ऐसे खिलाते बच्चों को पोषाहार
गौरतलब है कि सरकारी विद्यालयों में 15 अगस्त 1995 से मिड-डे-मील व्यवस्था शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य सरकारी विद्यालयों में नामांकन बढ़ाने, उपस्थिति में वृद्धि, ड्रॉप आउट रोकने, शिक्षा के स्तर को बढ़ावा देने समेत विद्यार्थियों के पोषण में वृद्धि करना है। इसके तहत शहरी समेत सभी ग्रामीण क्षेेत्रों के विद्यालयों में पहली से आठवीं तक के विद्यार्थियों को मध्यान्तर में पोषाहार खिलाया जाता है। इसके तहत पहली से पांचवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को 450 ग्राम कैलोरी व 12 ग्राम प्रोटीन व छठीसे आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को 700 ग्राम कैलोरी व 20 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध कराने के सरकार के निर्देश हैं। जहां कुक कम हेल्पर महिलाओं को मार्च तक का मानदेय मिला। इसके बाद से सरकारी स्कूलों में पोषाहार बनाने वाली महिलाएं अप्रैल से नवम्बर माह तक का मानेदय पाने के लिए महिलाएं तरस रही है।
गौरतलब है कि सरकारी विद्यालयों में 15 अगस्त 1995 से मिड-डे-मील व्यवस्था शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य सरकारी विद्यालयों में नामांकन बढ़ाने, उपस्थिति में वृद्धि, ड्रॉप आउट रोकने, शिक्षा के स्तर को बढ़ावा देने समेत विद्यार्थियों के पोषण में वृद्धि करना है। इसके तहत शहरी समेत सभी ग्रामीण क्षेेत्रों के विद्यालयों में पहली से आठवीं तक के विद्यार्थियों को मध्यान्तर में पोषाहार खिलाया जाता है। इसके तहत पहली से पांचवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को 450 ग्राम कैलोरी व 12 ग्राम प्रोटीन व छठीसे आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को 700 ग्राम कैलोरी व 20 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध कराने के सरकार के निर्देश हैं। जहां कुक कम हेल्पर महिलाओं को मार्च तक का मानदेय मिला। इसके बाद से सरकारी स्कूलों में पोषाहार बनाने वाली महिलाएं अप्रैल से नवम्बर माह तक का मानेदय पाने के लिए महिलाएं तरस रही है।
असंगठित होने का भी मलाल
कस्बेवासी कुक कम हेल्पर महिलाओं का कहना है कि मिलने वाला न्यून मानदेय भी उन्हें समय से नहीं दिया जा रहा। हालांकि मार्च में लॉकडाउन लगने से बाद से विद्यालय बंद है। सरकार की ओर से अन्य कार्मिकों को लॉकडाउन लगने के बाद काम धंधा ठपरहने से अन्य सुविधाएं दी गई, जबकि उन्हें न्यूनतम मानदेय के लिए भी तरसाया जा रहा है। असंगठित होने का भी मलाल पोषाहार बनाने वाली महिलाओं को भी है। कर्मचारियों को जहां पेंशन व सातवां वेतन आयोग का लाभ दिया जा रहा है, वहीं असंगठित होने से इनकी मांग पर कोई गौर नहीं कर रहा।
कस्बेवासी कुक कम हेल्पर महिलाओं का कहना है कि मिलने वाला न्यून मानदेय भी उन्हें समय से नहीं दिया जा रहा। हालांकि मार्च में लॉकडाउन लगने से बाद से विद्यालय बंद है। सरकार की ओर से अन्य कार्मिकों को लॉकडाउन लगने के बाद काम धंधा ठपरहने से अन्य सुविधाएं दी गई, जबकि उन्हें न्यूनतम मानदेय के लिए भी तरसाया जा रहा है। असंगठित होने का भी मलाल पोषाहार बनाने वाली महिलाओं को भी है। कर्मचारियों को जहां पेंशन व सातवां वेतन आयोग का लाभ दिया जा रहा है, वहीं असंगठित होने से इनकी मांग पर कोई गौर नहीं कर रहा।
रामप्यारी बाई वसंतोष कुमारी आदि का कहना है कि वर्तमान में न्यूनतम मजदूरी 180 रुपए देने का प्रावधान है। गांव में मजदूरी या फसल कटाई भी करें तो 250 से 300 रुपए तक मिल जाते हैं। जबकि इन्हें इससे अधिक काम करना पड़ रहा है। इसमें भोजन पकाने से लेकर बर्तनों की सफाई, गेहूं पिसाई समेत चावलों की सफाई आदि कार्य शामिल है।
सरकार के आदेशों का करेंगे पालन
पोषाहार बनाने वालीमहिलाओं को मार्च तक का मानदेय दिया जा चुका है। इसके बाद से मानदेय नहीं मिला। सरकार के जैसे भी निर्देश होंगे उनका पालन किया जाएगा। कुक कम हेल्परों की मांग है जो कि उच्च अधिकारियों तक पहुंचाई जाएगी।
राजेन्द्र सिंह सिसोदिया,एसीबीईईओ
सरकार के आदेशों का करेंगे पालन
पोषाहार बनाने वालीमहिलाओं को मार्च तक का मानदेय दिया जा चुका है। इसके बाद से मानदेय नहीं मिला। सरकार के जैसे भी निर्देश होंगे उनका पालन किया जाएगा। कुक कम हेल्परों की मांग है जो कि उच्च अधिकारियों तक पहुंचाई जाएगी।
राजेन्द्र सिंह सिसोदिया,एसीबीईईओ