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चम्बल पर बने बांधो से जुडी ये सच्चाई जानकर चौंक जाएंगे आप,19 साल में 282 से 16 पंहुचा आंकड़ा

locationकोटाPublished: Sep 29, 2019 03:36:05 am

Submitted by:

Rajesh Tripathi

मरम्मत व रखरखाव के नाम पर ऊंट के मुंह में जीरे के समान मिलता है बजट

- सरकार को सालाना करोड़ों रुपए कमाकर दे रहे चम्बल के बांध

– सरकार को सालाना करोड़ों रुपए कमाकर दे रहे चम्बल के बांध

अभिषेक गुप्ता कोटा. चम्बल पर बने बांध सरकार को हर साल करोड़ों की कमाई करके दे रहे हैं, लेकिन इसके विपरीत इन बांधों की मरम्मत व रखरखाव के लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान राशि मिल रही है। विभाग के पास न पर्याप्त तकनीकी स्टाफ है, न अन्य कर्मचारी। कभी आपातकालीन स्थिति आ जाए तो बांधों की व्यवस्था भगवान भरोसे है। सबसे बड़ी बात यह है कि न बांधों का रंग-रोगन हो रहा, न गेटों पर रबर सील लगाई जा रही। इन बांधों के सालों से रस्से तक नहीं बदले गए हैं। इन हालातों के चलते गेटों के जाम होने का खतरा भी बना हुआ है।
चम्बल के राजस्थान के तीनों बांध राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर बांध व कोटा बैराज बांध के लिए पिछले साल की अपेक्षा इस साल आधा ही बजट मिल पाया। 2018 की बात करें तो तीनों बांधों को 37.50 लाख का बजट ही मिला था, जबकि इस साल 26.50 लाख का बजट मिला है। इससे जलसंसाधन विभाग मात्र आपातकालीन कार्य ही करवा पाया है।

प्रदेश का सबसे पुराना व सबसे बड़ा बांध
राणा प्रताप सागर बांध प्रदेश का सबसे पुराना व सबसे बड़ा बांध है। बीसलपुर 1200 एमक्यूएम, माही 2200 एमक्यूएम क्षमता का है, जबकि राणा प्रताप सागर बांध 2905 एमक्यूएम क्षमता का बांध है।
इतना कमा करकर दे रहे

राणा प्रताप सागर बांध से 1.72 करोड़ तथा जवाहर सागर बांध के पन बिजलीघर से 1 करोड़ रोजाना की कमाई बिजली उत्पादन से हो रही है। ये बांध रावतभाटा परमाणु बिजलीघर व उद्योगों को बिजली देते हैं। इसके अलावा कोटा, बूंदी, भीलवाड़ा, पचपहाड़ पेयजल योजना भी इन्हीं बांधों से संचालित होती है, इससे 3 करोड़ 81 लाख की कमाई सालाना होती है।
यह मिल रहा है बजट

इस साल 2019
10 लाख राणा प्रताप सागर बांध

6.50 लाख जवाहर सागर बांध
10 लाख कोटा बैराज बांध

पिछले साल 2018

15 लाख राणा प्रताप सागर बांध
7.50 लाख जवाहर सागर बांध
15 लाख कोटा बैराज बांध

ये होनी चाहिए मरम्मत

राणा प्रताप सागर बांध का एक गेट अटका था

चंबल नदी के गांधी सागर बांध के बाद दूसरे सबसे बड़े बांध राणा प्रताप सागर बांध का 29 अगस्त को गेट नम्बर 7 अटक गया था। इसके चलते यह न तो पूरा खुल रहा था, न बंद हो रहा था। इस कारण पांच दिन तक इस गेट से लगातार पानी की निकासी होती रही। जल संसाधन विभाग के अभियंताओं ने गेट बंद करने के सारे प्रयास किए, लेकिन सफल नहीं हुए। भोपाल से तकनीकी टीम को बुलाना पड़ा था। बाद में तकनीकी टीम ने गेट को ठीक किया। बताया गया कि बांध के तल पर कोई ठोस पदार्थ अटकने से यह गेट बंद नहीं हो पाया। पांच दिन तक जो पानी व्यर्थ बहा। उससे करीब 50 हजार बीघा की जमीन सिंचित हो सकती थी।

पहले यह था स्टाफ, अब यह रह गया
बांधों के रखरखाव व मरम्मत कार्य के लिए कर्मचारियों का भी लगातार टोटा होता जा रहा है। वर्ष 2000 की बात करें तो तीनों बांधों पर 282 कार्मिकों का स्टाफ था, जो अब घटकर 16 कार्मिकों का ही रह गया।
4 लाख 58 हजार हैक्टेयर की जमीन होती है सिंचित

इन बांधों से पानी निकासी से राजस्थान व मध्यप्रदेश की जमीन पर 4 लाख 58 हजार हैक्टेयर जमीन सिंचित होती है। इस
में 2 लाख 29 हजार राजस्थान व 2 लाख 29 हजार मध्यप्रदेश की है। रबी में किसानों को 6 हजार करोड़ कीमत का उत्पादन इसी पानी से होता है। बरसात में 15 जून से 25 सितम्बर तक 12175.686 मिलियन क्यूबिक पानी की निकासी की जा चुकी है।

इनका यह कहना
चंबल के बांध जितना कमा कर दे रहे हैं, उनकी मरम्मत व रखरखाव के लिए उतना बजट नहीं आ रहा। हर साल 1-1 करोड़ की मांग का बजट प्रस्ताव सरकार को भेजते हैं, लेकिन जितनी राशि आती है, उससे आपातकालीन कार्य ही करवा पा रहे हैं। इस बार स्टाफ की संख्या 150 करने की मांग की है।
एजाजुद्दीन अंसारी, अधीक्षण अभियंता, जल संसाधन बांध वृत्त कोटा

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