विवेकानंद नगर निवासी निशा (परिवर्तित नाम) के पति बैंक में नौकरी करते हैं। सालभर पहले तक दफ्तर आने-जाने का समय तय था, लेकिन अब जाने का तो पता रहता है, लेकिन आने का नहीं। दिन में जब भी फोन करो बिजी मिलते हैं। शादी के दो साल बात तक हर संडे मूवी देखने जाते थे, लेकिन पिछले छह महीने से स्मार्ट फोन पर वेब सिरीज देखने की ऐसी लत लगी है कि आधी-आधी रात तक मोबाइल में ही घुसे रहते हैं। आलम यह कि सुबह उठते ही भले ही चाय मिले या न मिले, मोबाइल जरूर चाहिए।
सिविल लाइंस निवासी आशा (परिवर्तित नाम) के पति सरकारी नौकरी में ऊंचे ओहदे पर हैं। शादी के बाद करीब एक साल तक तो खूब समय दिया, लेकिन अब मानो स्मार्ट फोन से मुहब्बत कर ली है। दफ्तर में काम-काज के दवाब के चलते घर आने-जाने का समय तय नहीं है, घर आकर भी मेल और मैसेज का जवाब ही देते रहते हैं। मुश्किल यह है कि बातचीत के लिए जो थोड़ा समय मिलता भी है उसे सोशल नेटवर्किंग खा जाती है।
कोटा. स्मार्ट फोन की वजह से मियां बीबी के रिश्ते ‘हैंगÓ होने लगे हैं। परिवार में बढ़ती स्मार्टफोन की दखल भविष्य का खतरनाक खाका खींच रही है। आलम यह कि सुविधा के नाम पर हाथ में आई इस मुसीबत ने 79 फीसदी घरों में झगड़े का बीज बो दिया है। 63 फीसदी महिलाओं का मानना है कि उन्हें समय देने के बजाय पति इंटरनेट और स्मार्टफोन पर व्यस्त रहते हैं।
फाउंडेशन की निदेशिका एडवोकेट ईशा यादव बताती हैं कि शोध के दौरान 5000 महिलाओं से प्रश्नावली भरवाई गई। जवाबों के विश्लेषण से पता चला कि स्मार्ट फोन के घर में दाखिल होने के बाद परिवार का हैप्पीनेस इंडेक्स 63 फीसदी घट गया। महिलाओं का कहना था कि सोशल मीडिया, मैसेंजर और वीडियो कॉलिंग सुविधा से पतियों का दायरा साइबर वल्र्ड में बढ़ता गया, ठीक उसी रफ्तार से वे परिवार से कटते चले गए। दफ्तर को तो पहले जितना ही वक्त देते रहे, लेकिन घर के वक्त में कटौती कर दी। ज्यादा परेशानी मियां-बीवी के रिश्तों में आई।
स्मार्टफोन की वजह से पति से झगड़ा : 79 फीसदी
सप्ताह में एक बार झगड़ते हैं : 32 फीसदी अक्सर झगड़ते हैं : 54 फीसदी
स्मार्ट फोन की एंट्री के बाद घटी खुशियां : 63 फीसदी
तीन से पांच घंटे : 12 फीसदी पांच घंटे से ज्यादा -: 11 फीसदी
फोन-पासवर्ड और पति
कितने पति पासवर्ड डालकर रखते हैं : 67 फीसदी
पासवर्ड नहीं पता : 72 फीसदी