो जोय ने बताया कि बाघ की मॉनिटरिंग की जा रही है। फिलहाल नजर नहीं आया है। हमारी ओर से बाघ को तलाशने के पूरे प्रयास किए जा रहे हैं। इसमें पूरी टीम लगी है। कैमरा ट्रेप भी लगे हैं।