संवेदक ने अस्पताल को कर सहित 11112 रुपए एमआरपी का कम्प्रेशर सप्लाई किया। इसे कार्मिकों ने वाटर कूलर में इंस्टॉल भी करवा दिया। इसके बाद संवेदक ने अस्पताल को सप्लाई हुए 4 कम्प्रेशर सहित अन्य सामानों का 78203 रुपए का बिल बनाकर दे दिया।
Big News: तीस पैसे के स्क्रू को 8 रुपए में खरीद रहा नया अस्पताल
कार्मिकों और प्रबंधन ने यह तक नहीं देखा है कि उन सामानों की एमआरपी क्या है? कीमत में हेरफेर को पकड़ा नहीं जा सके इसके लिए संवेदक ने सप्लाई के पहले अधिकांश सामानों से कीमत के टैग ही हटा दिए। एेसा ही बिजली के अधिकांश सामानों की सप्लाई में किया हैं। साथ ही कार्मिकों ने स्टोर में माल को प्राप्त करते समय भी इस तथ्य की अनदेखी की।
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#Swineflu: यहां 4 महीने में 4 रोगी स्वाइन फ्लु पॉजीटिव, 2 की मौतप्लायर की एमआरपी 232, सप्लाई 320 में
पत्रिका टीम ने सोमवार को अस्पताल में सप्लाई हुए समानों की जानकारी ली। इसमें सामने आया कि प्लायर की एमआरपी 232 रुपए है, जबकि संवेदक ने 320 रुपए का बिल पेश किया हैं।
पांच गुना महंगा बेचा वायर
अस्पताल में जेकेलाइट वायर 1.5 एमएम की सप्लाई की 3400 रुपए में सप्लाई हुई हैं। संवाददाता ने मोहन टाकिज रोड स्थित इलेक्ट्रिक दुकानदार से यही वायर खरीदना चाहा तो उसने कहा कि एमआरपी तो 700-800 रुपए होगी, लेकिन इसे 450 रुपए में दे दूंगा।
भुगतान रोका, रिपोर्ट मांगी
नए अस्पताल में एमआरपी से भी ज्यादा में इलेक्ट्रिक आइटमों की खरीद के गड़बड़झाले के समाचार पत्रिका में प्रकाशित होने के बाद प्राचार्य मेडिकल कॉलेज ने पूरे मामले की तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है। वहीं, अस्पताल प्रबंधन ने इस मामले से जुड़े संवेदक मैसर्स चौधरी कंस्ट्रक्शन का फिलहाल भुगतान रोकने के निर्देश दिए हैं। साथ ही दरों का सत्यापन करने के लिए भी लेखा शाखा को कहा गया है।
जो 33 रुपए में खरीदा, बाजार में छह रुपए में उपलब्ध
सीएनजी के स्विच की एमआरपी 18 रुपए है, लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने इसे 33 रुपए में खरीदा हैं। छावनी बंगाली कॉलोनी में एक दुकान पर इस स्विच का फोटो दिखाया तो दुकानदार ने कहा कि छह रुपए में ले जाओ।
कोटा मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल में सामग्री खरीद में गड़बड़ी की शिकायत मिली हैं। इसकी जांच के निर्देश दे दिए हैं।
आनंद कुमार, प्रमुख सचिव, मेडिकल एजुकेशन
विषैली कोशिकाओं का मकडज़ाल
पत्रिका टिप्पणी: विजय चौधरी
ये कैंसर है…कमीशनखोरी का कैंसर…कीटाणुओं ने पूरे सिस्टम को अपने मकडज़ाल में ले लिया है… यही तो वजह है कि न एमआरपी देखी जा रही है और न ही बाजार की रेट…जो तथ्यों से साफ जाहिर है कि यहां सिर्फ जिम्मेदारों के ‘रेट’ तय हो रहे हैं… और एक बार रेट तय होने के बाद तो किसने रोका है… ‘बीमार शरीर’ का करते रहो ‘महंगा उपचार’… और करते रहो जेब गर्म… मगर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कैंसर की इस स्टेज पर जीत नहीं पाई जा सकती है?… जरूर पाई जा सकती है, यदि बगैर किसी दबाव प्रभाव के उपचार करने का प्रण कर लिया जाए तो सिस्टम में नए प्राण फूंके जा सकते हैं… इसके लिए सबसे पहले प्रशासन में बैठी उन विषैली कोशिकाओं की पहचान करना होगी, जो ‘कमीशन की डॉक्टरी’ में भी ‘एमडी’ हैं… और साथ ही उनको भी ‘डायग्नोज’ करना होगा, जो इन कोशिकाओं को पोषित कर रहे हैं… एक स्वस्थ व्यवस्था के लिए ये करने में हर्ज भी क्या है!!!